इंदौर। मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार में 28 कैबिनेट सदस्यों को विभागों का बंटवारा भी हो गया. इसके साथ ही करीब 11 विधायकों ने बगावत का झंडा भी बुलंद कर रखा है। अभी चर्चा में वे हैं, जो मंत्री बन गए। पर कई ऐसे कद्दावर नेता हैं, जो वरिष्ठ होने के साथ ही बड़े नेताओं के करीबी भी है, पर मंत्री नहीं बन सके। इन पर सबका एक ही सवाल हैं ये मंत्री क्यों नहीं बन पाए। मंत्रिमंडल मे इन दिग्गजों की गैरमौजूदगी के पीछे कांग्रेस की गुटीय राजनीति को भी एक बडा कारण माना जा रहा है। कुछ को जातिगत समीकरण के कारण भी मंत्रीपद से वंचित होना पडा। कुछ को बड़े नेताओं के बेटों के कारण पद नहीं मिल सके। जानिये किस बड़े नेता को क्यों नहीं मिला मंत्री पद।
1. के.पी. सिंह – पिछोर से विधायक, दिग्विजय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री रहे। ग्वालियर-चंबल संभाग के दमदार नेता। संभावित मंत्री के रूप में पहले दिन से ही इनका नाम चर्चा में था। एक समय दिग्विजय सिंह के खासमखास थे अब सिंधिया के नजदीकी और शायद इसी का खामियाजा उठाना पड़ा। शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद न रहकर अपनी नाराजी दर्शा दी। समर्थकों ने भी राजभवन के बाहर प्रदर्शन कर दिया।
2. बिसाहू लाल सिंह – अनूपपुर से विधायक विंध्य क्षेत्र के कद्दावर नेता। बड़े आदिवासी नेताओं में गिनती। दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल में लोक निर्माण और आदिम जाति कल्याण जैसे महत्वपूर्ण महकमों के मंत्री रहे। विंध्य से कांग्रेस के जो चुनिंदा विधायक चुनकर आए हैं, उनमें से एक और वरिष्ठता के नाते यह माना जा रहा था कि इन्हें हर हालत में मंत्रिमंडल में स्थान मिलेगा, ऐन वक्त पर सूची से नाम बाहर हुआ।
3. राज्यवर्धनसिंह दत्तीगांव – बदनावर से विधायक, तीसरी बार चुने गए, ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक। महेन्द्रसिंह कालूखेड़ा के निधन के बाद सिंधिया खेमे के प्रमुख रणनीतिकार। वरिष्ठता के नाते भी मंत्री पद के लिए इनका दावा था, सिंधिया ने भी पूरी ताकत लगा रही थी। जातिगत समीकरण मंत्री पद में बाधा बने। समर्थकों ने इनकी राह रोकने का आरोप दिग्विजय सिंह पर लगाया है। भविष्य में मौका मिलने की उम्मीद।
4. हिना कांवरे – लांजी से विधायक, दूसरी बार चुनी गईं। मुख्यमंत्री कमलनाथ के कट्टर समर्थकों में गिनती है। इनके पिता लिखीराम कांवरे जब दिग्विजय मंत्रिमंडल में परिवहन मंत्री थे, तभी उनके गृह गांव में नक्सलियों ने उनकी हत्या कर दी थी। ओबीसी का प्रतिनिधित्व करती हैं। मंत्री पद की मजबूत दावेदार थी और संकेत भी मिल गया था। ऐनवक्त पर सूची से नाम हटा और इसकी भरपाई का आश्वासन भी। भविष्य में कोई पद मिल सकता है।
5. दीपक सक्सेना – छिंदवाड़ा से विधायक, मुख्यमंत्री कमलनाथ के कट्टर समर्थक। पहले भी मंत्री रह चुके हैं और इस बार भी मंत्री पद को लेकर आश्वस्त थे। महाकौशल से जो कांग्रेस के विधायक चुनकर आए हैं, उनमें सबसे वरिष्ठ। मंत्री इसलिए नहीं बन पाए कि खुद मुख्यमंत्री इसी जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। मंत्री न बनने के बावजूद रुतबा मंत्री जैसा ही है। इन्हें कोई अहम जिम्मेदारी जल्दी ही सौंपी जाएगी।
6. हरदीपसिंह डंग – सुवासरा से विधायक, दूसरी बार विधायक चुने गए और इकलौते सिख विधायक। मंदसौर-नीमच की सात सीटों में से कांग्रेस केवल यही सीट पाई है। मंत्री बनेंगे ऐसी उम्मीद पालकर बैठे थे और यह मान रहे थे कि मीनाक्षी नटराजन इनकी जोरदार पैरवी करेंगी। कमलनाथ से भी मदद की अपेक्षा थी पर निराशा हाथ लगी। इनका असंतोष झलकने लगा है। मंगलवार को जब नए मंत्री शपथ ले रहे थे, तब ये बहुत मुखर थे।
7. रामलाल मालवीय – घट्टिया से विधायक, तीसरी बार चुने गए हैं। पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू के बेटे अजीत बौरासी को हराकर विधायक बने। दिग्विजय सिंह के कट्टर समर्थक, इस बार मंत्री बनने की पूरी संभावना थी। संभावत: जातिगत समीकरण आड़े आ गए क्योंकि जिस बलाई समुदाय से ये हैं उसी से डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ। वरिष्ठता के नाते साधौ इन पर भारी पड़ी। निकट भविष्य में इन्हें भी मौका मिल सकता है।
8. दिलीपसिंह गुर्जर – खाचरौद-नागदा से विधायक, चौथी बार विधायक बने। इन्हें मंत्री बनाने के लिए सचिन पायलट ने भी जोर लगाया था। उम्मीद थी कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से मदद मिल जाएगी और मंत्री बनेंगे, लेकिन सफलता नहीं मिली। जातिगत समीकरण इनके मंत्री पद में भी बाधा बने। जिस गुर्जर समुदाय से ये हैं उसी से हुकुमसिंह कराड़ा भी हैं और कमलनाथ से नजदीकी के कारण कराड़ा को पहले प्राथमिकता मिली।
9. झूमा सोलंकी – भीकनगांव से विधायक, दूसरी बार विधायक बनीं। दिग्विजय सिंह के भरोसे मंत्री पद की दौड़ में थी, लेकिन उन्होंने इनके बजाय सचिन यादव को प्राथमिकता पर रखा। खरगोन जिले से दो मंत्रियों को मंत्रिमंडल में स्थान मिला है, पर सोलंकी जगह नहीं बना पाईं। भविष्य में कोई पद देकर संतुष्ट किया जा सकता है।