Lucknow Tribal Elder Humiliation: जो शहर अपनी तहज़ीब और अदब के लिए जाना जाता है।
वही लखनऊ उस दिन शर्मशार हो गया जब काकोरी इलाके में घटित एक घटना ने पूरी इंसानियत को झकझोर कर रख दिया।
यह मामला न केवल मानवता पर कलंक है, बल्कि इसने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है।
आखिर हम किस लोकतांत्रिक देश में रह रहे हैं, जहां संविधान की दुहाई तो दी जाती है, पर इंसानियत को बार-बार कुचला जाता है।
दरअसल, यह मामला काकोरी के शीतला माता मंदिर परिसर का है।
यहां बैठे एक बीमार दलित बुजुर्ग ने गलती से पेशाब कर दी, जिसके बाद वहां मौजूद कुछ असामाजिक तत्वों ने उनके साथ अमानवीय बर्ताव किया।
उन्होंने बुजुर्ग को भद्दी-भद्दी गालियाँ दीं और मंदिर “शुद्धिकरण” के नाम पर उनसे पेशाब चटवाया। यही नहीं, वे लगातार जातिसूचक अपशब्द भी कहते रहे।
पूरा मामला और पुलिस की कार्रवाई
पुलिस के अनुसार, यह घटना सोमवार शाम की है।
पीड़ित रामपाल रावत (60) ने अपनी शिकायत में बताया कि वह मंदिर परिसर में पानी पी रहे थे।
तभी स्वामी कांत उर्फ पम्मू नामक व्यक्ति ने उन पर पेशाब करने का आरोप लगाया।
रामपाल ने सफाई दी कि पानी गलती से गिर गया था, लेकिन आरोपी ने उनकी एक न सुनी।
इसके बाद उसने उन्हें जातिसूचक गालियां दीं और धमकी देकर जमीन चाटने पर मजबूर किया।
पुलिस ने आरोपी स्वामी कांत को गिरफ्तार कर लिया है। वहीं, पुलिस ने स्पष्ट किया कि पम्मू का आरएसएस से कोई संबंध नहीं है।
पीड़ित के पोते मुकेश कुमार ने बताया कि दादा ने आज घटना के बारे में बताया, जिसके बाद हमने शिकायत दर्ज कराई।
मुख्य मंदिर उस जगह से करीब 40 मीटर दूर था, जहाँ गलती से पेशाब हो गया था।
हालांकि आरोपी का कहना है कि उसने बुजुर्ग को “जमीन छूने” के लिए कहा था, “चाटने” के लिए नहीं।
अखिलेश यादव का योगी सरकार पर हमला
समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने इस घटना को “मानवता पर कलंक” बताया।
उन्होंने X (पूर्व ट्विटर) पर लिखा — किसी की गलती का मतलब यह नहीं कि उसे अपमानजनक और अमानवीय सजा दी जाए। परिवर्तन ही परिवर्तन लाएगा।
वहीं, कांग्रेस ने भी X पर प्रतिक्रिया दी — लखनऊ में एक आरएसएस कार्यकर्ता ने एक बुज़ुर्ग दलित व्यक्ति को अपना पेशाब चाटने पर मजबूर किया।
बुजुर्ग व्यक्ति मंदिर परिसर में बैठा था और बीमारी के कारण गलती से पेशाब कर दिया था। इसके बाद आरोपी ने जातिसूचक गालियाँ दीं और अमानवीय व्यवहार किया।
हालांकि पुलिस ने कांग्रेस के इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि आरोपी का आरएसएस से कोई संबंध नहीं है।
मानवता पर प्रश्नचिन्ह
यह घटना केवल एक बुजुर्ग के साथ हुए अपमान की कहानी नहीं है, बल्कि हमारे समाज में बढ़ती असंवेदनशीलता और जातिगत भेदभाव का प्रतिबिंब है।
आज जब हम विज्ञान, तकनीक और संविधान की बात करते हैं, तो ऐसे अमानवीय कृत्य हमारे समाज पर गहरा प्रश्नचिन्ह खड़ा करते हैं।
क्या धर्म और आस्था के नाम पर इंसानियत को यूंं कुचला जा सकता है?
पॉलिटिक्सवाला की टिप्पणी
मौके पर क्या हुआ, इससे ज्यादा ज़रूरी है कि आरोपियों को बुजुर्ग की उम्र का लिहाज करना चाहिए था। ये शारीरिक दंड होते है जो कई बार संभलने का मौका नहीं देते।
लेकिन, इसका मतलब यह तो नहीं कि हम इंसानियत भूलकर अपने धार्मिक हितों को आगे रख कर इस तरह के कृत्य करने को उतारू हो जाये।
यह कोई पहली बार नहीं हुआ जब दलितों और आदिवासियों के साथ इस तरह के अपमानजनक कृत्य हुए है, बल्कि इसके पहले भी ऐसी घटना सामने आती रही है।
सरकार कार्रवाई कार्रवाई का दावा कर हर बार अपना पल्ला झाड़ लेती हैं, और यदि कार्रवाई हो भी जाये तो क्या अपमानित हुए व्यक्तियों के जख्मों की भरपाई हो जाएगी।
इस पूरे मामले ने एक बार फिर मानवता को शर्मशार कर दिया है और पॉलिटिक्सवाला इसकी कड़ी निंदा करता है।
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