कीर्ति राणा (वरिष्ठ पत्रकार )
आज से चार दशक पहले जब चौराहे-चौराहे ‘कसम राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे’ नारा गूंजता था तब सभा मंचों पर साध्वी ऋतंभरा अपने भाषणों में राम भक्तों से दोनों हाथ उठाने के आह्वान के साथ नारा लगवाती थीं ‘महाकाल बनकर दुश्मन से टकराएँगे, जहाँ बनी है मस्जिद, मंदिर वहीं बनाएँगे।
राम जन्मभूमि आंदोलन का फायरब्रांड चेहरा रहीं साध्वी (दीदी मां) ऋतंभरा के राम जन्मभूमि आंदोलन और सामाजिक योगदान को स्वीकारते हुए राष्ट्रपति द्रोपदी मूर्मु ने उन्हें हाल ही में पद्म भूषण से सम्मानित किया है।
साध्वी ऋतंभरा पंजाब के लुधियाना जिले के एक छोटे से गांव मंडी दौराहा की रहने वाली हैं। संन्यास दीक्षा से पहले उनका नाम निशा किशोरी था।16 वर्ष की आयु में उन्होंने हरिद्वार के संत स्वामी परमानंद गिरी से दीक्षा लेकर साध्वी बनने का निर्णय लिया।
फायरब्रांड साध्वी के नाम से ऋतंभरा को यदि पहचान मिली थी तो उसका एक कारण यह भी था कि उनके भाषणों के कैसेट भी शोले फिल्म के कैसेट की तरह बिकते रहे। पहले साध्वी फिर कथावाचक के रूप में दीदी मां और 2004 के सिंहस्थ में उन्हें बजरंग दल के उग्रवादी कार्यकर्ता इंदर पांचाल ने हिंदू समाज की मदर टेरेसा का नाम उनके द्वारा स्थापित वात्सल्य धाम के माध्यम से किए जाने वाले सेवाकार्यों के कारण दिया था।
सभा मंचों पर ‘हाँ हम हिंदू हैं, हिंदुस्तान हमारा है’ का नारा लगवाने वाली साध्वी ऋतंभरा के भाषणों ने तब मप्र में दिग्विजय सरकार की नाक में दम कर रखा था। मुस्लिम-अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण को ही सोशल इंजीनियरिंग मानने वाली तत्कालीन सरकार ने 23 अप्रैल 1995 को साध्वी ऋतंभरा द्वारा बागली में एक सभा में दिए भाषण को अशांति फैलाने और भड़काऊ मानते हुए रातोंरात विभिन्न धाराओं में प्रकरण दर्ज किया था।
बागली से इंदौर लौटकर पलासिया में अपने अनुयायी के यहां आराम करने पलासिया आ गईं थीं। रात करीब सवा तीन बजे जब साध्वी ऊपरी मंजिल पर कमरे में सो रही थीं पुलिस अचानक वहां पहुंची और दरवाजा तोड़ कर उन्हें गिरफ्तार किया और उन्हें पलासिया थाने तो ले जाया गया, लेकिन इंदौर में मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करने के बजाय ग्वालियर भेज दिया गया। उन्हें चार दिन तक वहां रखा गया। 27 अप्रैल 95 को साध्वी को इंदौर कोर्ट में पेश किया गया।
साध्वी की अवैध गिरफ्तारी का मामला हाई कोर्ट भी पहुंचा था जहां कोर्ट ने माना कि गिरफ्तारी अवैध थी। कोर्ट द्वारा गिरफ्तारी अवैध घोषित करने के बाद साध्वी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और अन्य के खिलाफ एडवोकेट नरेशकुमार माहेश्वरी और लीलेश शर्मा के माध्यम से मानहानि का केस दायर किया था ।
2001 में वात्सल्य ग्राम की स्थापना
राम मंदिर आंदोलन के बाद उन्होंने वृंदावन में 2001 में वात्सल्य ग्राम की स्थापना की। यह अनाथ बच्चों और बुजुर्गों के लिए एक ऐसा घर है, जहाँ हर परिवार में माँ, मौसी और भाई-बहन का वातावरण होता है। यहाँ बच्चे उन्हें दीदी माँ कहकर उन्हें बुलाते हैं। इसी के साथ साध्वी बालिका सैनिक स्कूल और आदिवासी बेटियों के लिए स्कूल जैसी कई संस्थाएँ भी संचालित करती हैं।
राजस्थान में बाढमेर, मप्र में ओंकारेश्वर एवं सिजई, हिमाचल प्रदेश में नालागढ़ में वात्सल्य ग्राम की स्थापना की। इसमें गोकुलम, दिव्यांग बच्चों के स्कूल वैश्ष्ठियम, निर्धन महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए समवित एक्सपर्ट स्कूल, नेत्र चिकित्सालय, गौशाला के अलावा दो वर्ष पहले सैनिक स्कूल का संचालन किया किया जा रहा है।
पद्म भूषण सम्मान पर साध्वी ऋतंभरा की प्रतिक्रिया थी इस सम्मान से परमशक्ति पीठ और वात्सल्य ग्राम के वो सभी सहयोगी सम्मानित हुए हैं, जिन्होंने मानव सेवा के कार्यों में अपना सर्वस्व समर्पित किया । उन्होंने हरिद्वार पहुंच कर अपने गुरु स्वामी परमानंद जी को यह सम्मान समर्पित करने के साथ ही उनका पूजन और आरती भी की।
दिग्विजय सिंह के पोलिटिकल करियर के लिए तीन साध्वियां स्पीड ब्रेकर साबित हुईं
राज्यसभा सदस्य कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की राजनीति डांवाडोल करने में जो तीन साध्वियां स्पीड ब्रेकर साबित हुईं उसकी शुरुआत भी ऋतंभरा ने ही की थी।
साध्वी ऋतंभरा बागली (जिला देवास) की एक सभा में द्वारा ईसाई मिशनरियों के खिलाफ भाषण देकर रात में इंदौर में जब पलासिया में एक अनुयायी के यहां रात्रि विश्राम कर रही थीं, तब पलासिया थाना पुलिस ने दरवाजा तोड़ कर उन्हें गिरफ्तार किया था और सुबह न्यायालय में पेश करने की अपेक्षा ग्वालियर भेज दिया था।इस गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए मप्र में हिंदू संगठनों का आंदोलन कांग्रेस सरकार के लिए चुनौती बन गया था।
दूसरी साध्वी उमा भारती रहीं, जिन्होंने उनकी दस साल की सत्ता उखाड़ फेंकी थी। भाजपा की सरकार के रणनीतिकार रहे अनिल माधव दवे ने ही सिंह को ‘मिस्टर बंठाढार’ का नाम दिया था।
तीसरी साध्वी प्रज्ञा सिंह रही हैं जिन्होंने भोपाल लोकसभा चुनाव में उन्हें शिकस्त देकर उनकी राजनीति पर ब्रेक लगा दिया था। इस चुनाव पर पूरे देश की नजर लगी थी। कांग्रेस को यह भ्रम था कि मुस्लिमबहुल भोपाल तो दिग्विजय सिंह की जीत आसान कर देगा।
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