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Bhar election 2025-बिहार चुनाव से पहले, एक पुराना मुद्दा फिर से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के सामने आ गया है। बिहार स्टूडेंट यूनियन, जो कई छात्र संगठनों की छाता संस्था है, ने पटना में सरकारी नौकरियों में डोमिसाइल (स्थानीय निवासी) आरक्षण की मांग को लेकर प्रदर्शन किया। “वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी” बिहार चुनाव से पहले लोकप्रिय हो रहा नारा
नीति आयोग के ताज़ा अनुमान के अनुसार, बिहार में बेरोजगारी दर 3.9% है, जो राष्ट्रीय औसत 3.2% से अधिक है। राज्य के कई युवा सरकारी नौकरियों पर निर्भर हैं, जिनमें हाल के वर्षों में कई अनियमितताएं सामने आई हैं। इसलिए, चुनाव से पहले नौकरियों का मुद्दा राजनीतिक रूप से संवेदनशील हो गया है। स्थानीय (डोमिसाइल) आरक्षण की मांग करने वालों का कहना है कि राज्य के बाहर के उम्मीदवार बिहार के युवाओं की नौकरियां छीन रहे हैं। उनका नारा “वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी” चुनाव नजदीक आते ही तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
डोमिसाइल आरक्षण के तहत, किसी राज्य की सरकार सरकारी नौकरियों या शैक्षिक सीटों का एक हिस्सा अपने निवासियों के लिए आरक्षित करती है, ताकि स्थानीय उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जा सके या ‘प्रतिस्पर्धी नौकरी बाजार’ में स्थानीय हितों की रक्षा की जा सके।
“द इंडियन एक्सप्रेस” में हिमांशु हर्ष की रिपोर्ट कहती है कि फिलहाल, बिहार में सरकारी नौकरियों के लिए कोई सामान्य डोमिसाइल-आधारित आरक्षण नीति नहीं है। हालांकि, एनडीए सरकार का दावा है कि हाल की सरकारी परीक्षाओं में चयनित अधिकांश अभ्यर्थी बिहार निवासी ही हैं। इसके अलावा, लगभग पंद्रह दिन पहले, बिहार सरकार ने राज्य के दिव्यांग (विकलांग) व्यक्तियों के लिए सभी सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण की घोषणा की है।
डोमिसाइल आरक्षण की मांग करने वालों का तर्क है कि बिहार के पड़ोसी राज्यों में पहले से ही स्थानीय लोगों के लिए अवसर सुरक्षित किए गए हैं, जिससे बिहार के युवाओं को सीमित अवसरों के लिए बाहरी लोगों से असमान प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है, और इससे बेरोजगारी और प्रवास की समस्या बढ़ती है। बिहार चुनाव से पहले लोकप्रिय हो रहा “वोट दे बिहारी, नौकरी ले बाहरी”
दिसंबर 2020 में, कई प्रदर्शनों के बाद राज्य सरकार ने स्कूल शिक्षक भर्ती के लिए डोमिसाइल (स्थानीय निवासी) नियम को अस्थायी रूप से लागू किया था। लेकिन जून 2023 में, सत्ता में आई अल्पकालिक महागठबंधन सरकार ने इसे वापस ले लिया, जिससे अब किसी भी भारतीय राज्य के उम्मीदवार इन शिक्षकों की नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं।
नौकरियां कहां हैं?
डोमिसाइल आरक्षण की मांग बिहार की आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से जुड़ी है। नीति आयोग की मार्च 2025 में प्रकाशित रिपोर्ट ‘मैक्क्रो एंड फिस्कल लैंडस्केप ऑफ द स्टेट ऑफ बिहार’ के अनुसार, बिहार की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि आधारित है, जहां 2022-23 के दौरान 49.6% कार्यबल कृषि में लगा था। राज्य में केवल 5.7% लोग विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) क्षेत्र में कार्यरत हैं, जो पूरे भारत में सबसे कम है। सेवा और निर्माण क्षेत्र में क्रमशः 26% और 18.4% लोग कार्यरत हैं।
निजी क्षेत्र की नौकरियों की कमी के कारण सरकारी नौकरियां बहुत आकर्षक मानी जाती हैं, क्योंकि इनमें स्थिरता और लाभ मिलते हैं। हालांकि सरकार ने हाल के वर्षों में भर्ती बढ़ाने की कोशिश की है, लेकिन मांग अभी भी आपूर्ति से कहीं अधिक है।
युवाओं की मांग
युवाओं की मांग है कि प्राथमिक शिक्षक भर्ती में बिहार के मूल निवासियों के लिए 100% आरक्षण और अन्य राज्य नौकरियों में वैध दीर्घकालिक बिहार डोमिसाइल प्रमाणपत्र वाले उम्मीदवारों के लिए कम से कम 90% आरक्षण लागू किया जाए।
प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि पड़ोसी राज्य पहले से ही अपने स्थानीय लोगों के अवसरों की रक्षा करते हैं, जबकि बिहार के युवा सीमित अवसरों के लिए बाहरी लोगों से अनुचित प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। इससे बेरोजगारी और बिहार से पलायन का दुष्चक्र बनता है।
अन्य राज्यों के उदाहरण
डोमिसाइल आरक्षण पर राज्यों की नीतियां अलग-अलग हैं।
उत्तराखंड में श्रेणी-3 और 4 की सभी नौकरियां उन्हीं को मिलती हैं, जो कम से कम 15 साल से राज्य में रह रहे हैं।
महाराष्ट्र में भी कई सरकारी पदों के लिए 15 साल का डोमिसाइल और मराठी भाषा में दक्षता जरूरी है।
नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में संविधान के विशेष प्रावधानों के तहत स्थानीय जनजातियों के लिए सरकारी नौकरियों का बड़ा हिस्सा आरक्षित है।
जम्मू-कश्मीर में 2019 में विशेष दर्जा हटाए जाने से पहले ऐसी ही व्यवस्था थी।
2 जून 2025 को केंद्र सरकार ने लद्दाख के निवासियों के लिए 85% आरक्षण अधिसूचित किया।
2023 में झारखंड विधानसभा ने 1932 के भूमि रिकॉर्ड के आधार पर श्रेणी-3 और 4 की सभी सरकारी नौकरियां स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित करने का विधेयक पारित किया, लेकिन राज्यपाल ने संवैधानिक मुद्दों के कारण इसे लौटा दिया और यह लागू नहीं हो सका।
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