नए साल की पूर्व संध्या से लेकर अगले 2 दिन तक जिस तरह कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के ऊपर गोल पर गोल दागे उससे भाजपा को यह समझ नहीं आया कि वह कमलनाथ की रणनीति के जवाब कैसे दें?
पीयूष बबेले (राजनीतिक विश्लेषक )
वर्ष 2023 शुरू होते ही मध्य प्रदेश की राजनीति में दिलचस्प नजारे देखने को मिल रहे हैं। नए वर्ष की पूर्व संध्या पर पहले तो पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का एक इंटरव्यू प्रदेश और राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बन गया।
इस इंटरव्यू में जब कमलनाथ से पूछा गया कि क्या श्री राहुल गांधी 2024 में विपक्ष का चेहरा होंगे तो कमलनाथ का जवाब था कि विपक्ष का ही नहीं प्रधानमंत्री का चेहरा भी होंगे।
पूरे देश में यह समाचार तेजी से फैला और जब तक भारतीय जनता पार्टी इसका कोई जवाब सोच पाती तब तक कई राज्यों के मुख्यमंत्री और दूसरे दलों के नेता ने भी इस बयान का समर्थन कर दिया। अगले दिन दिल्ली में राहुल गांधी की पत्रकार वार्ता थी और वहां उन्होंने कह दिया कि मध्यप्रदेश में 100 परसेंट काग्रेस की सरकार बनेगी। वह यह बात लिख कर दे सकते हैं।
उन्होंने यह भी कह दिया कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की आंधी चल रही है, जबरदस्त अंडरकरेंट है। राहुल गांधी ने जिस तरह से मध्यप्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा की भूरि-भूरि प्रशंसा की उससे भी एक नया विमर्श शुरू हो गया।
इस सारे घटनाक्रम से पीसीसी अध्यक्ष कलनाथ पूरे देश में सुर्खियों में आ गए और देशभर के कांग्रेसी नेताओं की निगाह में उनका सम्मान पहले से ज्यादा बढ़ गया। कमलनाथ और राहुल गांधी के बयानों से भारतीय जनता पार्टी में भोपाल से लेकर दिल्ली तक हलचल मच गई। लेकिन भाजपा इसका कोई तोड़ सोचती, उससे पहले कमलनाथ की टीम ने एक और गोल दाग दिया।
पूरे प्रदेश में ‘नया साल नई सरकार’ के होर्डिंग नजर आने लगे। इन हार्डिंग पर लिखा था- “अंधेरा छटेगा आएगी कमलनाथ सरकार।” यही नहीं, कांग्रेस प्रवक्ताओं की ओर से लगाए गए इन पोस्टर बैनर में कमलनाथ को पूर्व मुख्यमंत्री की जगह भावी मुख्यमंत्री दिखाया गया था। इन होर्डिंग बैनर की खबर को भी मीडिया ने कई दिन तक दिखाया।
नए साल की पूर्व संध्या से लेकर अगले 2 दिन तक जिस तरह कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के ऊपर गोल पर गोल दागे उससे भाजपा को यह समझ नहीं आया कि वह कमलनाथ की रणनीति के जवाब कैसे दें? उसके बाद से भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और तमाम छुटभैये नेता खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की तर्ज पर बयानबाजी कर रहे हैं। लेकिन असल में उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि वे कमलनाथ के चुनाव प्रबंधन और खासकर चुनावी वर्ष में इस परफेक्ट टाइमिंग का कैसे जवाब दें।
भारत जोड़ो यात्रा में मध्यप्रदेश के शानदार प्रदर्शन से लेकर चुनावी वर्ष में प्रवेश तक कमलनाथ की रणनीति जिस तरह आक्रमक हो गई है, उसके कारण भारतीय जनता पार्टी में बार-बार मुख्यमंत्री बदलने की बात चलती रहती है। बुरी तरह गुटबाजी में घिरी भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली से भी आए दिन फटकार मिलती रहती है।
यह कमलनाथ के कौशल का ही कमाल है कि जो भारतीय जनता पार्टी कभी अपने संगठन पर गर्व करती थी, आजकल उसके बड़े पदाधिकारी और मंत्री इस जुगत में रहते हैं कि कैसे मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया कर और कुछ नहीं तो 6 महीने के लिए ही इस कुर्सी पर बैठ सकें।
वहीं, कमलनाथ ने कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह एकजुट कर लिया है और सभी नेता एक स्वर में बात कर रहे हैं। यह तो नए साल का आगाज है, जैसे ही कमलनाथ अपने दौरे और संगठन को मजबूत करने का चुनावी अभियान शुरू करेंगे तो भाजपा में भगदड़ मचना तय है।