निधीश त्यागी (वरिष्ठ पत्रकार )
भारत के प्रधानमंत्री ने आज जब राष्ट्र के नाम हिंदी में संदेश जारी किया, तो उसमें अपेक्षित था कि इतने दिनों बाद जब वह कुछ बोलने आ रहे हैं तो बतौर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे जिम्मेदार पद पर बैठ कर वे कुछ जरूरी सवालों के जवाब देंगे, जो पहलगाम मसले, उसके बाद छिड़े भारत- पाक संघर्ष और फिर संघर्ष विराम को लेकर लगातार जनता के जहन में उठते रहे हैं. जो बातें कहने से रह गईं वे कुछ इस तरह से हैं.
-आतंकवादी कौन थे, कहां से आए थे, कैसे आ गये, कैसे चले गये. कुछ पता चला?
– इतने सैलानियों की मौजूदगी के बाद पहलगाम से सुरक्षा हटाने का फैसला किसका, क्यों, किस प्रक्रिया से हुआ.
– इस भूल चूक गलती का प्रभारी कौन है. इंटेलिजेंस फेल्यर की. सुरक्षा की. उन पर क्या कार्रवाई हुई.
– तपस्या में यहां जो कमी रह गई, उसकी माफी चाहे तो मांगी जा सकती थी.
– प्रधानमंत्री को ऐसा क्यों लगा कि जब पहलगाम का मामला इतना गंभीर है, (जैसा उन्होंने भाषण में कहा भी), तो वे चुनावी रैली और अडानी वाले कार्यक्रम में हिस्सा लेने कैसे चले गये.
– साथ ही वे सर्वदलीय बैठकों में आने से क्यों कतरा रहे थे.
– देश को अभी तक नहीं पता कि कितने भारतीयों की जानें गई हैं. कितने घायल हुए. पूरी दुनिया में उन महंगे जहाजों को गिराने की बात हो रही है, जिनके विवादास्पद सौदों के बारे में बात करने से उनकी सरकार बचती रही है. उन जहाजों का क्या हुआ? न वे बता रहे हैं न उनकी सरकार.
– पर अपने भाषण में वे सौ आतंकवादियों के मारे जाने का एलान कर रहे थे (हालांकि राउंड फिगर के नंबर आलसी और गैर जिम्मेदाराना रिपोर्टिंग बताते हैं). हालांकि इनमें से प्रमुख अजहर मसूद बच गया, उसके परिवार के लोग और साथी मारे गये बताए गये.
– इतने सारे नेताओं के गले लगने, उनके मंहगे तोहफे देने, उन्हें झूले झुलाने, उनके हथियार खरीदने के बावजूद जब भारत पर संकट की ये घड़ी आई तो वे पाकिस्तान के खिलाफ क्यों नहीं हुए.
-देश को ये नहीं बताया कि हमले से क्या हासिल हुआ. और सीज़ फायर से क्या.
– ये भी नहीं कि अमेरिकी राष्ट्रपति को यकायक भारत के बारे में भ्रामक प्रचार करने की क्या पड़ी है. वह बार बार क्यों कह रहे हैं कि उन्होंने बीच बचाव कर के दोनों देशों के बीच सुलह और संघर्ष विराम करवा दिया. और ये भी कि व्यापार के लालच में दोनों देश सुलह के लिए मान गये.
– भारत की कश्मीर को लेकर विदेश नीति बदल गई है, तो देश को भरोसे में लेना चाहिए था. क्या अब कश्मीर मध्यस्थता के लिए खुल गया है, ये स्पष्ट मोदी ने तो नहीं किया, पर ट्रम्प और दूसरे राजनयिक ऐसा कह रहे हैं. ट्रम्प जब कश्मीर पर मध्यस्थता की खुले आम पहल कर रहे हैं, तो प्रधानमंत्री को भारत की नीति साफ करनी चाहिए.
-पूरे भाषण में सिंदूर की दुहाई तो मोदी जी ने कई बार दी, पर जिनका सिंदूर उजड़ा, उनकी जो तौहीन मोदी जी के समर्थकों ने की, उसके बारे में चुप्पी बनाए रखी. सीज़ फायर का फैसला मोदी जी के स्तर पर ही हुआ होगा, अगर ट्रम्प ने करवाया है तो, पर उसका एलान करने वाले विदेश सचिव विक्रम मिसरी की जो बिना बात सोशल मीडिया में ट्रोलिंग हुई उसके बारे में उन्होंने बोलना जरूरी और उचित नहीं समझा.
-राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए मोदी जी चाहते तो दो शब्द मुख्यधारा के झूठे, मक्कार और धूर्त एंकर और उनके मालिकान के लिए भी कह सकते थे, कि तमीज़ में रहें, पर शायद वह जरूरी और उचित नहीं लगा. जो फेक न्यूज फैला रहे थे. जिनकी खिल्ली पूरी दुनिया और पाकिस्तान में उड़ रही थी.
-आखिरी बात, उन्होंने कश्मीर की जनता के बारे में कुछ कहना जरूरी नहीं समझा, जो आतंकवाद के खिलाफ इतनी संख्या में पहली बार सड़कों पर उतरी, और जब बाकी भारत में जो बच्चे पढ़ने और नौजवान कारोबार करने गये, उनके साथ हिंसा और दूसरी ज्यादतियां की गईं.
ये सारे मुद्दे देश के लिए तो जरूरी थे. भले संदेश में आने से रह गये हों.
You may also like
-
लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश ही आपातकाल है… इमरजेंसी के 50 साल पर बोले अमित शाह
-
MP के गुना में कुएं में जहरीली गैस से बड़ा हादसा: बछड़े को बचाने उतरे 6 में से 5 लोगों की मौत
-
अब दिलजीत दोसांझ पर लटकी बैन की तलवार! पाकिस्तानी एक्ट्रेस हानिया आमिर के साथ काम करना पड़ा भारी
-
अमेरिका ने वीजा नियम किए सख्त, अब छात्रों के सोशल मीडिया अकाउंट भी होंगे चेक
-
दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने के चक्कर में खो गयी फुलेरा की आत्मा