MP OBC Reservation Meeting: मध्यप्रदेश में 27% ओबीसी आरक्षण का मुद्दा बीते छह साल से राजनीति और न्यायपालिका के बीच उलझा हुआ है।
गुरुवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सीएम हाउस में इस पर सर्वदलीय बैठक बुलाई।
बैठक के बाद उन्होंने घोषणा की कि प्रदेश के सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर एकमत हैं।
सभी चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट जल्द फैसला सुनाए, ताकि लाखों अभ्यर्थियों को उम्र सीमा खत्म होने से पहले आरक्षण का लाभ मिल सके।
सीएम ने कहा कि फिलहाल 14% आरक्षण लागू है और 13% “होल्ड” पर है।
इसे भी लागू करने के लिए राज्य सरकार हर संभव कोशिश कर रही है।
हालांकि, बैठक के बाद यह साफ हो गया कि राजनीतिक दल मुद्दे पर तो साथ हैं, लेकिन अब श्रेय की लड़ाई शुरू हो गई है ।
बीजेपी नारियल फोड़कर श्रेय ले रही- कांग्रेस
बैठक खत्म होने के बाद कांग्रेस ने मोर्चा संभाला और प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि बैठक का नतीजा खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसा रहा।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव, सांसद अशोक सिंह और विधायक कमलेश्वर पटेल मौजूद रहे।
उमंग सिंघार ने आरोप लगाया कि बीजेपी कांग्रेस के बनाए घर में नारियल फोड़कर श्रेय लेना चाहती है।
उन्होंने कहा कि ओबीसी समाज के हित में किसी भी तरह की राजनीति नहीं होनी चाहिए। कांग्रेस ने ही अध्यादेश लाकर 27% आरक्षण लागू किया था।
अब बीजेपी उसी को अपनी उपलब्धि बताना चाहती है।
जीतू पटवारी ने तो यहां तक कह दिया कि बीजेपी सरकार को “नाक रगड़कर माफी” मांगनी चाहिए कि उसने कांग्रेस सरकार द्वारा दिए गए आरक्षण को रोका था।
बैठक को लेकर आप और सपा का रुख
आम आदमी पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रानी अग्रवाल ने कहा कि 27% आरक्षण तो पहले ही लागू हो चुका था।
यह ओबीसी का हक है और उसे मिलना ही चाहिए। केंद्र और राज्य दोनों जगह बीजेपी की सरकार है, लेकिन फिर भी यह मुद्दा लटकाया जा रहा है।
वहीं समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मनोज यादव ने कहा कि ओबीसी की आबादी के हिसाब से उन्हें 52% आरक्षण मिलना चाहिए।
उन्होंने सरकार से तत्काल प्रभाव से 13% होल्ड आरक्षण लागू करने और जिला-हाईकोर्ट में वकीलों की नियुक्ति में ओबीसी आरक्षण देने की मांग की।
वहीं, बैठक से पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर तंज कसते हुए लिखा कि प्रदेश सरकार खुद के बुने जाल में फंस चुकी है।
जब कांग्रेस सरकार ने पहले ही 27% आरक्षण लागू कर दिया था, तो अब सर्वदलीय बैठक की जरूरत क्यों पड़ी? उन्होंने इसे जनता को गुमराह करने का षड्यंत्र बताया।
ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर प्रदेश सरकार बार-बार अपने ही बुने जाल में फँस रही है।
18 अगस्त को मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल काउंटर एफिडेविट में कहा था कि ओबीसी को 27% आरक्षण की मांग करने वाली याचिकाएँ सुनवाई योग्य नहीं हैं, इसलिए उन्हें खारिज किया… pic.twitter.com/EGxbMRbAce
— Kamal Nath (@OfficeOfKNath) August 28, 2025
ओबीसी आरक्षण का सफर: 14% से 27% तक
मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण की पूरी कहानी 2019 से शुरू होती है।
- 2019: कमलनाथ सरकार ने आबादी का हवाला देते हुए आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% करने का फैसला लिया। विधानसभा में अध्यादेश लाया गया।
- 2020: हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर हुईं। दलील दी गई कि कुल आरक्षण 50% से ज्यादा नहीं हो सकता। हाईकोर्ट ने भर्ती प्रक्रिया में 27% आरक्षण पर रोक लगा दी।
- 2021-2024: मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां अब तक सुनवाई लंबित है।
- 2025: लाखों अभ्यर्थी नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं। कई बार कोर्ट यह कह चुका है कि रोक नहीं है, लेकिन सरकार और MPPSC प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ा रहे।
MPPSC का नया आवेदन
बैठक से एक दिन पहले MPPSC ने सुप्रीम कोर्ट में नया आवेदन दिया।
इसमें आयोग ने पहले दाखिल हलफनामे में आई त्रुटियों के लिए बिना शर्त माफी मांगी और पुराने एफिडेविट को रिकॉर्ड से हटाकर नया एफिडेविट स्वीकार करने की मांग की।
इस अर्जी में कहा गया कि औपचारिक पैराग्राफ से जुड़ी कुछ गलतियां रह गई थीं।
इन्हें सुधारकर संशोधित एफिडेविट (Annexure A1) दाखिल करने की अनुमति दी जाए।
6 साल से अटका OBC आरक्षण
2019 में फैसला होने के बावजूद आज तक ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण का फायदा नहीं मिल पाया। कई चयनित अभ्यर्थी नियुक्ति पत्र का इंतजार कर रहे हैं।
सरकार यह कहकर नियुक्तियां टाल रही है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है, जबकि कोर्ट कई बार कह चुका है कि ऐसी कोई रोक नहीं है।
भले ही सर्वदलीय बैठक में सभी दल एकमत दिखे, लेकिन असली जंग इस बात पर है कि जनता के सामने श्रेय किसे मिले?
कांग्रेस, जिसने 2019 में अध्यादेश लाकर यह फैसला लागू किया था या फिर बीजेपी जो अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित प्रकरण के समाधान का दावा कर रही है।
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