गांधी वध और हम…. मुख्यमंत्री के सपनों के शहर में भावनाओं पर डाका पड़ा और असली गुनाहगारों को मिला अभयदान

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दर्जनों गर्दनें प्रशासन ने अपने दफ्तरों में सजा रखी, जब जैसी जरुरत पड़ी एक गर्दन आगे खिसका दी। आखिर सबकुछ अच्छे की शाबाशी लेने वाले, ऐसे मामलों में अपना गुनाह कबूलने में पीछे क्यों ?

पंकज मुकाती

आज महात्मा की शहादत का दिन है। आज ही के दिन नाथूराम गोडसे ने अहिंसा के पुजारी की गोली मारकर हत्या कर दी। ये हमारी मानसिकता पर धब्बे जैसा है, और हमेशा रहेगा। ये भी एक दुर्योग है कि इंदौर भी आज के दिन ऐसे ही एक धब्बे के लिए चर्चा में है। इंदौर नगर निगम की मलबा लादने वाली गाडी में शहर के बेसहारा बुजुर्गों को जबरिया पटककर शहरी सीमा से बाहर छोड़ने का मामला उजागर हुआ है।

देश के सबसे स्वच्छ शहर पर ये एक धब्बा हमेशा रहेगा। गोडसे जैसी सोच हमेशा समाज में ज़िंदा रही है, और रहेगी। बापू की अहिंसा की सोच को हिंसा से मिटाने की कोशिश की तरह ही है इंदौर की स्वच्छता की सोच को मिटाने की कोशिश।

इंदौर की स्वच्छता के पीछे इंदौर की जनता है। उसे इसका पूरा श्रेय है। आज सुबह से लोग पूछ रहे हैं-इंदौर में ये क्या हो रहा है। आखिर इन सवालों के जवाब कौन देगा ? क्या दो अदने से हुकुम बजाने वाले कर्मचारियों की बर्खास्तगी से ये जवाब मिल जाएगा?

आखिर इन्हे भी किसी ने आदेश दिया होगा? या वे बिना किसी के आदेश के नगर निगम की कई टन वजनी बिना रजिस्ट्रेशन वाली गाडी निकालकर चल दिए। बुजुर्गों को उठाकर ठिकाने लगाने। यदि ऐसा है तो ये तो और भी बड़ी नाकामी है इस सिस्टम की। ऐसा सिस्टम जिसका कोई रखवाला ही नहीं। 

वीडियो वायरल होते ही हमेशा की तरह राजनीति सक्रिय हुई। मुख्यमंत्री ने गुस्सा जताया। निगम और जिला प्रशासन ने कर दी कार्रवाई। दो अदने कर्मचारी और उनके उपर के एक उप आयुक्त पर। इंदौर में ऐसी ही कार्रवाइयां हो रही है।

पिछले एक साल में किसी बड़े जिम्मेदार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। चाहे कोरोना काल में गाड़ियों की अनुमति का मामला हो या महाराजा यशवंत राव चिकित्सालय में लापरवाही का। गाड़ियों वाले मामले में तोमर नपे तो अस्पताल में डॉक्टर जड़िया को इतना लापरवाह बताया कि वे रो पड़े। ऐसी दर्जनों गर्दनें प्रशासन ने अपने दफ्तरों में सजा रखी। जब जैसी जरुरत पड़ी एक गर्दन आगे खिसका दी।

आखिर सब कुछ अच्छे की शाबाशी लेने वाले, ऐसे मामलों में अपना गुनाह कबूलने में पीछे क्यों ? सरकार भी इन पर ही क्यों मेहरबान? क्या इंदौर को शर्मसार करने वाली इस घटना पर कोई बड़ी कार्रवाई होगी ? आखिर मुख्यमंत्री के सपनों के शहर में भावनाओं पर डाका पड़ा है।

 

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