Sushila Karki Interim PM

Sushila Karki Interim PM

नेपाल हिंसा: सुशीला कार्की का अंतरिम पीएम बनना लगभग तय, संसद भंग करने पर गहराया विवाद

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Sushila Karki Interim PM: नेपाल इन दिनों गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट से गुजर रहा है।

सत्ता परिवर्तन की अनिश्चितता और विरोध प्रदर्शनों ने हालात बिगाड़ दिए हैं।

लगातार पांच दिनों से राजधानी काठमांडू सहित कई शहरों में हिंसा जारी है। अब तक 51 लोगों की मौत हो चुकी है

गुरुवार को ही 17 मौतों की पुष्टि हुई, जिससे स्थिति और भयावह हो गई।

सेना और प्रशासन ने हालात काबू में रखने के लिए कर्फ्यू लागू कर दिया है, लेकिन हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं।

ओली के इस्तीफे के बाद सत्ता का संकट

प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे को 48 घंटे बीत चुके हैं, लेकिन नेपाल में नया अंतरिम प्रधानमंत्री तय नहीं हो सका है।

इस बीच, पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम सबसे आगे चल रहा है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अधिकतर दलों और आंदोलनकारी समूहों में इस पर लगभग सहमति बन चुकी है कि कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया जाए।

हालांकि, इसमें सबसे बड़ी अड़चन संसद को भंग करने को लेकर है।

संविधान के अनुसार जब तक संसद कायम है, किसी गैर-सांसद को प्रधानमंत्री नहीं बनाया जा सकता।

चूंकि कार्की सांसद नहीं हैं, इसलिए राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और संवैधानिक विशेषज्ञों के बीच यह मुद्दा गहराया हुआ है।

अंतरिम पीएम के नाम को लेकर बुधवार शाम तक कार्की के नाम पर सहमति बनने की खबर आई थीं।

लेकिन गुरुवार दोपहर तक ‘लाइट मैन’ कहे जाने वाले कुलमान घीसिंग का भी नाम सामने आ गया।

संसद भंग पर राष्ट्रपति-पक्षकारों में मतभेद

सुशीला कार्की संसद भंग करने के पक्ष में हैं।

उनका तर्क है कि संविधान इसकी अनुमति नहीं देता कि संसद रहते हुए कोई गैर-सांसद प्रधानमंत्री बने।

दूसरी ओर, राष्ट्रपति पौडेल संसद भंग करने को तैयार नहीं हैं।

गुरुवार को उन्होंने संवैधानिक विशेषज्ञों और कार्की से दिनभर चर्चा की, लेकिन कोई सहमति नहीं बन सकी।

कार्की ने शुक्रवार सुबह राष्ट्रपति के कानूनी सलाहकार बाबूराम कुंवर से मुलाकात की और इसके बाद पौडेल से निर्णायक बातचीत करने की तैयारी की।

यदि सहमति बन जाती है, तो कार्की आज ही शपथ ले सकती हैं।

सेना और सुप्रीम कोर्ट की बैठक

आंदोलन की अगुवाई कर रहे Gen Z युवाओं में भी मतभेद सामने आए हैं।

एक गुट का आरोप है कि सुशीला कार्की भारत समर्थक हैं और वे उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे।

इस विवाद ने विरोध प्रदर्शनों को और उग्र बना दिया। काठमांडू की सड़कों पर युवाओं के बीच झड़पें और मारपीट तक की नौबत आ गई।

इधर नेपाल के सेना प्रमुख अशोक राज सिगडेल, मुख्य न्यायाधीश प्रकाश मान सिंह राउत और माओवादी नेताओं की शुक्रवार को राष्ट्रपति भवन में उच्च स्तरीय बैठक प्रस्तावित है।

राष्ट्रपति पौडेल भी इस बैठक में शामिल होंगे। सेना ने बताया कि स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कर्फ्यू लागू रहेगा।

शुक्रवार को शाम 5 बजे तक कर्फ्यू रहेगा और शनिवार को भी रात 7 बजे से सुबह 6 बजे तक कर्फ्यू लागू किया जाएगा।

नेपाल में नहीं होंगे मैच, भारतीयों का रेस्क्यू

नेपाल की अस्थिरता का असर खेलों पर भी पड़ा है।

नवंबर में भारत में होने वाले पहले महिला दृष्टिबाधित टी20 विश्व कप क्रिकेट के लिए पाकिस्तान के मैच पहले काठमांडू में होने थे।

लेकिन आयोजकों ने साफ कर दिया कि वर्तमान हालात को देखते हुए अब नेपाल न्यूट्रल वेन्यू नहीं रहेगा।

पाकिस्तान के मैचों के लिए कोई वैकल्पिक जगह तय की जाएगी।

वहीं हिंसा और अस्थिर माहौल को देखते हुए भारत सरकार ने भी सक्रियता दिखाई।

ओडिशा के 23 लोग सुरक्षित वापस लाए गए। हरियाणा की महिला खिलाड़ी समेत उनकी पूरी टीम अब सुरक्षित है।

दिल्ली की उपासना गिल, जो नेपाल में वॉलीबॉल लीग इवेंट होस्ट करने गई थीं, उन्हें भी टीम समेत सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।

इसके अलावा, नेपाल से गया जी आने वाली 100 बसें कैंसिल कर दी गईं। करीब 30 हजार श्रद्धालु अब गया में रुके हुए हैं और वे नेपाल लौटने से डर रहे हैं।

बढ़ती अस्थिरता और भविष्य का सवाल

नेपाल इस समय जिस मोड़ पर खड़ा है, वह केवल राजनीतिक अस्थिरता का संकेत नहीं बल्कि सामाजिक अशांति का भी परिचायक है।

एक तरफ जन आंदोलन के कारण सड़कों पर हिंसा और मौतें हो रही हैं, दूसरी तरफ नेता सत्ता समीकरण में उलझे हैं।

सुशीला कार्की का नाम अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए लगभग तय माना जा रहा है, लेकिन संसद भंग करने का मुद्दा इस प्रक्रिया को और पेचीदा बना रहा है।

अगर राष्ट्रपति और संवैधानिक विशेषज्ञ इस पर सहमत हो जाते हैं, तो नेपाल जल्द ही अंतरिम सरकार के गठन की दिशा में कदम बढ़ा सकता है।

कुल मिलाकर, नेपाल आज सत्ता, संविधान और सड़कों के टकराव से जूझ रहा है।

दुनिया की निगाहें अब इस पर टिकी हैं कि क्या नेपाल का राजनीतिक नेतृत्व इस संकट से निकलकर स्थिरता की ओर बढ़ पाएगा या हालात और बिगड़ेंगे।

 

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