Siddaramaiah Wife Case: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की कार्यप्रणाली पर तीखी टिप्पणी की है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने सोमवार को ईडी को सख्त चेतावनी दी है।
कर्नाटक के MUDA केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ED का इस तरह इस्तेमाल क्यों हो रहा है?
राजनीतिक लड़ाई चुनाव तक ठीक, इसके लिए जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है।
हमारा मुंह मत खुलवाइए, वरना…
अदालत ने कहा कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को जांच एजेंसियों के जरिए सुलझाना संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है।
मुख्य न्यायाधीश गवई ने तल्ख शब्दों में कहा, हमारा मुंह मत खुलवाइए, वरना हमें ईडी को लेकर कठोर टिप्पणियां करनी पड़ेंगी।
राजनीतिक लड़ाइयां जांच एजेंसियों के माध्यम से नहीं, चुनावों में लड़ी जानी चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, मेरे पास महाराष्ट्र का कुछ अनुभव है। कृपया इस तरह की राजनीति को पूरे देश में मत फैलाइए।
MUDA केस में क्या है मामला?
यह टिप्पणी उस समय आई जब ईडी ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
जिसमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बी.एम. पार्वती को भेजे गए समन को रद्द कर दिया गया था।
मामला मैसूर अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (MUDA) से जुड़ा है।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मार्च 2024 में समन को खारिज किया था, जिसे ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
लेकिन, शीर्ष अदालत ने ईडी की अपील को खारिज कर दिया, साथ ही एजेंसी को फटकार भी लगाई।
पहले भी लग चुकी है ED को फटकार
सुप्रीम कोर्ट पहले भी ईडी की भूमिका पर सवाल उठा चुका है।
22 मई 2025 को तमिलनाडु के TASMAC घोटाले की सुनवाई हुई थी।
इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ईडी ने सारी हदें पार कर दी हैं। यह संघीय ढांचे का सीधा उल्लंघन है।
यह टिप्पणी तमिलनाडु स्टेट मार्केटिंग कॉर्पोरेशन (TASMAC) और राज्य सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान दी गई थी।
राजनीतिक हलचल तेज
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों ने राजनीतिक बहस को एक बार फिर गर्म कर दिया है।
विपक्ष लंबे समय से केंद्र सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाता रहा है।
अब जब देश की सर्वोच्च अदालत ने भी उसी दिशा में संकेत दिया है, तो यह बहस और धारदार हो गई है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का स्वागत करते हुए कहा कि यह ‘लोकतंत्र की जीत’ है।
वहीं भाजपा की ओर से अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि प्रवर्तन निदेशालय और केंद्र सरकार इस आलोचना से क्या सबक लेती हैं।
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