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अगर एआई भस्मासुर है तो उसके उपचार भी क्षीरसागर में कहीं विश्राम कर रहे हैं…
विजय मनोहर तिवारी
जब कम्प्यूटर आए तब भी बड़े खतरे की तरह देखा गया कि ये रोजगार छीन लेंगे। लेकिन अंतत: वे हमारी दक्षता और गति बढ़ाने में ही मददगार सिद्ध हुए। किंतु कम्प्यूटर के साथ इंटेलीजेंस जैसा कोई शब्द नहीं लगा था। वह एक उपकरण था, जिस पर काम करना था।
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के साथ ऐसा नहीं है। उसे हम कृत्रिम मेधा कह रहे हैं। यानी बुद्धिमत्ता का तत्व उसमें है और वह खतरे की घंटी जैसा कुछ बजा रहा है। वह विचारता है। वह चाहे गए रूप और आकार आपको आपकी सोच के परे जाकर देने में सक्षम है। वह कई तरह से सोच सकता है और वैसे ही विकल्प आपको दे सकता है। वह बहुत शक्तिशाली ढंग से और हमें आश्चर्य में डालते हुए अपना प्रदर्शन कर रहा है।
मगर ड्राइविंग सीट पर एक मनुष्य ही है। कमांड किसके हाथ में रहने वाली है? कृत्रिम मेधा के या वास्तविक मेधा के? अगर वह भस्मासुर जैसी भी कोई तकनीक है, जो एक दिन मानवीय मेधा को अपदस्थ करने पर उतारू है तो ध्यान रहे भारत की परंपरा में सब तरह की बीमारियों के उपचार हैं। अगर वह वाकई भस्मासुर है तो क्षीरसागर में कहीं उसके महावैद्य भी विश्राम कर रहे होंगे!
एआई को भी मेडिकल साइंस अपने ढंग से उपयोग करेगा, नई-नई बीमारियों के उपचार और सर्जरियों को सुगम बनाने में वह इसे वरदान की तरह लेगा। ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में भी उसका कौशल काम आएगा। खेतीबाड़ी में वह हमें बता रहा है कि किस मिट्टी और किन पौधों को किस समय किसकी जरूरत है? देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को और दुरुस्त करने में उसके बेहतरीन उपयोग होंगे। शासन की प्रणालियों में वह हमारी रोजमर्रा की बाधाओं को दूर करते हुए जल्दी नतीजे देगा। बैंकिंग में वह हमारा काम आसान करेगा। बाजार उसका सबसे ज्यादा दोहन करने पर उतारू अभी से है। एआई की मदद से वह हमारी जेबें हल्की करने के नए-नए करिश्मे करने लगा है।
तकनीक हमेशा ही दुधारी तलवार की तरह सामने आई है और मनुष्य अपने बुद्धि-विवेक से उसका उपयोग करता रहा है। विमान के अविष्कार परिवहन की तीव्र गति को आकाश में मापने के लिए हुए ताकि हम दुनिया के ओर-छोर पर आ-जा सकें। वह उसका विवेकपूर्ण उपयोग था। मगर एक दूसरा विचार भी है, जो बड़े आनंद से उन्हीं विमानों को बम बनाकर न्यूयार्क में अपनी ताकत दिखाने का घातक काम कर देता है। भारत को इन खतरों का अंदाजा रहा होगा। इसलिए हमारे यहाँ लोक कल्याण का भाव हर शक्ति के उपयोग के मूल में मंत्र की तरह रखा गया, जिसे आधुनिक भारत की शासन प्रणालियों में भी उतार लिया गया। शासन के सारे निर्णय, नीतियाँ और बजट लोक कल्याणकारी बताए जाते हैं।
मीडिया और फिल्म जैसी विधाओं में हम कंटेंट पर काम करते हैं। हम कहानियाँ लिखते हैं। हम मुद्दों पर बात करते हैं। मीडिया केवल एक आकर्षक कॅरिअर नहीं है। वह बड़ी जिम्मेदारी है। यहाँ एआई का उपयोग उसी लोकमंगल के सूत्र पर होना चाहिए। वह तकनीकी रूप से खबरें या लेख लिखने, संपादित करने और शानदार डिजाइन में परोसने वाले एक टूल की तरह उपयोग हो मगर अंतिम उत्पाद के रूप में वह आम लोगों तक कैसा जाए और उसका लक्ष्य क्या है, यह सोचने वाला एक मनुष्य ही होगा और वह हम हैं। यह एक शक्ति है और इसका उपयोग किनके लिए किस ढंग से किया जाना है, यह मानवीय मेधा के विचार वृत्त की बात है।
हम नहीं जानते कि आने वाले दशकों में एआई किस-किस रूप और आकार लेगा। यह तू डाल-डाल, मैं पात-पात जैसा रोमांचक खेल होने वाला है!
(विश्व जनसंपर्क दिवस के मौके पर पब्लिक रिलेशन सोसायटी ऑफ इंडिया के कार्यक्रम में। रवींद्र भवन, भोपाल।)
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