याद कीजिए—ज़ी टीवी के पत्रकार सुधीर चौधरी को नवंबर 2012 में उद्योगपति नवीन जिंदल से ₹100 करोड़ की रंगदारी मांगने के आरोप में तिहाड़ जेल जाना पड़ा था। गुजरात में भी पत्रकार महेष लांगा फिलहाल जेल में हैं। और दिव्य भास्कर के पत्रकार पर वसूली से 40 करोड़ के संपत्ति बनाने मामला दर्ज है।वे फरार है।
रमेश सवानी
पत्रकारिता का क्षेत्र काजलकोठरी जैसा है—इसमें बिना दाग लगे रह पाना बहुत कठिन है। पत्रकारों की आड़ में आजकल लुटेरे और वसूलीबाजों का प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है। कुछ तथाकथित पत्रकार पुलिस, रेवेन्यू अफसरों, नगरपालिका अधिकारियों, सचिवों और सत्ताधारी नेताओं से नज़दीकी का ढोंग रचकर वसूली और ब्लैकमेलिंग में जुटे हैं। नतीजतन पत्रकारिता की साख पर बट्टा लग रहा है।
कई ऐसे “पत्रकार” हैं जो छोटे-मोटे पोर्टल या यूट्यूब चैनल चलाकर लोगों से उगाही करते हैं। यलो जर्नलिज्म यानी भ्रामक और सनसनीखेज पत्रकारिता का दंश बढ़ता जा रहा है।
याद कीजिए—ज़ी टीवी के पत्रकार सुधीर चौधरी को नवंबर 2012 में उद्योगपति नवीन जिंदल से ₹100 करोड़ की रंगदारी मांगने के आरोप में तिहाड़ जेल जाना पड़ा था। गुजरात में भी पत्रकार महेष लांगा फिलहाल जेल में हैं।
यह बात केवल छोटे पत्रकारों तक सीमित नहीं है; बड़े अखबारों और न्यूज़ चैनलों के मालिकों तक में भी तिकड़मबाज़ी और सौदेबाज़ी के किस्से कम नहीं हैं। जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब एक प्रमुख अखबार में लगातार सरकार विरोधी खबरें छपती थीं, जो अचानक बंद हो गईं। कहा जाता है कि एक बार किसी संस्करण से मोदीजी का नाम हटाना भूल गए तो मालिक ने उस पत्रकार को नौकरी से निकाल बाहर किया था।
हालांकि यह कहना भी गलत होगा कि सभी पत्रकार एक जैसे हैं। आज भी कई ईमानदार, सच्चाई के पक्ष में खड़े पत्रकार हैं—जो अपने सिद्धांतों की भारी कीमत चुकाते हैं, झूठे मुकदमों का सामना करते हैं, लेकिन समझौता नहीं करते।
अब बात करते हैं गुजरात के डीबी डिजिटल (दैनिक भास्कर डिजिटल) के पत्रकार दीर्घायु व्यास की—जो आजकल पत्रकार कम, अपराधी ज़्यादा साबित हो रहे हैं।
अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने दीर्घायु व्यास के खिलाफ 2 अक्टूबर 2025 को ₹10 लाख की उगाही के मामले में BNS धारा 318(4) (छल/धोखाधड़ी) और 351(2) (धमकी) के तहत एफआईआर दर्ज की थी। उनके घर पर छापेमारी में बिना लाइसेंस की पिस्तौल, कारतूस और शराब मिली। वे तब से फरार हैं।
इसके अलावा 5 अक्टूबर 2025 को निकोल पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ एक और मामला दर्ज हुआ—इस बार PSI (पुलिस सब-इंस्पेक्टर) बनकर पहचान छिपाने, रिवॉल्वर से धमकाने और गाली देने के आरोप में। धाराएं हैं 170, 294(b), 323, 506(2), 388, 114 और आर्म्स एक्ट की धारा 25(1)(b)।
इतना ही नहीं, 9 अक्टूबर 2025 को एयरपोर्ट पुलिस स्टेशन में भी दीर्घायु व्यास पर ₹10,45,000 की उगाही का मामला दर्ज हुआ—धाराएं 384, 420, 506(1), 114 BNS के तहत।
8 अक्टूबर 2025 को क्राइम ब्रांच ने उनके घर पर नोटिस चिपकाया था कि अगर 24 घंटे में वे हाज़िर नहीं होते तो उन्हें भगोड़ा घोषित करने की प्रक्रिया शुरू होगी।
क्राइम ब्रांच के पास रिलीफ रोड और सिंधी मार्केट के 10 से ज़्यादा व्यापारियों की शिकायतें हैं—जिनका कहना है कि दीर्घायु व्यास उनसे लाखों रुपए वसूल चुके हैं। उन्होंने धमकी दी थी कि “तुम लोग डुप्लिकेट सामान बेचकर कॉपीराइट उल्लंघन करते हो और GST चोरी करते हो—मैं ये खबरें चला दूँगा।”
दीर्घायु व्यास ने कथित तौर पर उगाही से कई संपत्तियाँ अर्जित की हैं—GIFT City (गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक सिटी) के पास ₹40 करोड़ की ज़मीन, कई मकान और अन्य अघोषित संपत्तियाँ। सवाल उठता है—क्या दीर्घायु व्यास ने कभी आयकर भरा है? उनकी संपत्ति उनकी आय से कहीं अधिक है—जो लूट का साफ़ सबूत है।
व्यापारियों ने पुलिस को CCTV फुटेज और व्हाट्सऐप कॉल रिकॉर्डिंग के सबूत दिए हैं। फिलहाल दीर्घायु व्यास फरार हैं, लेकिन अब उन्हें “पत्रकार” नहीं, “क़ैदी” कहा जाना चाहिए।
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। पर जब दीर्घायु व्यास जैसे लालची, अपराधी मानसिकता वाले लोग इस पेशे में घुस आते हैं, तो यह स्तंभ खोखला पड़ने लगता है। ऐसे लोग पत्रकारिता नहीं, जेल के हकदार हैं।
सबसे बड़ा सवाल— ये पत्रकार है या दाऊद इब्राहिम?
और एक और सवाल—
दिव्य भास्कर डिजिटल के संपादक मनीष मेहता को क्या दीर्घायु व्यास की करतूतों की भनक नहीं लगी? तीन-तीन मुकदमे दर्ज होने के बावजूद, वह फरार होने के बावजूद, दैनिक भास्कर डिजिटल ने अब तक इस पर कोई सफाई क्यों नहीं दी? क्या वहाँ भी “प्रसाद” गया है?
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