Fake News Laws: फर्जी खबरों (Fake News) के बढ़ते खतरे को देखते हुए संसद की संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी पर स्थायी समिति ने सख्त सिफारिशें की हैं।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट सर्वसम्मति से मंजूर कर लोकसभा अध्यक्ष को सौंप दी है। रिपोर्ट संसद के अगले सत्र में पेश की जा सकती है।
समिति ने साफ कहा है कि फेक न्यूज लोकतांत्रिक व्यवस्था, कानून-व्यवस्था और बाजार की साख के लिए गंभीर खतरा है, इसलिए सभी मीडिया संगठनों पर सख्त नियम लागू किए जाने जरूरी हैं।
मीडिया में फैक्ट चेक मेकेनिज्म
संसदीय समिति ने सुझाव दिया है कि प्रिंट, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संगठनों में फैक्ट चेक मेकेनिज्म (Fact-Checking System) और आंतरिक लोकपाल (Ombudsman) को अनिवार्य बनाया जाए।
इसके लिए सरकारी, निजी और स्वतंत्र फैक्ट चेकरों के बीच सहयोग की व्यवस्था की जाए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि किसी संस्थान की ओर से फर्जी खबरें प्रकाशित या प्रसारित होती हैं, तो जिम्मेदारी केवल पत्रकार की नहीं बल्कि संपादकों, कंटेंट हेड्स, मालिकों और प्रकाशकों की भी तय की जाए।
संस्थागत विफलताओं के लिए मालिक और पब्लिशर्स को जवाबदेह ठहराने की सिफारिश की गई है।
जुर्माना और सजा होगी सख्त
समिति ने फेक न्यूज की परिभाषा को स्पष्ट करने और इस पर जुर्माना व दंड को और सख्त बनाने की सिफारिश की है।
समिति का मानना है कि केवल जुर्माना बढ़ाना ही काफी नहीं है, बल्कि ऐसे मामलों में कानूनों और दंडात्मक प्रविधानों में संशोधन भी आवश्यक है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत मिली छूट पर भी समिति ने चिंता जताई है।
कंपनियों व प्लेटफॉर्म्स को भी जिम्मेदार ठहराना चाहिए, ताकि वे फर्जी सामग्री के प्रकाशन पर रोक लगाने के लिए मजबूर हों।
फेक न्यूज पर बनेगी टास्क फोर्स
समिति ने कहा है कि सीमा पार से फेक न्यूज फैलाने की साजिशें भी चिंता का विषय हैं।
इसके लिए एक अंतर-मंत्रालयी टास्क फोर्स बनाने की सिफारिश की गई है।
जो साइबर हमलों और फर्जी खबरों के जरिए समाज में नफरत फैलाने की कोशिशों पर अंकुश लगा सके।
इसके साथ ही समिति ने कहा है कि स्कूल शिक्षा में मीडिया साक्षरता (Media Literacy) को शामिल करना जरूरी है।
ताकि नई पीढ़ी फेक न्यूज की पहचान कर सके और उसका शिकार न बने।
AI से बने फेक कंटेंट पर चिंता
रिपोर्ट में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से बनाए जा रहे फर्जी कंटेंट पर भी गहरी चिंता जताई गई है।
खासकर महिलाओं और बच्चों को लेकर तैयार की जा रही आपत्तिजनक और झूठी सामग्री को लेकर समिति ने सख्त कदम उठाने की सिफारिश की है।
इसमें दोषियों के लिए सख्त सजा और बैन लगाने की बात कही गई है।
साथ ही, एआई से तैयार कंटेंट पर लेबलिंग अनिवार्य करने और इसके लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था लागू करने पर भी विचार करने की सलाह दी गई है।
रिपोर्ट सर्वसम्मति से पारित
महत्वपूर्ण बात यह है कि यह रिपोर्ट सर्वसम्मति से पारित हुई है। इसका मतलब है कि फेक न्यूज पर सख्ती को लेकर सभी दल एकमत हैं।
सूत्रों के अनुसार, समिति चाहती है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय यह सुनिश्चित करे कि हर मीडिया संगठन में फैक्ट चेक मेकेनिज्म और लोकपाल अनिवार्य रूप से लागू हो।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर अपनी समिति की रिपोर्ट साझा करते हुए कहा कि भारत को फेक न्यूज के कारण बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका या थाईलैंड जैसी स्थिति में नहीं पहुंचने दिया जाएगा।
उन्होंने लिखा- कोई भी खबर तथ्यात्मक होनी चाहिए। जो लोग राष्ट्र विरोधी ताकतों का एजेंडा चलाकर जनता को गुमराह कर रहे हैं, उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने एक फर्जी खबर का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए बताया कि गलत सूचना के खिलाफ सख्त प्रावधान किए जाने जरूरी हैं।
कुल मिलाकर, फेक न्यूज पर नकेल कसने के लिए संसदीय समिति की यह रिपोर्ट मीडिया जगत और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के लिए बड़ा संदेश है।
अगर संसद से इस पर सहमति बनती है, तो आने वाले समय में फेक न्यूज फैलाने वालों पर कड़ी कार्रवाई, भारी जुर्माना और सजा तय होगी।
साथ ही, मीडिया संस्थानों की जवाबदेही भी सुनिश्चित होगी, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
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