राहुल गांधी के मजदूरों के पांच मिनट साथ बैठकर बात करने को वित्तमंत्री ने वक्त की बर्बादी बताया, जबकि पचास दिन खुद सरकार ने उनके बर्बाद किये, लगता है, मोदी जी सही कहते हैं
-जेएनयू वालों को भारतीय संस्कार की समझ नहीं होती?
पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक )
इस समय देश मे सरकार विपक्ष की भूमिका में है। ये पहली बार है। मोदी सरकार के मंत्री कुछ करने से ज्यादा विपक्ष का मज़ाक उड़ाने में लगे हैं। ये इस सरकार की मारक क्षमता है, या मिट जाने का डर। सिर्फ घमंड भी हो सकता है। क्योंकि कांग्रेस मुक्त भारत के नारे, प्रयास के बावजूद कांग्रेस अभी कई कोनो में ज़िंदा है। इस पार्टी का नेतृत्व एक छोटा सा परिवार कर रहा। जिसमे मां, बेटा और एक बेटी है। इन तीनो को मोदी नाकारा तक कह चुके हैं। फिर भी इतना डर कि इस परिवार की हर बात का विरोध सरकार करे। क्या मोदी समझ रहे हैं कि कोरोना के संक्रमण की चपेट में उनकी सत्ता भी है।
कुछ बुनियादी सवाल है। क्या मजदूरों को अपने घर पहुंचाने का पैसा कांग्रेस पार्टी देगी, सोनिया गांधी का ये कहना गुनाह है? प्रियंका गांधी ने उत्तरप्रदेश के मजदूरों को लाने एक हजार बसें लगाई, क्या बेबस मजदूरों की सुध लेना गलत है? उन बसों को उत्तरप्रदेश सरकार ने कई घंटे तक प्रदेश की सीमा पर खड़ा रखा, क्यों ? बसें किसी राजनीतिक दल ने लगाई हो, उसमे सवार जनता तो इसी देश की है योगी जी। क्या राहुल गांधी का मजदूरों के साथ बैठना, उनके दर्द को बांटना इतना बड़ा अपराध है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को कहना पड़े- ये ठीक नहीं है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि राहुल गांधी ऐसा करके मजदूरों के घर वापसी का वक्त बर्बाद कर रहे हैं। उन्हें मजदूरों की इतनी ही फ़िक्र है, तो वे उनके सामान उठाकर, या बच्चों को गोद में लेकर उनके साथ चलते। इससे उनकी मदद भी होती और वक्त भी बचता। बड़ी नेक बात कही। पर मजदूरों के वक्त की फिक्रमंद ये सरकार उन्हें 50 दिन तक घर नहीं पहुंचा सकी । आखिर क्या कर रहे थे पचास दिनों तक ये वक्तिया इंतज़ाम कमिटी के मेंबर।
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मैडम निर्मला सीतारमण, राहुल गांधी ने वही किया जो भारतीय परम्परा में बरसों से निहित है। दुःख में किसी को भी दो मीठे बोल बड़ी ताकत देते हैं। ये बोल वक्त जाया नहीं करते, बल्कि उस पीड़ा को पार करने और आगे बढ़ने का हौसला देते हैं। खैर, आप इसे नहीं समझेंगी। क्योंकि आप उसी जेएनयू का प्रोडक्ट है जिसे खुद प्रधानमंत्री और पूरी मोदी सरकार देश विरोधी लोगों का समूह कहते हैं। मोदी जी के करीबियों का भी कहना है कि जेएनयू की शिक्षा में ही भारतीय धर्म और संस्कार नहीं है। ऐसे में जाहिर है, वित्त मंत्री भी सांत्वना के शब्दों का मतलब नहीं जानती होगी। उन्हें सिर्फ पैकेज समझ आते हैं।
मजदूरों के प्रति सांत्वना के बजाय वैसे भी आप इन दिनों उद्योग मित्र, उद्योग सेवा में लगी हैं। न तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपने राष्ट्र के सम्बोधन में इन मजदूरों के बारे में दो शब्द कहे, न आपने कोई सीधा पैकेज इन्हे दिया। प्रधानमंत्री ने पचास मिनट के सम्बोधन के बाद कहा कि डिटेल कल वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण देंगी। देश, हैरान कि जब कल वित्तमंत्री को ही सब बताना था तो आपने हमारा वक्त क्यों बर्बाद किया ? निर्मला जी आप इस वक्त पर क्या कहेंगी? योगी जी ने जो मजदूरों की गाड़ियां रोकी उस नष्ट वक्त का हिसाब आपके बहीखाते देंगे ? शायद कभी नहीं? क्योकि दूसरों पर अंगुली उठाना सबसे आसान है।
इलाइची – हां, याद आया सोनिया गांधी के हिंदी उच्चारण को लेकर आपकी पार्टी ने खूब मज़ाक उड़ाया। वे तो विदेशी हैं। आप और आपके राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर तो खालिस हिंदुस्तानी है पर आप दोनों से बेहतर हिंदी है सोनिया गांधी की आजकल। आप कब सीखेंगे ये ‘सूक्षम मंत्रालय” वाली हिंदी। इंतज़ार है….आतमनिर्भरता भी !