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50 Years of Emergency-भाजपा पूरे देश में आपातकाल की 50 वीं सालगिरह मना रही है। प्रधानमंत्री से लेकर सारे बड़े मंत्रियों और भाजपा के दिग्गजों को बोलने के लिए एक विषय मिल गया है। भाजपा आपातकाल को लोकतंत्र का काला अध्याय बता रही है। कांग्रेस ने इस पर पलटवार करके कहा है कि पिछले 11 वर्षों से देश में अघोषित आपातकाल है तथा लोकतंत्र पर अलग-अलग दिशाओं से संगठित एवं खतरनाक हमले किए जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने (25 जून) आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर इसे भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक बताते हुए कहा कि कोई भी भारतीय यह कभी नहीं भूलेगा कि किस प्रकार संविधान की भावना का उल्लंघन किया गया और संसद की आवाज को दबाया गया। इसके पलटवार में कांग्रेस ने भी मोदी सरकार पर पटवार किया और मोदी सरकार के कार्यकाल पर तीखा हमला किया है।
कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हमले को लेकर बुधवार को पलटवार किया।
कांग्रेस ने आरोप लगाया कि पिछले 11 वर्षों से देश में अघोषित आपातकाल है।
लोकतंत्र पर अलग-अलग दिशाओं से संगठित एवं खतरनाक हमले किए जा रहे हैं।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि मोदी सरकार में संविधान पर हमले हो रहे हैं।
राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ जांच एजेंसियो का दुरुपयोग किया जा रहा है।
संसदीय परंपराओं को तार-तार किया जा रहा है, न्यायपालिका को कमजोर किया जा रहा है।
और अब निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर भी गंभीर प्रश्नचिह्न लग चुके हैं।
उन्होंने कहा- 11 साल से अघोषित आपातकाल है। संविधान पर हमले हो रहे हैं।
पिछले 11 वर्ष और तीस दिन से भारतीयलोकतंत्र पांच दिशाओं से हो रहे एक संगठित और खतरनाक हमले की चपेट में है।
संविधान बदलने के लिए जनादेश की मांग की गई।
प्रधानमंत्री ने 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान जनादेश की मांग की थी।
बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की विरासत को धोखा देने के इरादे से चार सौ पार’’ का जनादेश भारत की जनता से मांगा था।
ताकि संविधान बदल सकें। लेकिन भारत की जनता ने उन्हें यह जनादेश देने से मना कर दिया।
जनता ने मौजूदा संविधान में निहित आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक न्याय को संरक्षित सुरक्षित करने एवं आगे बढ़ाने के लिए वोट दिया।
रमेश ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने लगातार संसदीय परंपराओं और मर्यादाओं को तार-तार किया है।
जनता से जुड़े मुद्दे उठाने भर पर सांसदों को मनमाने तरीके से निलंबित कर दिया गया।
उनका कहना है, सरकार ने राष्ट्रीय महत्व के गंभीर मुद्दों पर चर्चा से इनकार किया है।
महत्वपूर्ण विधेयकों को बगैर बहस के जबरन पारित कराया गया।
संसदीय समितियों की भूमिका को दरकिनार कर दिया गया है।
कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की भूमिका अप्रासंगिक बना दी गई है।
निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग चुके हैं।
कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों की पारदर्शिता को लेकर जो गंभीर सवाल उठे, उन्हें जानबूझकर नजरअंदाज किया गया।
चुनाव की तारीखों और चरणों को इस तरह से तय किया गया कि उसका सीधा लाभ सत्तारूढ़ पार्टी को मिले।
प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं द्वारा दिए गए विभाजनकारी और भड़काऊ बयानों पर भी चुनाव आयोग पूरी तरह चुप्पी साधे रहा है।
रमेश ने यह आरोप भी लगाया कि मोदी सरकार ने केंद्र-राज्य संबंधों को नुकसान पहुंचाया है।
उन्होंने कहा, भाजपा ने विपक्षी नेतृत्व वाली राज्य सरकारों को गिराने के लिए धनबल का इस्तेमाल किया।
विपक्ष-शासित राज्यों में विधेयकों को रोकने और विश्वविद्यालयों की नियुक्तियों में अनावश्यक हस्तक्षेप करने के लिए राज्यपाल कार्यालय का दुरुपयोग किया गया।
केंद्र सरकार द्वारा संवैधानिक राजकोषीय व्यवस्थाओं को दरकिनार कर उपकर का जरूरत से ज्यादा उपयोग करते हुए राज्यों को उनके वैध राजस्व हिस्से से वंचित कर दिया गया।
न्यायपालिका को कमजोर किया गया है, टैक्स टेररिज्म तथा एजेंसियो के माध्यम से डर का ऐसा माहौल बनाया गया है कि पहले बेबाक रहने वाले कई उद्योगपति अब चुप हैं।
उन्होंने कहा, जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करके एक पसंदीदा कॉरपोरेट समूह को लाभ पहुंचाया गया।
हवाई अड्डे, बंदरगाह, सीमेंट संयंत्र और यहां तक कि मीडिया हाउस तक उस समूह को सौंप दिए गए।
रमेश ने आरोप लगाया कि ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग जैसी संस्थाओं का इस्तेमाल विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं को परेशान करने और उन्हें बदनाम करने के लिए किया जा रहा है।
सरकार की आलोचना करने वालों को लगातार बदनाम किया गया है।
सत्ता में बैठे लोगों द्वारा जानबूझकर नफरत और कट्टरता फैलाई जाती है।
महात्मा गांधी के हत्यारों का महिमामंडन किया गया।
अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अपने जीवन और संपत्ति को लेकर भय के माहौल में जी रहे हैं।
दलितों और अन्य वंचित समूहों को लगातार निशाना बनाया गया है।
नफ़रत फैलाने वाले वाले मंत्रियों को इनाम के तौर पर पदोन्नति मिली है।
उन्होंने यह दावा भी किया, आज मीडिया पर अभूतपूर्व दबाव है।
सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों और समाचार संस्थानों को धमकी, गिरफ्तारी और छापे का सामना करना पड़ा है।
जनता को ताकत देने वाला सूचना का अधिकार कानून भी लगभग निष्प्रभावी कर दिया गया है।
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