हेमामलिनी की एक झलक पाने के लिए खुद को रोक नहीं पाए थे जस्टिस गवई

Share Politics Wala News

अपना संघर्ष सुनते भावुक हुए भारत के प्रधान न्यायाधीश ने सुनाया हेमामालिनी का किस्सा

#politicswala report

CJI BR Gavaie-भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई अपने निजी अनुभव साझा करते हुए भावुक हो गए।

उन्होंने अपने माता-पिता के संघर्षों का जिक्र करते हुए अपने जीवन के कई पक्षों को उजागर किया।

उन्होंने साझा किया कि उनके पिता की आकांक्षाओं ने उनके जीवन को आकार दिया।

CJI गवई ने कहा, ‘‘मैं आर्किटेक्ट बनना चाहता था, लेकिन मेरे पिता के मेरे लिए कुछ और ही सपने थे।

वह हमेशा चाहते थे कि मैं वकील बनूं, एक ऐसा सपना जो वह खुद पूरा नहीं कर सके।’’

वे नागपुर जिला न्यायालय बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

सीजेआई गवई अपने माता-पिता और उनके जीवन पर उनके प्रभाव के बारे में बात करते हुए थोड़े समय के लिए भावुक हो गए।

उन्होंने ने कहा, ‘‘मेरे पिता ने खुद को आंबेडकर की सेवा में समर्पित कर दिया।

वह खुद वकील बनना चाहते थे, लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘बाद में जब उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के पद के लिए मेरे नाम की सिफारिश की गई तो

मेरे पिता ने कहा कि अगर तुम वकील बने रहोगे तो सिर्फ पैसे के पीछे भागोगे,

लेकिन अगर तुम न्यायाधीश बनोगे तो आंबेडकर द्वारा बताए गए रास्ते पर चलोगे और समाज का भला करोगे।’’

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि उनके पिता भी चाहते थे कि उनका बेटा एक दिन भारत का प्रधान न्यायाधीश बने, लेकिन वह ऐसा होते देखने के लिए जीवित नहीं रहे।

प्रधान न्यायाधीश ने महसूस किया कि दर्शक भावुक हो गए हैं और माहौल को हल्का करने के लिए उन्होंने एक घटना को साझा किया।

उन्होंने कहा नागपुर जिला अदालत में अभिनेत्री हेमा मालिनी के खिलाफ चेक बाउंस का मामला दर्ज किया गया था।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश शरद बोबड़े को हेमा मालिनी की ओर से बतौर वकील पेश होना था।

उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘‘उस दिन हेमा मालिनी की एक झलक पाने के लिए अदालत कक्ष में काफी भीड़ थी।

हम इस भीड़ के बीच उस पल का आनंद लेने से खुद को रोक नहीं सके।’’

न्यायपालिका पर बात करते हुए उन्होंने कहा जब संसद कानून या नियम से परे जाती है, तो न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है।’’

सीजेआई गवई ने कहा, ‘‘हालांकि, मैं हमेशा कहता हूं कि न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी।

इसे न्यायिक दुस्साहस और न्यायिक आतंकवाद में बदलने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।’’

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *