Cambodia Thailand War Ceasefire

Cambodia Thailand War Ceasefire

कैसे थमा थाईलैंड-कंबोडिया का सीमा संघर्ष? जानिए दोनों देशों के बीच का मंदिर विवाद

Share Politics Wala News

 

Cambodia Thailand War Ceasefire: 2025 में जब दुनिया अपने-अपने राजनीतिक और आर्थिक संकटों से जूझ रही थी।

तब दक्षिण-पूर्व एशिया में थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा संघर्ष एक भयंकर मानवीय त्रासदी का रूप ले चुका था।

अब तक 35 लोगों की मौत, 2.7 लाख का विस्थापन और युद्धविराम लागू हो चुका है। भारत ने भी तुरंत एडवाइजरी जारी कर दी है।

ये सिर्फ एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर एक गंभीर सवाल बन चुका है।

कंबोडिया ने की थाईलैंड के साथ युद्धविराम की घोषणा 

कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन मानेट ने थाईलैंड के साथ चल रहे सीमा विवाद में युद्धविराम की घोषणा की है।

उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच तनाव को कम करने के लिए तत्काल लड़ाई रोकने की उम्मीद है।

चीन और अमेरिका ने इस सीजफायर में मध्यस्थता की है।

मलेशिया इस समय दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन ASEAN की अध्यक्षता कर रहा है।

बता दें दोनों देशों के बीच सीमा विवाद के चलते बीते दिनों में भारी गोलीबारी हुई है।

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच एक हजार साल पुराने दो शिव मंदिरों को लेकर संघर्ष शुरू हुआ था।

कंबोडिया ने थाईलैंड पर जानबूझकर हमला करने का आरोप लगाया था।

वहीं, UN सुरक्षा परिषद की इमरजेंसी बैठक में थाईलैंड ने कंबोडिया पर सीमावर्ती इलाके में बारूदी सुरंगें बिछने का आरोप लगाया।

यह वॉर मुझे भारत-पाक संघर्ष की याद दिलाती है – ट्रंप

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रविवार को कहा था कि उन्होंने पहले भारत और पाकिस्तान के बीच का विवाद भी सुलझाया है।

इसलिए थाईलैंड और कंबोडिया के बीच संघर्ष को सुलझाना उनके लिए आसान काम है।

उन्होंने थाईलैंड और कंबोडिया के नेताओं को चेतावनी दी कि अगर युद्ध नहीं रुका, तो अमेरिका व्यापारिक समझौता नहीं करेगा।

इससे पहले ट्रंप ने शनिवार को भी दावा किया था कि थाईलैंड और कंबोडिया के नेताओं ने तुरंत सीजफायर वार्ता पर सहमति दे दी है।

कंबोडियाई प्रधानमंत्री हुन मानेट ने शनिवार को दावा किया कि मलेशिया की मध्यस्थता में 24 जुलाई की रात दोनों ही देश सीजफायर पर समहत हुए थे।

लेकिन, समझौते पर पहुंचने के 1 घंटे से भी कम वक्त में थाईलैंड ने अपना रुख बदल दिया और समझौते से हट गया।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने शुक्रवार को न्यूयॉर्क में बंद कमरे में एक आपात बैठक की। इसमें सभी 15 देशों ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की थी।

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद वर्षों पुराना

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा विवाद वर्षों पुराना है, लेकिन जुलाई 2025 में हालात अचानक ऐसे बिगड़े कि वह एक खुले सैन्य टकराव में बदल गया।

दोनों देशों की सेनाओं के बीच भीषण गोलीबारी हुई, जिसमें आम नागरिकों की जानें गईं और लाखों लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े।

इस त्रासदी के बीच वैश्विक संस्थाएं जैसे ASEAN और UN भी मध्यस्थता के लिए कूद पड़ीं।

भारत ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तुरंत अपने नागरिकों के लिए चेतावनी जारी की। आइए, समझते हैं इस संघर्ष के हर पहलू को बिंदुवार।

1 – कैसे दशकों पुराना मंदिर बना संघर्ष की वजह?

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा रेखा को लेकर विवाद दशकों से चला आ रहा है, विशेष रूप से प्रीह विहियर मंदिर क्षेत्र को लेकर।

यह मंदिर एक हिंदू-बौद्ध स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है, जो 11वीं सदी में खमेर साम्राज्य के शासनकाल में बनाया गया था।

मंदिर का स्थान ऊंचाई पर है और वहां से पूरा क्षेत्र रणनीतिक दृष्टिकोण से दिखाई देता है।

यही वजह है कि यह सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि सैन्य दृष्टिकोण से भी बेहद संवेदनशील है। 

1962 में ICJ (International Court of Justice) ने इस मंदिर को कंबोडिया का हिस्सा माना था। 

लेकिन थाईलैंड इस फैसले को “सीमित” और “भौगोलिक रूप से अपूर्ण” मानता आया है। 

2008 में जब मंदिर को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट घोषित किया गया, तब भी भारी हिंसा हुई थी। 

यह मंदिर अब राष्ट्रीय गर्व, सांस्कृतिक पहचान और सैन्य नियंत्रण तीनों का प्रतीक बन चुका है और यही इसे बेहद संवेदनशील बनाता है। 

2 – मौतों और विस्थापन का आंकड़ा कितना बड़ा है?

जुलाई 2025 के दूसरे सप्ताह में दोनों देशों की सेनाओं ने एक-दूसरे पर सीमा उल्लंघन और गोलाबारी शुरू करने के आरोप लगाए।

मामला तब और बिगड़ गया जब 19 जुलाई को एक कंबोडियाई गश्ती वाहन पर हमला हुआ, जिसमें दो सैनिक मारे गए।

जवाबी कार्रवाई में थाई सेना ने मोर्चा संभाला और देखते ही देखते पूरे सीमा क्षेत्र में आग फैल गई।

अब तक की रिपोर्ट्स के मुताबिक, कम से कम 35 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें महिलाएं, बच्चे और सैनिक शामिल हैं।

करीब 2.7 लाख लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं। इनमें अधिकांश कंबोडिया के सीमावर्ती गांवों के लोग हैं, जो अब राहत शिविरों में रह रहे हैं।

कई स्कूलों को शरणस्थल में बदला गया है, खाने-पीने और दवाइयों की भारी कमी हो रही है।

कुछ गांव ऐसे हैं जहां बिजली, संचार और पानी तीनों सुविधाएं पूरी तरह ठप हैं।

यह सिर्फ आंकड़े नहीं, बल्कि इंसानियत की जमीनी चीख है, जो सुनाई नहीं देती पर महसूस की जा सकती है।

3 – युद्धविराम कैसे लागू हुआ और भारत की भूमिका क्या है?

लगातार बढ़ते दबाव और अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं के चलते 27 जुलाई 2025 को ASEAN, संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका की मध्यस्थता से तत्काल युद्धविराम लागू किया गया।

युद्धविराम के तहत दोनों देशों की सेनाओं को सीमा से 5 किलोमीटर पीछे हटने का निर्देश दिया गया है। हालांकि ज़मीनी स्थिति अब भी पूरी तरह शांत नहीं है।

भारत ने संघर्ष को गंभीरता से लेते हुए अपने नागरिकों को थाईलैंड‑कंबोडिया सीमा क्षेत्र की यात्रा से बचने की सलाह दी है।

विदेश मंत्रालय ने विशेष हेल्पलाइन नंबर जारी किया है, ताकि जो भारतीय नागरिक उस क्षेत्र में फंसे हैं, उनकी सहायता की जा सके।

यह एडवाइजरी भारत की सतर्क और मानवीय कूटनीति का परिचायक है।

4 – इतिहास की चेतावनी: क्या हमने कुछ सीखा है? 

पिछले 20 वर्षों में थाईलैंड-कंबोडिया के बीच तीन बार बड़े टकराव हो चुके हैं: 

  • 2008: UNESCO विवाद के बाद गोलाबारी, 2 मौतें। 
  • 2011: 10 दिनों की झड़प, 20+ मौतें, सैकड़ों घायल। 
  • 2025: अब तक सबसे बड़ा विस्थापन। 

हर बार संघर्ष का अंत बातचीत और मध्यस्थता से हुआ लेकिन स्थायी समाधान कभी नहीं निकला।

सीमाओं को लेकर असहमति तब तक नहीं सुलझेगी जब तक दोनों देश मिलकर सीमा रेखा को आधिकारिक रूप से मान्यता न दें। 

5 – इस संघर्ष का व्यापक असर क्या हो सकता है?

यदि हालात काबू में नहीं आते हैं, तो यह पूरा ASEAN क्षेत्र अस्थिर हो सकता है। व्यापार, पर्यटन और निवेश पर भारी असर पड़ेगा।

शरणार्थियों के कारण थाईलैंड और वियतनाम के साथ कंबोडिया के संबंध भी तनावपूर्ण हो सकते हैं।

इसलिए यह जरूरी है कि दोनों देश संवेदनशीलता और संयम से काम लें।

दोनों देशों को अपने पुराने विवादों को संयुक्त राष्ट्र या ASEAN मंच पर सुलझाना चाहिए।

स्थायी सीमा निर्धारण, नागरिकों की सुरक्षा और सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा की गारंटी दी जानी चाहिए।

थाईलैंड‑कंबोडिया सीमा संघर्ष सिर्फ एक भौगोलिक टकराव नहीं है, यह इस बात की चेतावनी है कि राजनीति की गलत चालें, आम नागरिकों की जिंदगी को कैसे तबाह कर सकती हैं।

जब स्कूल युद्ध शिविर बन जाएं, बच्चे गोलियों की आवाज में सोएं और लोग अपने ही देश में बेगाने हो जाएं तो ज़रूरत होती है नारे नहीं, समझदारी की।

युद्धविराम पहला कदम है, लेकिन सच्चा समाधान होगा विश्वास और संवाद की वापसी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *