France Protest: नेपाल में प्रदर्शनों की आग थमी भी नहीं कि अब फ्रांस भी बड़े पैमाने पर सरकार विरोधी प्रदर्शनों की चपेट में आ गया है।
राजधानी पेरिस समेत कई शहरों की सड़कों पर बुधवार को हालात बिगड़ गए, जब लाखों लोग सरकार की नीतियों और बजट कटौती के खिलाफ उतर आए।
प्रदर्शन इतना व्यापक था कि इसे ‘ब्लॉक एवरीथिंग मूवमेंट’ यानी ‘सबकुछ रोक दो आंदोलन’ नाम दिया गया है।
फ्रांस की सड़कों पर इस दौरान आगजनी, तोड़फोड़ और पुलिस के साथ झड़पें देखने को मिलीं।
गृह मंत्री ब्रूनो रेतेयो ने बताया कि देशभर में लगभग 1 लाख लोग प्रदर्शन में शामिल हुए।
सरकार ने हालात को नियंत्रित करने के लिए 80 हजार पुलिसकर्मी तैनात किए।
जबकि अब तक 300 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
अकेले पेरिस में 132 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया।
कैसे भड़क गई इतनी बड़ी हिंसा?
फ्रांस में इन प्रदर्शनों के पीछे कई कारण हैं, जिनमें सबसे अहम है बजट कटौती और राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की नीतियों से नाराजगी।
1. राष्ट्रपति मैक्रों की नीतियां – आम जनता का मानना है कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की नीतियां गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए नुकसानदेह हैं। उनका आरोप है कि सरकार की आर्थिक नीतियों से सिर्फ अमीर वर्ग को फायदा मिलता है, जबकि आम लोग महंगाई और बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं।
2. बजट में भारी कटौती – हाल ही में संसद में पेश किए गए बजट फ्रेमवर्क में 44 अरब यूरो यानी करीब 4 लाख करोड़ रुपये की कटौती का प्रस्ताव रखा गया। इसमें सामाजिक योजनाओं और पेंशन पर रोक भी शामिल है। यूनियनों और वामपंथी दलों का कहना है कि यह कदम जनता की जेब पर सीधा असर डालेगा और जीवनस्तर और खराब होगा।
3. सरकार में अस्थिरता – पिछले दो सालों में फ्रांस में पांच प्रधानमंत्री बदले जा चुके हैं। यह लगातार बदलाव जनता के गुस्से को और भड़का रहा है। हाल ही में संसद में विश्वास मत खोने के बाद प्रधानमंत्री फ्रांस्वा बायरो को इस्तीफा देना पड़ा।
4. ‘ब्लॉक एवरीथिंग’ को वामपंथी समर्थन – वामपंथी गठबंधन और ट्रेड यूनियनों ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया है। सोशल मीडिया पर शुरू हुए इस अभियान ने तेजी से रफ्तार पकड़ी और देखते ही देखते हजारों लोग सड़कों पर उतर आए।
पेरिस में हालात सबसे खराब
राजधानी पेरिस में बुधवार को हालात सबसे ज्यादा तनावपूर्ण रहे।
यहां प्रदर्शनकारियों ने मुख्य सड़क बेल्टवे को कई बार ब्लॉक करने की कोशिश की।
कचरे के डिब्बों में आग लगाई गई और पुलिस पर सामान फेंका गया।
पेरिस पुलिस के मुताबिक, करीब एक हजार प्रदर्शनकारी गारे दु नॉर्ड रेलवे स्टेशन में घुसने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पुलिस ने समय रहते हालात काबू में कर लिए।
इसके अलावा कई प्रदर्शनकारियों ने सरकारी बसों और वाहनों में तोड़फोड़ की। अन्य शहरों में भी झड़प देखने को मिली।
रेन शहर में प्रदर्शनकारियों ने एक बस में आग लगा दी। दक्षिण-पश्चिमी फ्रांस में बिजली की लाइन काट दी गई, जिसके बाद ट्रेन सेवाएं रोकनी पड़ीं।
मार्सेय में पुलिस ने करीब 300 प्रदर्शनकारियों को मुख्य सड़क जाम करने से रोका। कुल मिलाकर, 30 से ज्यादा जगहों पर यह आंदोलन फैल चुका है।
श्रमिकों और यूनियनों का भी जुड़ा गुस्सा
प्रदर्शन सिर्फ आम जनता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि मजदूर संघ और कर्मचारी संगठन भी इसमें कूद पड़े हैं।
पेरिस में श्रम मंत्रालय के बाहर सैकड़ों कर्मचारियों ने वेतन बढ़ोतरी की मांग को लेकर प्रदर्शन किया।
सीजीटी यूनियन के नेता अमार लाघा ने कहा कि 10 साल नौकरी करने के बाद भी कर्मचारियों को 1600 यूरो नेट से ज्यादा वेतन नहीं मिलता।
सरकार सिर्फ खर्च घटाने और अमीरों को फायदा पहुंचाने की नीतियां बना रही है, जबकि मजदूरों और कर्मचारियों की हालत लगातार बिगड़ रही है।
औशां, कार्फूर और मोनोप्रिक्स जैसी बड़ी कंपनियों के कर्मचारी भी इस प्रदर्शन में शामिल हुए।
यूनियनों को उम्मीद है कि यह आंदोलन आने वाली 18 सितंबर की राष्ट्रीय हड़ताल का आधार बनेगा।
वामपंथी और ग्रीन पार्टियों का समर्थन
फ्रांस के इस आंदोलन को विपक्षी दलों का भी समर्थन मिल रहा है।
वामपंथी पार्टी फ्रांस अनबाउंड (LFI) के नेता जां-ल्यूक मेलेंशों ने पहले ही इस आंदोलन का समर्थन किया था। अब अन्य वामपंथी और ग्रीन पार्टियां भी इससे जुड़ गई हैं।
मजदूर संघठनों ने साफ कर दिया है कि जब तक राष्ट्रपति मैक्रों और उनकी नीतियों में बदलाव नहीं होता, तब तक विरोध जारी रहेगा।
नए प्रधानमंत्री के कार्यभार के बीच प्रदर्शन
ये विरोध ऐसे समय शुरू हुए हैं, जब राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सेबास्टियन लेकोर्नू को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है।
लेकोर्नू इससे पहले रक्षा मंत्री थे और मैक्रों के करीबी माने जाते हैं।
हालांकि, उनके पीएम बनने के साथ ही प्रदर्शनकारियों ने सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति तेज कर दी।
लेकोर्नू पिछले दो साल में फ्रांस के चौथे प्रधानमंत्री हैं।
इससे पहले मिशेल बार्नियर, गैब्रियल अटल और फ्रांस्वा बायरो को इस्तीफा देना पड़ा था।
मैक्रों ने लेकोर्नू को 2026 का बजट पेश करने और संसद को सहमत कराने की जिम्मेदारी दी है।
लेकिन मौजूदा हालात देखते हुए यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
फ्रांस में बजट बना तनाव का कारण
फ्रांस की राजनीति में बजट हमेशा विवाद का बड़ा कारण रहा है।
पिछले साल भी जब प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर ने बजट पेश किया था, तब विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर सरकार गिरा दी थी।
इसी तरह फ्रांस्वा बायरो की सरकार भी बजट प्रस्ताव पर संसद में विश्वास मत हार गई।
विपक्ष का कहना था कि उनकी नीतियां देश की अर्थव्यवस्था और जनता दोनों के लिए खतरनाक हैं। फ्रांस का कर्ज अब देश की GDP का 113% हो चुका है।
बायरो का कहना था कि अगर अभी से खर्चों पर लगाम नहीं लगाई गई तो आने वाले वर्षों में अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ पड़ेगा।
लेकिन विपक्ष और यूनियनों ने उनकी नीतियों को गरीबों के खिलाफ बताते हुए विरोध किया और उनकी सरकार गिर गई।
प्रदर्शनकारियों ने मैक्रों सरकार को घेरा
पेरिस और अन्य शहरों में हुए प्रदर्शनों ने फ्रांस की राजनीति को संकट में डाल दिया है।
राष्ट्रपति मैक्रों पहले ही विपक्ष और जनता के गुस्से का सामना कर रहे हैं।
अब जब यूनियनों, वामपंथी दलों और आम जनता सभी सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए हैं, तो आने वाले दिनों में स्थिति और गंभीर हो सकती है।
सीजीटी यूनियन का साफ कहना है कि जब तक राष्ट्रपति मैक्रों की विदाई नहीं होती, विरोध प्रदर्शन जारी रहेंगे।
फिलहाल, फ्रांस की मौजूदा स्थिति सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है। जहां एक ओर आर्थिक कर्ज और बजट घाटा घटाने का दबाव है, वहीं दूसरी ओर जनता सड़कों पर है।
नेपाल में जिस तरह युवा और जनता एकजुट होकर सरकार के खिलाफ खड़े हुए थे, वैसा ही नजारा अब फ्रांस में देखने को मिल रहा है।
अगर यह विरोध लंबा खिंचता है, तो राष्ट्रपति मैक्रों की लोकप्रियता और राजनीतिक पकड़ दोनों पर असर पड़ सकता है।
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