-किसान पार्टी बनाने की हो रही तैयारी
जालंधर। दिल्ली की सीमाओं पर एक साल से ज्यादा वक्त तक डटे रहने वाले किसान संगठन अब पंजाब की राजनीति में भी डटने पर विचार कर रहे हैं।
तीन नए कृषि कानूनों की वापसी के बाद दिल्ली से विजय जुलूस के साथ लौटे पंजाब के किसान संगठन एक अलग राजनीतिक दल के गठन पर विचार कर रहे हैं। पंजाब चुनाव में यदि नई किसान पार्टी उतरती है तो फिर बने हुए तमाम समीकरण बदल जाएंगे और काफी अंतर देखने को मिलेगा।
जालंधर आलू उत्पादक संघ के जनरल सेक्रेटरी जसविंदर सिंह सांघा ने एक अखबार से बातचीत में यह बात कही है। यह संगठन इलाके के किसानों में अच्छी पकड़ रखता है।
सांघा ने कहा, ‘हम इसे लेकर ऐक्टिव हैं और अलग-अलग यूनियनों से संपर्क कर रहे हैं ताकि किसानों की एक पार्टी बनाई जा सके। इसके अलावा चुनावी समर में भी हम उतरने पर विचार कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर किसानों संगठनों के बीच पहले ही बात हो चुकी है, लेकिन सभी को एक साथ लाना चाहते हैं ताकि एक पार्टी बनाई जा सके। इसके अलावा समाज के कुछ और वर्गों के अच्छे लोगों को हम जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं ताकि पंजाब में एक अच्छा राजनीतिक बदलाव लाया जा सके।
उन्होंने कहा कि हम भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी की ओर से शुरू किए गए मिशन पंजाब को भी साथ लाने के प्रयास में हैं ताकि एक मजबूत फोर्स बनाई जा सके।
किसान नेता ने कहा कि हम संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल रहे अलग-अलग संगठनों से बात कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो बदलाव चाहते हैं कि लेकिन दूसरे दलों का हिस्सा हैं। वे भी इससे जुड़ सकेंगे और हम उनसे भी बात करेंगे। सांघा ने कहा कि किसान संगठनों में यह बात मजबूती से उठ रही है कि दूसरे दलों को समर्थन देने या फिर उनके साथ मिलने से अच्छा है कि अलग से अपने एक दल का ही गठन किया जाए।
किसान आंदोलन का पंजाब की राजनीति में पहले ही काफी असर देखने को मिल रहा है। अब यदि वे नई पार्टी का गठन करते हैं तो फिर अब तक बताए जा रहे सारे समीकरण शीर्षासन की स्थिति में होंगे।
किसानों का पहली बार इतना मजबूत संगठन पंजाब, हरियाणा और वेस्ट यूपी में देखने को मिल रहा है। ऐसे में किसान पार्टी बनना राजनीतिक धारा में बड़ी हलचल पैदा कर सकता है।
खासतौर पर पंजाब में अकाली दल, भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों को ऐसी किसी पार्टी के गठन से सीधा नुकसान होगा। हालांकि इसमें भी वही पार्टी राहत में होगी, जिसे सबसे कम नुकसान होगा। अभी के हालात में इसका सबसे ज्यादा खामियाजा भाजपा और अकाली दल को ही भुगतना पड़ सकता है।
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