दागी नेताओं पर आजीवन पाबंदी के खिलाफ है केंद्र सरकार

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार आपराधिक मामलों में दोषी ठहराए जाने वाले राजनेताओं पर आजीवन पाबंदी लगाने के खिलाफ है। केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में इसका विरोध किया। कहा कि 6 साल के लिए डिसक्वालिफिकेशन पर्याप्त है। इस तरह की अयोग्यता पर फैसला लेना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध  लगाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई। केंद्र ने कहा, ‘याचिका की मांग कानून को दोबारा लिखने या संसद को किसी खास तरीके से कानून बनाने का निर्देश देने के जैसी है। ये पूरी तरह से न्यायिक समीक्षा की शक्तियों के विपरीत है।

‘ वकील अश्विनी उपाध्याय ने 2016 में जनहित याचिका लगाई थी, जिसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। उन्होंने पूछा था कि राजनीति पार्टियों को यह बताना चाहिए कि आखिर वे अच्छे छवि वाले लोगों को क्यों नहीं खोज पाते हैं।

याचिका में कहा गया था कि देश में सांसदों-विधायकों के खिलाफ क्रिमिनल केसों को जल्द खत्म किया जाए और दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए। केंद्र सरकार ने कहा कि आजीवन अयोग्यता वह अधिकतम पेनल्टी है जो प्रावधानों के तहत लगाई जा सकती है।

ऐसा अधिकार संसद के पास है। यह कहना अलग है कि एक शक्ति मौजूद है और यह कहना दूसरी बात है कि इसका हर मामले में अनिवार्य रूप से प्रयोग किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने जवाब पेश करते हुए कहा कि  याचिकाकर्ता के उठाए मुद्दों का असर व्यापक है। जो साफ तौर पर संसद की विधायी नीति के तहत आते हैं। इस संबंध में न्यायिक समीक्षा की रूपरेखा में जरूरी बदलाव किया जाना चाहिए सुप्रीम कोर्ट ने कई बार माना है कि एक या दूसरे ऑप्शन पर विधायी विकल्पों के असर पर अदालतों में सवाल नहीं उठाया जा सकता है। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 (1) के तहत अयोग्यता की अवधि आरोप साबित होने की तारीख से 6 साल या जेल के मामले में रिहाई की तारीख से 6 साल थी।

अयोग्यता संसदीय नीति के मामले में एक समय तक सीमित है। याचिकाकर्ता की इस मुद्दे की समझ को फिर से स्थापित करना और आजीवन प्रतिबंध लगाना सही नहीं होगा। न्यायिक समीक्षा के मामले में न्यायालय प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर सकता है। हालांकि याचिकाकर्ता की मांगी गई राहत ने अधिनियम की धारा 8 की सभी उप-धाराओं में 6 साल के बजाय ‘आजीवन’ पढ़ने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में दिया था फैसला अप्रैल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला देते हुए कहा था कि कम से कम 2 साल की सजा पाने वाले विधायकों और सांसदों को सदन से तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया जाए। इसमें अपील करने की 3 महीने की अवधि को नकार दिया गया था।

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