NCERT Partition Module: भारत का बंटवारा भारतीय इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक माना जाता है।
लाखों लोग विस्थापित हुए, हजारों की मौत हुई और दोनों देशों की राजनीति हमेशा के लिए बदल गई।
इतनों सालों पर अब भारत के बंटवारे पर नई बहस छिड़ गई है।
दरअसल, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कक्षा 6 से 8 और 9 से 12 के छात्रों के लिए दो नए विशेष मॉड्यूल जारी किए।
14 अगस्त, विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (Partition Horrors Remembrance Day) के मौके पर इन्हें जारी किया गया है।
इन मॉड्यूल्स में 1947 के बंटवारे को लेकर जिम्मेदारी तय की गई है और कहा गया है कि इसके लिए मुहम्मद अली जिन्ना, कांग्रेस पार्टी और लॉर्ड माउंटबेटन जिम्मेदार थे।
इस नए विवाद के सामने आने के बाद राजनीतिक दलों में तीखी प्रतिक्रियाएं शुरू हो गई हैं।
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (AAP) और AIMIM ने इस पर आपत्ति जताई है।
विपक्षी दलों का कहना है कि इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है और असल दोषियों को बचाकर एक खास नैरेटिव पेश किया जा रहा है।
मॉड्यूल में क्या लिखा गया है?
एनसीईआरटी के मुताबिक, भारत का विभाजन किसी एक व्यक्ति की वजह से नहीं बल्कि तीन पक्षों की भूमिका से हुआ।
1. जिन्ना – जिन्होंने बंटवारे की मांग की।
2. कांग्रेस – जिसने हालात देखकर इसे स्वीकार कर लिया।
3. माउंटबेटन – जिन्होंने इसे लागू किया।
इस हिस्से को ‘विभाजन के दोषी’ शीर्षक से जोड़ा गया है।
इसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू का भाषण भी शामिल है।
जिसमें उन्होंने कहा था – हम एक ऐसी स्थिति पर आ गए हैं जहां हमें या तो विभाजन को स्वीकार करना होगा या निरंतर संघर्ष और अराजकता झेलनी होगी।
बंटवारे के नतीजों की व्याख्या
मॉड्यूल में विस्तार से बताया गया है कि 1947 और 1950 के बीच भारत किस तरह खून और आंसुओं से गुजरता रहा।
- विभाजन ने भारत की एकता को तोड़ा और शत्रुतापूर्ण सीमाएं बनाईं।
- पंजाब और बंगाल जैसे समृद्ध इलाकों की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गई।
- लाखों लोग हत्या और विस्थापन का शिकार हुए।
- सांप्रदायिक अविश्वास और गहरा हुआ।
- जम्मू-कश्मीर को सामाजिक, आर्थिक और जनसंख्या के स्तर पर झटका लगा। यह समस्या आगे चलकर आतंकवाद में तब्दील हो गई।
गांधी, पटेल और अन्य नेताओं का दृष्टिकोण
मॉड्यूल में यह भी जोड़ा गया है कि भारतीय नेताओं की बंटवारे को लेकर अलग-अलग राय थी।
- महात्मा गांधी बंटवारे के सख्त खिलाफ थे। 9 जून 1947 की प्रार्थना सभा में उन्होंने कहा था कि अगर कांग्रेस बंटवारे को मानती है, तो यह मेरी सलाह के खिलाफ होगा। लेकिन मैं इसका विरोध हिंसा से नहीं करूंगा। बाद में हालात देखकर उन्होंने भी आपत्ति छोड़ दी।
- सरदार वल्लभभाई पटेल ने शुरू में बंटवारे का विरोध किया, लेकिन बाद में कहा कि देश युद्ध का मैदान बन चुका है, गृहयुद्ध से बेहतर है कि बंटवारा हो जाए।
- लॉर्ड माउंटबेटन, भारत के अंतिम वायसराय, ने कहा, भारत का बंटवारा मैंने नहीं किया। यह भारतीय नेताओं ने खुद स्वीकार किया। मेरी गलती केवल जल्दबाजी की थी।
माउंटबेटन की जल्दबाजी और खामियां
NCERT के मॉड्यूल के अनुसार, माउंटबेटन की सबसे बड़ी गलती थी सत्ता हस्तांतरण की तारीख बदलना।
पहले यह जून 1948 तय थी, लेकिन इसे घटाकर 15 अगस्त 1947 कर दिया गया। यानी पूरे काम के लिए सिर्फ 5 हफ्ते मिले। नतीजा यह हुआ कि सीमाओं का बंटवारा जल्दबाजी में हुआ।
पंजाब के लाखों लोग 15 अगस्त के दो दिन बाद तक यह तक नहीं जानते थे कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में। यह जल्दबाजी भारी त्रासदी की वजह बनी।
मॉड्यूल में बताया गया है कि विभाजन के बाद भी हिंदू-मुसलमानों की नफरत खत्म नहीं हुई। इसी दौर में कश्मीर का मुद्दा उठा, जो पहले कभी नहीं था।
यह भारत की विदेश नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना और पाकिस्तान ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल किया।
खास मॉड्यूल, न कि रेगुलर सिलेबस
मॉड्यूल की प्रस्तावना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शब्द भी शामिल किए गए हैं।
पीएम मोदी ने कहा था, बंटवारे का दर्द कभी भुलाया नहीं जा सकता। लाखों बहनें-भाई बेघर हुए और कई ने अपनी जान गंवाई।
हमारे लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में हर साल 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया जाएगा।
NCERT ने साफ किया है कि यह कंटेंट नियमित किताबों का हिस्सा नहीं है।
यह केवल सप्लीमेंट्री मटेरियल है, जिसे पोस्टर्स, चर्चाओं और वाद-विवाद के जरिए छात्रों को पढ़ाया जाएगा।
हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर और मुगल काल की नई समीक्षा भी ऐसे ही मॉड्यूल्स में जोड़े गए थे।
हालिया बदलावों की कड़ी
- कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की किताब में हाल ही में मुगल शासकों के धार्मिक फैसलों और मंदिर तोड़ने की घटनाओं का जिक्र जोड़ा गया।
- किताब में बनारस, मथुरा और सोमनाथ के मंदिरों को तोड़ने और जैन, सिख, सूफी और पारसी समुदायों पर अत्याचार के उदाहरण भी शामिल किए गए।
- एनसीईआरटी अधिकारियों का कहना है कि इतिहास की घटनाओं को नकारा नहीं जा सकता। हमें केवल यह समझना है कि उन गलतियों से भविष्य के लिए क्या सीख लेनी चाहिए।
मॉड्यूल पर विपक्ष की आपत्तियां
नए मॉड्यूल पर राजनीतिक दलों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं।
- कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा – बंटवारा हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग की जुगलबंदी का नतीजा था। अगर किसी को सबसे बड़ा विलेन कहना हो, तो वह RSS है। यह संगठन 25 साल चुप्पी और जुगलबंदी में लगा रहा।
- AAP नेता सौरभ भारद्वाज – जिन्ना, आरएसएस और हिंदू महासभा सभी टू नेशन थ्योरी के समर्थक थे। कांग्रेस और जिन्ना को ही जिम्मेदार ठहराना गलत है। सावरकर ने भी अपनी किताब में यह विचार रखा था।
- AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी – इतिहास को झूठा तरीके से पढ़ाया जा रहा है। हमेशा मुसलमानों पर दोष डाला जाता है। जो लोग पाकिस्तान चले गए, वे चले गए, लेकिन जो मुसलमान भारत में रहे, वे देश के वफादार हैं। अगर इतिहास में बदलाव हो रहा है, तो RSS की प्रार्थना क्यों नहीं पढ़ाई जाती?
कुल मिलाकर एनसीईआरटी का नया मॉड्यूल छात्रों को यह बताने की कोशिश करता है कि विभाजन महज राजनीतिक समझौता नहीं था, बल्कि एक ऐसी त्रासदी थी जिसने भारत के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक ढांचे को हिला दिया।
हालांकि, इस व्याख्या ने राजनीतिक दलों के बीच नई बहस छेड़ दी है कि क्या यह इतिहास का सच है या सत्ता का लिखा नया संस्करण?
अब सवाल यह है कि आने वाली पीढ़ियां भारत-पाकिस्तान विभाजन को किस दृष्टि से समझेंगी—एक ऐतिहासिक मजबूरी या किसी खास विचारधारा का बयान?
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