सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )
तिरुपति के लड्डुओं के लिए मिलावटी घी सप्लाई करने वाली तीन डेयरी कंपनियों के मालिकों को सीबीआई ने गिरफ्तार किया है। कुछ महीने पहले जब गुजरात की एक डेयरी प्रयोगशाला से यह रिपोर्ट आई थी कि तिरुपति के लड्डुओं में गाय और सुअर की चर्बी मिला हुआ घी इस्तेमाल हो रहा है, तब बड़ा हंगामा हुआ था।
हर बरस करोड़ों लोग तिरुपति के दर्शन को जाते हैं, और कई करोड़ लड्डू का प्रसाद पाकर, या अधिक प्रसाद खरीदकर लौटते हैं। तिरुपति की मान्यता इतनी अधिक है कि दक्षिण भारत में अनगिनत कारोबारी तिरुपति के भगवान को अपने कारोबार में भागीदार बनाते हैं, और कमाई में उनका हिस्सा दान में भेज देते हैं।
यह प्रचलित चर्चा है कि वे अपने इंकम टैक्स रिकॉर्ड में भी यह भागीदारी दिखाते हैं, अब यह पता नहीं कितनी सच बात है। अभी जिन तीन कंपनियों के मालिकों को मिलावटी घी सप्लाई के जुर्म में गिरफ्तार किया गया है, उनमें एक वैष्णवी डेयरी, एक भोले बाबा डेयरी, और एक ए.आर.डेयरी के नाम आए हैं, और गिरफ्तार होने वाले लोगों में विपिन जैन, पोमिल जैन, अपूर्व चावड़ा, और राजू राजशेखरन हैं।
इनकी कंपनी, और इनके खुद के नामों का एक महत्व है कि ये सारे के सारे जैन और हिन्दू नाम हैं जिनके बारे में यह माना जा सकता था कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय और हिन्दू आस्था के सबसे बड़े केन्द्र में प्रसाद के लिए घी सप्लाई करते हुए वे चर्बी सप्लाई करने के पहले मर जाना पसंद करेंगे। लेकिन उन्होंने धड़ल्ले से ऐसा घी सप्लाई किया, यह एक अलग बात है कि अब केन्द्र के सत्तारूढ़ गठबंधन के बड़े भागीदार चन्द्रबाबू नायडू के राज वाले आन्ध्र में तिरुपति मंदिर के नाम पर अप्रिय चर्चा खत्म करने के लिए अब उस घी को सिर्फ मिलावटी घी कहा जा रहा है, और चर्बी और जानवरों के नाम की चर्चा खत्म हो गई है।
आखिर तिरुपति आन्ध्र की पर्यटन अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है, और साथ-साथ हर बरस शायद इस मंदिर में डेढ़ हजार करोड़ का चढ़ावा आता है जिससे क्षेत्रीय विकास भी होता है।
किसी किस्म के अच्छे या बुरे कारोबार से किसी धर्म का कोई खास लेना-देना होता हो ऐसा हमें नहीं लगता। पाकिस्तान में ईदी फाउंडेशन के संस्थापक एक मुस्लिम बुजुर्ग दुनिया का सबसे बड़ा एम्बुलेंस नेटवर्क चलाते हैं, और हिन्दुस्तानियों को याद रखना चाहिए कि कई बरस पहले भारत से भटककर पाकिस्तान चली गई एक लडक़ी को भी अपने परिवार में उन्होंने रखा था।
दूसरी तरफ हिन्दुस्तान से बीफ निर्यात करने वाली कंपनियों के मालिकों में तकरीबन तमाम नाम हिन्दुओं के हैं, जिन्होंने अपनी कंपनियों के नाम मुस्लिम किस्म के रख लिए हैं। इसलिए तिरुपति के सालाना करोड़ों श्रद्धालुओं को चर्बी वाले लड्डू देने का जुर्म करने वाले हिन्दू और जैन निकले हैं, तो यह देश में आज के तनाव के माहौल में एक राहत की बात है।
लेकिन कुछ नास्तिकों के मन में इस पूरे सिलसिले से यह सवाल भी उठेगा कि जब ईश्वर के अपने घर में, तिरुपति के भगवान को चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में इस तरह की मिलावट हो रही थी, तो ऐसे मुजरिमों पर कोई दैवीय मार क्यों नहीं पड़ी? करोड़ों श्रद्धालुओं की शाकाहारी आस्था को खत्म करने वाले लोग अब तक गिरफ्तार होने के लिए जिंदा क्यों हैं?
ईश्वर खुद तो पत्थर की प्रतिमा की शक्ल में वहां पर हैं, और उन्हें चढ़ाया जाने वाला प्रसाद वे खुद तो खाते नहीं होंगे, उन्हें परोस देना मानकर, उसके बाद उसे श्रद्धालुओं में बांटा जाता होगा। ऐसे में ईश्वर का तो कोई नुकसान नहीं हुआ, लेकिन शाकाहारी श्रद्धालुओं की जिंदगी भर की कड़ाई अनजाने में खत्म हो गई।
यह बात भी कुछ अजीब लगती है कि जिसे अंतर्यामी माना जाता है, जिसे सर्वज्ञ, सर्वत्र, कण-कण में माना जाता है, उसकी नजरों से यह मिलावट कैसे बच गई? जिस जगह की आस्था इतनी है कि लोग वहां सिर मुंडाकर दर्शन के बाद लौटते हैं, प्रसाद का लड्डू पाते हैं, और बाकी परिचितों के लिए भी और प्रसाद खरीदकर लाते हैं, अपनी क्षमता से आगे बढक़र वहां की दान-थैली में रकम और गहने डालते हैं, उन सबकी आस्था के लिए यह एक बड़ी चुनौती हो गई होगी कि वहां के ईश्वर ने प्रसाद में ऐसी भयानक, हिंसक और मांसाहारी मिलावट कैसे हो जाने दी?
जिस ईश्वर को सर्वशक्तिमान माना जाता है, उसका चक्र हाथ की उंगली से निकलकर जाकर ऐसे डेयरी मालिकों के गले क्यों नहीं काट पाया? ऐसे ईश्वर के हाथ से बिजली कडक़कर क्यों नहीं निकली, और उसने जाकर इन लोगों को भस्म क्यों नहीं कर दिया? ऐसे कई सवाल लोगों के मन में उठ सकते हैं, यह एक अलग बात है कि आस्था के बाजार में सवालों को फुटपाथ पर भी कारोबार करने को जगह नहीं मिलती, धार्मिक पुलिस तुरंत ही तमाम प्रश्नवाचक चिन्हों को खदेडक़र बाहर कर देती है।
दूसरी तरफ हम यह भी देखते हैं कि मठों और मंदिरों के जमीन-जायदाद में घपला करने वाले लोगों का कुछ नहीं बिगड़ता। बल्कि बहुत से धार्मिक केन्द्रों को संभालने वाले धार्मिक मुखिया उन जगहों पर आर्थिक और नैतिक सभी किस्म का घोटाला करते रहते हैं, और यह सब तो उसी छत के नीचे होता है जिस छत के नीचे ईश्वर खुद बसते हैं। लोग बूढ़ी गायों के नाम पर, अनाथ बच्चों के नाम पर घोटाले करते रहते हैं, और उनका बाल भी बांका नहीं होता।
इन सबसे मन में यह सवाल उठता है कि क्या सचमुच ही धर्म कहीं किसी जुर्म के आड़े आता है? अभी लोगों ने देखा होगा कि राष्ट्रपति बनते ही डोनल्ड ट्रम्प अमरीका की परंपरा के मुताबिक एक चर्च गए थे, और वहां पर महिला बिशप ने प्रार्थना सभा में प्रवचन करते हुए ट्रम्प से सीधे-सीधे कहा कि उन्हें ट्रांसजेंडरों, आप्रवासियों पर रहम करनी चाहिए, उन्हें दयालु रहना चाहिए। उन्होंने बहुत सारी बातें कहीं, और ये बातें अमरीका में धर्म की राजनीति करने वाले, पक्के ईसाई डोनल्ड ट्रम्प के एक कान से घुसीं, और दूसरे कान से निकल गईं। उनके भीतर अगर धर्म कहीं था भी, तो उसे ये बातें छू भी नहीं पाईं।
यह पूरा सिलसिला ईश्वर की सत्ता, उसके जनकल्याणकारी होने, या उसके होने पर ही सवाल खड़े करता है। आपका क्या ख्याल है?
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