50 Years of Emergency: 50 साल पहले आज के दिन ही देश ने झेला था आपातकाल

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50 Years of Emergency-आज आपातकाल को लगे हुए पूरे 50 साल हो गए हैं। भाजपा आपातकाल को लोकतंत्र का काला अध्याय बता रही है आखिर भाजपा ने भारतीय लोकतंत्र में एक काला क्यों अध्याय बताया? आपातकाल से जुड़ी कुछ अहम मुद्दों को यहां जानेंगे।

आपातकाल क्यों लगा? और इसके पीछे तर्क और राजनीती क्या थी जिसे लेकर आज भी देशभर में इसे भुनाया जा रहा है। जानते हैं विस्तार से…..

21 महीने रहा आपातकाल

साल 1975 में 25 और 26 जून की दरम्यानी रात से 21 मार्च 1977 तक (21 महीने) तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की थी।

अनुच्छेद 352 के तहत हुई थी घोषणा

आज इस आपातकाल को 50 साल पूरे हो गए। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी।

आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर भाजपा ने कांग्रेस पर तीखा प्रहार किया। इसी के साथ विपक्षी पार्टी द्वारा लोकतंत्र की हत्या करने और उसे बार-बार नुकसान पहुंचाने का भी आरोप लगाया।

भाजपा ने कहा काला अध्याय

भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने आपातकाल का जिक्र करते हुए कांग्रेस को घेरा। उन्होंने कहा कि आज भारतीय लोकतंत्र की रक्षा का दावा करने वाले संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए उठाई गई आवाजों को दबाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। भाजपा ने आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र में एक काला अध्याय बताया है।

आपातकाल को भाजपा ने आपातकाल का मुद्दा तब उठाया, जब विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व

वाली सरकार पर संविधान के खिलाफ काम करने का आरोप लगाया। पीएम मोदी के अलावा भाजपा के

सभी शीर्ष नेताओं ने आपातकाल की आलोचना की।

किस परिस्थिति में लगाया गया आपातकाल

आपातकाल का मुख्य कारण इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को बताया जाता है।

उस फैसले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को चुनाव प्रचार अभियान में कदाचार का दोषी करार दिया गया था।

दरअसल, 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी बड़े अंतर से जीती थीं। पार्टी को भी बड़ी जीत दिलाई थी।

प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने इंदिरा की जीत पर सवाल उठाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया।

राजनारायण ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया है।

मामले की सुनवाई हुई और इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया।

इंदिरा गांधी सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम देश में कई ऐतिहासिक घटनाओं की वजह बना।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद समय था।

25 जून 1975 को घोषणा के बाद 21 मार्च 1977 तक यानी की करीब 21 महीने तक भारत में आपातकाल लागू रहा।

आपातकाल से यूँ प्रभावित हुआ देश

आपातकाल के दौरान देशभर में चुनाव स्थगित हो गए थे।

आपातकाल की घोषणा के साथ हर नागरिक के मौलिक अधिकार निलंबित कर दिए गए।

लोगों के पास न तो अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार था, न ही जीवन का अधिकार।

पांच जून की रात से ही देश में विपक्ष के नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गई थीं।

अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जयप्रकाश नारायण जैसे बड़े नेताओं को जेल भेज दिया गया।

इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जेल में डाला गया था कि जेलों में जगह ही नहीं बची।

प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। हर अखबार में सेंसर अधिकारी रख दिये गये थे।

उस सेंसर अधिकारी की अनुमति के बिना कोई खबर छप ही नहीं सकती थी।

अगर किसी ने सरकार के खिलाफ खबर छापी तो उसे गिरफ्तारी झेलनी पड़ी।

आपातकाल के दौरान प्रशासन और पुलिस ने लोगों को प्रताड़ित किया, जिसकी कहानियां बाद में सामने आईं।

आरके धवन ने बताई अंदरूनी बातें

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी सेक्रेटरी रहे आरके धवन मीडिया को दिए एक साक्षात्कार में आपतकाल से जुड़े कई अहम बातों का खुलासा किया।

पश्चिम बंगाल के तत्कालीन सीएम एसएस राय ने जनवरी 1975 में ही इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी।

तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल पर आपत्ति नहीं थी। वह इसके लिए तुरंत तैयार हो गए थे।

आपातकाल के दौरान जबरन नसबंदी और तुर्कमान गेट पर बुलडोजर चलवाने जैसे अत्याचारों से इंदिरा अनजान थीं।

इंदिरा को यह भी नहीं पता था कि संजय अपने मारुति प्रॉजेक्ट के लिए जमीन अधिग्रहण कर रहे थे।

धवन के मुताबिक इस प्रॉजेक्ट में उन्होंने ही संजय की मदद की थी और इसमें कुछ भी गलत नहीं था।

मेनका गांधी ने हर कदम पर पति संजय गांधी का साथ दिया था।

आपातकाल इंदिरा के राजनीतिक करियर को बचाने के लिए लागू नहीं किया गया था।

वह खुद इस्तीफा देने के लिए तैयार थीं। लेकिन मंत्रिमंडल सहयोगियों ने उन्हें इस्तीफा न देने की सलाह दी।

धवन ने बताया कि इंदिरा को उनके प्रधान सचिव पीएन धर ने एक रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा था कि आईबी के अनुसार चुनाव होने पर वह 340 सीटें जीतेंगी।

इसके बाद इंदिरा ने 1977 के चुनाव करवाए थे। लेकिन उस चुनाव में इंदिरा को बड़ी हार मिली।

इंदिरा 1977  की हार से दुखी नहीं थीं। हार की खबर मिलने के बाद इंदिरा ने कहा था ‘शुक्र है, मेरे पास अब अपने लिए समय होगा।’

 

 

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