तमंचे वाली आज़ादी– स्कूल बैग में खौफ का सामान

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सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )

कुछ दिन पहले यूपी के बागपत में एक स्कूली बच्चा घर से देसी तमंचा लेकर स्कूल पहुंच गया था। उसे देखकर शिक्षिका के होश उड़ गए थे। आठवीं का यह छात्र दूसरे बच्चों को बैग से निकालकर तमंचा दिखा रहा था। पुलिस के सामने इस लडक़े ने बताया कि तमंचा काफी समय से उसके घर पर रखा था। लेकिन इसके कुछ हफ्ते पहले बिहार के सुपौल जिले में नर्सरी का छात्र घर से पिस्तौल लेकर स्कूल पहुंच गया था, और उसकी चलाई गोली से एक दूसरा छात्र घायल हो गया था। इस बच्चे के पिता को बुलाने पर स्कूल में जब उसे पता लगा तो वह पिस्तौल और बच्चे को लेकर वहां से फरार हो गया था।

अब छत्तीसगढ़ से खबर आई है कि जांजगीर जिले में आठवीं का एक छात्र पिस्तौल लेकर स्कूल गया ताकि वह दूसरे बच्चों पर धौंस जमा सके। शिक्षकों को पता लगते ही उसे पकड़ा गया, पुलिस को खबर की गई, बच्चे से पता लगा कि यह पिस्तौल घर की आलमारी में रखी थी, पुलिस ने उसके पिता से पूछताछ की और घर से एक तलवार भी बरामद की। पता लगा कि इस बच्चे का चाचा सावन में जल चढ़ाने झारखंड के बासुकीनाथ गया था, और वहां से वह अवैध पिस्टल और तलवार खरीदकर लाया था, और भाई को रखने दी थीं। आलमारी में पड़ी इस पिस्टल पर बेटे की नजर पड़ी, और वह इसे लेकर स्कूल चले गया। गनीमत कि किसी हादसे या हमले के पहले वह पकड़ा गया।

इन दोनों-तीनों मामलों में एक बात साफ है कि देश में अवैध हथियार बड़े धड़ल्ले से उपलब्ध हैं। दूसरी बात यह कि इन्हें खरीदकर दूर-दूर तक ले जाया जा सकता है, और रास्ते में ट्रेन-बस में पकड़े जाने का खतरा उतना बड़ा नहीं है। तीसरी बात यह कि लोग अवैध हथियार खरीदकर भी उसे खुली आलमारी में रख देते हैं, जहां तक बच्चों और दूसरों की पहुंच है, और ऐसे भयानक खतरे की नौबत आती है।
अब तक हम अमरीका का ही पढ़ते थे कि वहां के स्कूल में कोई नौजवान बंदूक या ऑटोमेटिक हथियार लेकर घुस जाता है, और वहां कई बच्चों और बड़ों को एक साथ मार डालता है। भारत की पिछले दो महीने की ये तीन घटनाएं इस देश में एक खतरनाक नौबत बताती है कि अवैध हथियारों पर पुलिस की पकड़ उतनी मजबूत नहीं है जितनी कि समाज की सुरक्षा के हिसाब से होनी चाहिए।

ये हथियार अड़ोस-पड़ोस के देशों से आए हुए आयातित हथियार भी नहीं है, ये यूपी-बिहार, या एमपी जैसी जगहों पर कुटीर उद्योग की तरह बनते हैं, और मामूली सी पूछताछ से भी ये दबे-छुपे मिल जाते हैं। बहुत से मामलों में पुलिस पकड़ाए अपराधियों या निगरानीशुदा बदमाशों से ऐसे हथियार बरामद करती है, लेकिन इन्हें बनाने वाले घरों तक शायद पुलिस नहीं पहुंच पाती, क्योंकि ऐसे कुटीर उद्योग पकड़ाने की खबरें तो नहीं आती हैं।

अब पुलिस से परे अगर देखें तो घरों के भीतर जिस तरह का माहौल दिखता है, वह एक निहायत लापरवाही का है। जो मां-बाप ऐसी लापरवाही से घर पर अवैध हथियार रखते हैं कि उनके बच्चे ही उठाकर स्कूल ले जाएं, तो उन परिवारों का वातावरण कुल मिलाकर बहुत खराब रहता होगा। वहां पर हिंसा और अपराध की चर्चा आम बात रहती होगी, परिवार के लोगों का चाल-चलन गड़बड़ रहता होगा, और ऐसे में बच्चों पर कैसा असर पड़ता है, यह इन तीन घटनाओं से जाहिर है। इसलिए इन घटनाओं में कोई मौत न होना राहत की बात नहीं है, बल्कि ये खतरे के संकेत हैं कि समाज में एक पीढ़ी किस तरह की तैयार हो रही है।
हमारा यह मानना है कि शराब, जुए, जुर्म, या सिगरेट-तम्बाखू के माहौल वाले घरों के बच्चे बालिग होने के पहले ही इन आदतों को पकड़ लेते हैं, और वक्त के पहले ही पटरी से उतर जाते हैं। इसलिए ऐसे मां-बाप को भी यह समझने, या आसपास के लोगों को उन्हें समझाने की जरूरत है कि ऐसा माहौल न सिर्फ उनके अपने बच्चों के लिए खतरनाक रहता है, बल्कि उनके बच्चों से दूसरे बच्चों तक भी ऐसा नकारात्मक वातावरण पहुंचता है, और धीरे-धीरे समाज का अधिक हिस्सा इस बुरे असर का शिकार होता है। अब कल जांजगीर में मिडिल स्कूल का जो लडक़ा पकड़ाया है, वह बाल सुधारगृह भेज दिया गया है, और उसके पिता-चाचा को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है, और इन जगहों के माहौल के बारे में जो खबरें आती रहती हैं, उनके मुताबिक ये सब उन जगहों से अधिक बुरे मुजरिम बनकर निकल सकते हैं क्योंकि इन सरकारी जगहों पर मुजरिमों या जुर्म का राज चलता है।

यूपी-बिहार में तो बंदूकों की संस्कृति कुछ अधिक हावी है, इसलिए वहां की ये दो घटनाएँ तो समझ पड़ती थीं। लेकिन छत्तीसगढ़ में तो लाइसेंसी बंदूकों की भी संस्कृति वैसी नहीं है, और अवैध हथियारों की भी बड़ी मौजूदगी की चर्चा नहीं है। ऐसे में यहां के लोग सावन में तीर्थयात्रा पर जाकर लौटते से झारखंड से गैरकानूनी तमंचा खरीद लाएं, और ऐसी लापरवाही से रखें कि उनका बच्चा उसे स्कूल ले जाकर नुमाइश करता रहे, तो इससे सरकार और समाज के संभलने की जरूरत जरूर है।

ऐसा लगता है कि मारपीट या चाकूबाजी, गैंग बनाकर रहने वालों पर पुलिस को छापे कुछ अधिक डालने चाहिए ताकि अवैध हथियार बरामद हो सकें, और वे जहां पैदा हो रहे हैं, वहां तक भी पुलिस पहुंच सके। पुलिस को आदतन अपराधियों से भी यह पता लग सकता है कि और कौन-कौन से मुजरिम कैसे-कैसे हथियार रखे हुए हैं। हम अपने आसपास रोजाना चाकूबाजी देख रहे हैं, जो लोग चाकू से हमला करते हैं, उन्हें तो पास आकर वार करना पड़ता है, जो लोग वैध-अवैध तमंचों से हमला करते हैं, वे तो कुछ दूरी से भी मार सकते हैं। इसलिए ऐसे हथियारों की मौजूदगी पर तेज और असरदार कार्रवाई होनी चाहिए, वरना कब किसकी जिंदगी खतरे में पड़ जाए, इसका ठिकाना नहीं है।

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