Defence Minister Khawaja Asif: पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच हुआ नया रक्षा समझौता दक्षिण एशिया और खाड़ी क्षेत्र की भू-राजनीति को नया मोड़ देने वाला साबित हो सकता है।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने ऐलान किया है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति में सऊदी अरब पाकिस्तान का साथ देगा।
इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान की परमाणु क्षमता सऊदी अरब के उपयोग के लिए उपलब्ध रहेगी।
यह समझौता नाटो के अनुच्छेद-5 जैसा माना जा रहा है, जिसमें कहा गया है कि किसी एक सदस्य पर हमला सभी पर हमला समझा जाएगा।
रक्षा समझौते की शर्तें: एक पर हमला, दोनों पर हमला
बुधवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की रियाद यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच Mutual Defense Agreement यानी पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
इस मौके पर पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर, उप प्रधानमंत्री इशाक डार और रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ भी मौजूद थे।
इस समझौते की शर्तें है कि अगर किसी एक देश पर हमला होता है, तो इसे दोनों पर हमला माना जाएगा। दोनों देश मिलकर हमले का जवाब देंगे।
इस सहयोग में conventional weapons, trained forces और जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियार तक शामिल होंगे।
पाकिस्तानी मीडिया और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुसार, यह समझौता न केवल सैन्य सहयोग बल्कि रक्षा तकनीक, प्रशिक्षण और खुफिया जानकारी साझा करने तक फैला हुआ है।
पाक रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का बड़ा दावा
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने पाकिस्तानी टीवी चैनल से बातचीत में बड़ा दावा किया है।
उन्होंने कहा कि हमारी परमाणु क्षमता पहले से मजबूत है और यह हमारी रक्षा नीति का अहम हिस्सा है। यह क्षमता हमारे सहयोगियों की सुरक्षा के लिए भी उपलब्ध होगी।
यह समझौता नाटो आर्टिकल-5 जैसा है। यानी अगर पाकिस्तान या सऊदी अरब पर हमला होता है, तो दोनों मिलकर उसका जवाब देंगे।
जब उनसे पूछा गया कि यदि भारत और पाक के बीच जंग हुई तो क्या सऊदी अरब पाकिस्तान का साथ देगा? तो उन्होंने जवाब दिया—हां, बिल्कुल। इसमें कोई संदेह नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि यह समझौता रक्षात्मक है, आक्रामक नहीं। पाकिस्तान का उद्देश्य हमला करना नहीं, बल्कि खुद और अपने सहयोगियों की रक्षा करना है।
पाकिस्तान के परमाणु हथियार और सऊदी अरब
पाकिस्तान के पास वर्तमान में लगभग 170 परमाणु हथियार हैं, जबकि भारत के पास लगभग 172। यह दोनों देशों को परमाणु शक्ति संतुलन में बराबरी पर खड़ा करता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक – सऊदी अरब ने पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को वर्षों से आर्थिक मदद दी है।
अब यह समझौता सऊदी को अप्रत्यक्ष रूप से एक न्यूक्लियर अम्ब्रेला (Nuclear Umbrella) उपलब्ध कराता है।
रक्षा मंत्री आसिफ ने साफ कहा कि हमारी क्षमताएं इस समझौते के तहत उपलब्ध होंगी। इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परमाणु सुरक्षा से जुड़े बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं।
वहीं, भारत सरकार का इस समझौते पर कहना है कि यह पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच पहले से मौजूद संबंधों को औपचारिक रूप देता है। इसके निहितार्थों पर विचार किया जा रहा है।
विदेश मंत्री इशाक डार का बयान
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने इस समझौते को ऐतिहासिक बताया।
उन्होंने कहा कि सऊदी अरब हमेशा पाकिस्तान का साथी रहा है, खासकर आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय संकटों में।
इस समझौते के बाद कई अन्य देशों ने भी पाकिस्तान के साथ रणनीतिक रक्षा सहयोग करने की इच्छा जताई है।
मंत्री इशाक डार ने इसे पाकिस्तान-सऊदी रिश्तों का मील का पत्थर बताया।
हालांकि भारत के रणनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि यह समझौता पाकिस्तान और सऊदी अरब को एक नई रक्षा धुरी (Defense Axis) में बदल सकता है।
भारत के लिए यह खतरे की घंटी है क्योंकि अब संभावित युद्ध की स्थिति में उसे केवल पाकिस्तान ही नहीं बल्कि सऊदी समर्थित ब्लॉक का भी सामना करना पड़ सकता है।
समझौते का अंतरराष्ट्रीय असर
यह डील केवल भारत-पाक-सऊदी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव वैश्विक भू-राजनीति पर भी पड़ेगा।
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अमेरिका और पश्चिमी देश
- पाकिस्तान पहले भी अमेरिका के साथ 1950-70 के दशक में रक्षा गठबंधन कर चुका था।
- लेकिन भारत से जंग के समय अमेरिका ने कभी सीधी मदद नहीं की।
- अब सऊदी अरब का जुड़ना अमेरिका और पश्चिम के लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि यह मध्य-पूर्व की शक्ति-संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
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ईरान और खाड़ी क्षेत्र
- सऊदी अरब और ईरान के रिश्ते पहले से तनावपूर्ण हैं।
- पाकिस्तान-सऊदी रक्षा समझौता ईरान को और सतर्क कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ सकती है।
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चीन का फैक्टर
- पाकिस्तान पहले से चीन का करीबी सहयोगी है।
- अब सऊदी के जुड़ने से पाकिस्तान को आर्थिक और रणनीतिक मजबूती मिल सकती है।
भारत के सामने क्या है चुनौती?
भारत और सऊदी अरब के बीच भी गहरे रिश्ते हैं। भारत सऊदी से अपनी ऊर्जा जरूरतों का बड़ा हिस्सा पूरा करता है।
लगभग 25 लाख भारतीय प्रवासी सऊदी अरब में रहते और काम करते हैं। भारत और सऊदी अरब के बीच अरबों डॉलर का व्यापार है।
इस लिहाज से भारत को अब सावधानी से कूटनीतिक संतुलन साधना होगा।
एक तरफ पाकिस्तान-सऊदी की नजदीकी है। दूसरी तरफ भारत और सऊदी के आर्थिक व सामरिक रिश्ते भी मजबूत हैं।
कई रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह समझौता पाकिस्तान के लिए सुरक्षा गारंटी और सऊदी अरब के लिए अप्रत्यक्ष रूप से न्यूक्लियर बैकअप है।
भारत को अब खाड़ी देशों के साथ अपनी कूटनीतिक गतिविधियों को और मजबूत करना होगा।
अगर भविष्य में भारत-पाक में टकराव हुआ तो यह केवल द्विपक्षीय संघर्ष नहीं रहेगा, बल्कि इसमें क्षेत्रीय ताकतों की भागीदारी भी हो सकती है।
