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अडानी को झटका, मीडिया जीता .. खबरे और पोस्ट हटाने का आदेश रद्द

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Adani suffers setback, media wins… order to remove news and posts cancelled

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दिल्ली। दिल्ली की एक अदालत ने चार पत्रकारों पर लगाए गए एकतरफा आदेश को गुरुवार को रद्द कर दिया। इस आदेश के तहत उन्हें अडानी समूह से जुड़े कथित ‘मानहानिकारक’ लेखों और वीडियो प्रकाशित करने से रोक दिया गया था। साथ ही पुराने वीडियो हटाने को कहा गया था।

“लाइव लॉ” के अनुसार, चार पत्रकारों रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, अयस्कांत दास और आयुष जोशी की अपील पर सुनवाई करते हुए जिला जज आशीष अग्रवाल ने कहा कि ये लेख लंबे समय से सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध हैं और सिविल जज को आदेश देने से पहले पत्रकारों की बात सुननी चाहिए थी।

“यदि बाद में वरिष्ठ सिविल जज यह पाते हैं कि प्रतिवादी पक्ष द्वारा अपनी दलीलें रखने के बाद ये लेख मानहानिकारक नहीं हैं, तो उन लेखों को जिन्हें पहले ही हटाया जा चुका है, पुनः बहाल करना संभव नहीं होगा।

इसलिए, मेरे मत में निचली अदालत को वादियों की प्रार्थनाओं पर प्रतिवादियों को अवसर देने के बाद ही फैसला करना चाहिए था”, “लाइव लॉ” ने जज अग्रवाल के कथन को बताते हुए कहा कि

6 सितंबर को रोहिणी कोर्ट के एक वरिष्ठ सिविल जज ने एकपक्षीय आदेश पारित करते हुए प्रतिवादियों को वह सामग्री हटाने का निर्देश दिया था, जिसे वादी पक्ष ने अपने व्यवसायों को लक्षित करने वाला मानहानिकारक कंटेंट बताया था। अब ज़िला अदालत ने उस आदेश को रद्द कर दिया है और पत्रकारों को राहत दी है. फ़िलहाल यह ऑर्डर केवल उन 4 पत्रकारों को राहत देगा जो कोर्ट गए थे।

इसके बाद, इसी आदेश के आधार पर 16 सितंबर को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने कई मीडिया संस्थानों और यूट्यूब चैनलों को नोटिस भेजकर अडानी ग्रुप से जुड़े वीडियो और पोस्ट हटाने के लिए कहा था।

कोर्ट ने अडानी से कहा, क्या आपके शेयर गिरे? आपको खुद यकीन नहीं कि आपकी मानहानि हुई

पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने भी 6 सितंबर के ऑर्डर को दिल्ली की एक अन्य कोर्ट में चुनौती दी है। “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार, कोर्ट ने उनकी अर्जी पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की कि कंपनी स्वयं इस बात को लेकर सुनिश्चित नहीं दिख रही है कि पत्रकार ने वास्तव में उसकी मानहानि की है या नहीं? रोहिणी अदालत के जिला न्यायाधीश सुनील चौधरी ने अडानी कंपनी से कहा, ““क्या आपके शेयर गिरे? आप किस तरह की राहत मांग रहे हैं?

आपको खुद ही यकीन नहीं है कि यह मानहानिकारक है। आप अदालत से घोषणा चाह रहे हैं, लेकिन अगर इसे मानहानिकारक घोषित ही नहीं किया गया है तो कैसे निषेधाज्ञा दी जा सकती है?”

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