Bihar SIR

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पूरे देश में होगा बिहार की तरह SIR, जानें क्यों आधे से ज्यादा वोटर्स को नहीं दिखाने होंगे दस्तावेज?

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Bihar SIR: चुनाव आयोग (EC) ने बड़ा फैसला लिया है। अब बिहार मॉडल पर पूरे देश में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की प्रक्रिया लागू की जाएगी।

इससे देशभर के आधे से ज्यादा यानी 50 करोड़ से अधिक मतदाताओं को कोई भी अतिरिक्त दस्तावेज नहीं देना होगा, क्योंकि उनके नाम पहले से ही पिछली विशेष मतदाता सूची में शामिल हैं।

क्यों नहीं लगेगा दस्तावेज आधे से ज्यादा वोटर्स को

निर्वाचन आयोग के अधिकारियों के मुताबिक, देश के ज्यादातर राज्यों में आखिरी बार SIR 2002 से 2008 के बीच हुआ था।

उस समय जिन मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में दर्ज किए गए थे, उन्हें अब जन्मतिथि या जन्मस्थान साबित करने के लिए कोई कागज नहीं देना होगा।

यह इसलिए भी आसान हो गया है क्योंकि आयोग ने पहले से दर्ज नामों को वैध मान लिया है।

मतदाताओं के लिए शर्तें इस प्रकार हैं—

  • 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे मतदाता सिर्फ घोषणा पत्र भरेंगे और कोई अन्य दस्तावेज नहीं देना होगा।
  • 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोग वोटर बनने के लिए अपने माता-पिता के जन्म या नागरिकता से जुड़े दस्तावेज पेश करेंगे।
  • 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे आवेदकों के लिए शर्त और कड़ी है। उन्हें यह साबित करना होगा कि माता-पिता में से कम से कम एक भारतीय नागरिक है और दूसरा अवैध प्रवासी नहीं है।

बिहार का अनुभव बना आधार

बिहार में 2003 में आखिरी SIR हुआ था।

वहां की मतदाता सूची को आधार मानकर 60% यानी लगभग 5 करोड़ मतदाताओं को कोई कागज नहीं देना पड़ा

जबकि शेष 40% यानी करीब 3 करोड़ नए मतदाताओं को दस्तावेज देने पड़े।

शुरुआत में 11 दस्तावेज मान्य थे, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आधार कार्ड को 12वें दस्तावेज के रूप में मान्यता दी गई।

बिहार का यह मॉडल सफल माना गया, हालांकि विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि दस्तावेज न होने की वजह से गरीब और हाशिए पर खड़े लोग वोट देने के अधिकार से वंचित हो सकते हैं।

देशभर में कैसी होगी प्रक्रिया

EC का लक्ष्य है कि इस बार पूरे देश में एक साथ SIR कराया जाए। इसके लिए राज्यों को तैयारी शुरू करने के निर्देश दिए जा चुके हैं।

असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, त्रिपुरा और जम्मू-कश्मीर में आखिरी गहन समीक्षा 2005 में हुई थी।

महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश में 2006-07 में और दिल्ली में 2008 में यह प्रक्रिया हुई थी।

अब सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEO) को पिछली SIR लिस्ट तैयार रखने का आदेश दिया गया है।

नए वोटर्स के लिए डिक्लेरेशन फॉर्म

जो लोग पहली बार वोटर बनना चाहते हैं या जो दूसरे राज्य से शिफ्ट होकर आए हैं, उन्हें डिक्लेरेशन फॉर्म भरना होगा।

इसमें उन्हें यह स्पष्ट करना होगा कि वे भारत में कब जन्मे हैं और माता-पिता की नागरिकता से जुड़े दस्तावेज भी देने होंगे।

बिहार में 12 दस्तावेज मान्य किए गए थे। इनमें वोटर कार्ड, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड जैसे विकल्प शामिल थे।

अब EC ने साफ किया है कि बाकी राज्यों में भी दस्तावेजों की संख्या स्थानीय जरूरतों और इनपुट के आधार पर घटाई-बढ़ाई जा सकती है।

BLO की संख्या दोगुनी होगी

इस बार निर्वाचन आयोग करीब दो लाख नए बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) नियुक्त करेगा।

मकसद यह है कि हर 250 घरों पर एक चुनाव प्रतिनिधि तैनात हो, ताकि प्रक्रिया आसान और पारदर्शी बने।

आयोग ने इस प्रक्रिया को समयबद्ध करने के लिए रोडमैप तैयार किया है।

मतदाता फॉर्म भरने की अवधि 30 दिन से बढ़ाकर 45 दिन की जा सकती है।

ड्राफ्ट मतदाता सूची पर दावे और आपत्तियां दर्ज कराने के लिए भी 45 दिन का समय मिलेगा।

दस्तावेजों की जांच के लिए 1 महीना पर्याप्त माना गया है।

इस तरह पूरा SIR अभियान 4 से 5 महीने के भीतर पूरा हो जाएगा और उसके बाद फाइनल मतदाता सूची जारी की जाएगी।

बिहार से सबक, लेकिन राजनीति भी होगी

फिलहाल, बिहार के अनुभव से यह साफ है कि SIR मतदाता सूची को पारदर्शी बनाने में मदद करता है।

लेकिन विपक्ष की आशंकाएं भी सही साबित हुईं कि कागजात की कमी से कुछ लोग बाहर रह सकते हैं।

अब जब इसे पूरे देश में लागू किया जा रहा है, तो संभावना है कि इस मुद्दे पर फिर से राजनीतिक विवाद खड़ा होगा।

जहां, पूरे देश में SIR लागू होने से एक ओर चुनावी प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी और संगठित होगी।

वहीं दूसरी ओर आम मतदाताओं के लिए दस्तावेजी झंझट भी बढ़ सकता है।

फिलहाल राहत यह है कि आधे से ज्यादा मतदाताओं को कोई कागज नहीं देना होगा।

लेकिन नए वोटर्स और 1987 के बाद जन्मे लोगों को नियमों के हिसाब से दस्तावेज जरूर प्रस्तुत करने होंगे।

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