-आय बढ़ाने के दूसरे विकल्पों पर हो विचार
नई दिल्ली। कृषि कानूनों पर सुझाव देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित तीन सदस्यीय कमेटी के सदस्य अनिल घनवट ने सोमवार को कहा कि देश में अगर फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर कानून बनाया जाता है तो अर्थव्यवस्था को संकट का सामना करना पड़ेगा।
शेतकारी संगठन के अध्यक्ष घनवट का यह बयान ऐसे समय में आया है जबकि कृषि कानूनों को वापस लेने के केंद्र सरकार की घोषणा के बाद प्रदर्शनकारियों की तरफ से एमएसपी पर कानून बनाने की मांग तेज हो गई है।
ये होंगी समस्याएं : घनवट ने कहा, ‘अगर एमएसपी पर कानून बनता है तो हम संकट का सामना करेंगे। कानून बनने के बाद अगर किसी दिन खरीद प्रक्रिया नीचे जाती है तो कोई भी उत्पाद नहीं खरीद पाएगा क्योंकि एमएसपी से कम कीमत पर इसे खरीदना अवैध होगा और व्यापारियों को इसके लिए जेल में डाल दिया जाएगा।’
आय बढ़ाने के लिए अन्य उपायों पर हो विचार : उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार और किसान नेताओं दोनों को ही कृषि से आय को बढ़ाने के लिए कुछ अन्य उपायों पर विचार करना चाहिए।
एमएसपी पर कानून इसका कोई समाधान नहीं है। घनवट ने आगे कहा, ‘यह एक संकट होने जा रहा है क्योंकि न सिर्फ व्यापारियों को बल्कि स्टाकिस्टों और इससे जुड़े हर किसी को नुकसान होगा। यहां तक कि कमोडिटी बाजार भी अस्त व्यस्त हो जाएगा। यह विकृत हो जाएगा।’
खुली खरीद एक समस्या : घनवट ने कहा, ‘हम एमएसपी के खिलाफ नहीं, लेकिन खुली खरीद एक समस्या है। हमें बफर स्टाक के लिए 41 लाख टन अनाज की जरूरत है लेकिन खरीद 110 लाख टन की होती है।
अगर एमएसपी कानून बन जाता है तो सभी किसान अपनी फसल के लिए एमएसपी की मांग करेंगे और कोई भी उसमें से कुछ कमाने की स्थिति में नहीं होगा।
कृषि कानूनों को रद करना दुर्भाग्यपूर्ण : घनवट ने तीनों कृषि कानूनों को रद करने के कदम को भी दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उन्होंने कहा कि किसान पिछले 40 वर्षों से सुधार की मांग कर रहे थे। कानूनों को रद करना अच्छा कदम नहीं है। देश में कृषि की मौजूदा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है।
मोदी सरकार में इच्छाशक्ति थी : शेतकारी संगठन के अध्यक्ष ने कहा, ‘अगर पेश किए गए नए कानून पूरी तरह से सही नहीं थे, उनमें कुछ खामियां थीं तो उन्हें ठीक करने की आवश्यकता थी।
मैं समझता हूं कि इस सरकार में कृषि क्षेत्र में सुधार करने की इच्छाशक्ति थी जो पहले की सरकारों में नहीं थी। मुझे उम्मीद है कि सभी राज्यों के विपक्षी और किसान नेताओं को मिलाकर एक नई कमेटी बनाई जाएगी और फिर नए कृषि कानूनों पर संसद में चर्चा होगी और उन्हें पेश किया जाएगा।’