ट्रम्प की टैरिफ नीति ने लगभग पूरे विश्व में उठापटक मचा दी है। अब फार्मास्युटिकल क्षेत्र पर भी इसका असर होने वाला है। लेकिन ट्रम्प यदि भारत में बनी दवाइयों पर टैरिफ बढ़ता है तो अमेरिका बीमार हो जायेगा। इसके माने यह हैं कि अमेरिका को दवाइयां भेजने से फायदा सिर्फ भारत को हो रहा है ऐसा नहीं है। इसका सबसे बड़ा फायदा तो खुद अमेरिका उठा रहा है। आइये जानते हैं –
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Tariff on Pharma: वाशिंगटन/दिल्ली। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फार्मास्युटिकल्स कंपनियों पर भारी भरकम टैरिफ लगाने की बात कर रहे हैं। ट्रम्प ने कहा मेरा काम अमेरिकी सपनों की रक्षा करने का है। मुझे अपने अमेरिकी नागरिकों की रक्षा करनी है और यही मेरा काम भी है। ट्रंप ने आगे कहा कि मैं इन कंपनियों पर इतना टैरिफ लगाने जा रहा हूं कि उनको सीधा अमेरिका में आकर अपनी यूनिट सेटअप करना ज्यादा बेहतर लगेगा।
पहले, ट्रंप सरकार ने फार्मास्यूटिकल्स और सेमीकंडक्टर को अपनी रेसिप्रोकल टैरिफ नीति के दायरे से छूट दी थी. लेकिन अब वो पलटते नजर आ रहे हैं। अमेरिका लिखी हुई 10 में से 4 हमारी दवाई खाता है। और हमारी दवाई खाकर हम ही पर टैरिफ लगाने की बात कर रहा है।
-अमेरिका लिखी हुई 10 में से 4 हमारी दवाई खाता है।
-भारतीय कंपनियों की दवाओं की वजह से ही 2022 में अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ने 219 बिलियन अमेरिकी डॉलर बचाये
-2013 से 2022 तक कुल 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत की।
भारत दवाइयों का सबसे बड़ा सप्लायर
अगर ट्रंप फार्मा कंपनियों से होने वाले आयात पर भी नए टैरिफ लगा देते हैं, तो अमेरिका को दवाओं के सबसे बड़े सप्लायर्स में से एक, भारत काफी प्रभावित हो सकता है। 2024 में, भारत के कुल फार्मास्युटिकल निर्यात का मूल्य 12.72 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। इनमें से 8.7 बिलियन डॉलर की सप्लाई अमेरिका गई थी। जबकि वहां से केवल 800 मिलियन डॉलर के फार्मा प्रोडक्ट्स भारत आते हैं। अभी तक भारत अमेरिका से आने वाली इन दवाईयों पर 10.91 प्रतिशत टैरिफ लगाता है। अब तक अमेरिका भारतीय दवाओं पर कोई टैरिफ नहीं लगा रहा है। 2 अप्रैल के टैरिफ ऐलान में ट्रंप ने फॉर्मा सेक्टर को बाहर रखा था और इसपर कोई अतिरिक्त टैरिफ नहीं लगाया था लेकिन अब इसे ट्रंप बढ़ाने की बात कह रहे हैं।
दस में से 4 हमारी दवाई खाते हैं
एक अंग्रेजी दैनिक की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में अमेरिका में लिखी गई दस में से 4 दवाई भारतीय कंपनियों से आई थीं। वास्तव में, भारतीय कंपनियों की दवाओं की वजह से ही 2022 में अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ने 219 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 2013 से 2022 तक कुल 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत की। यानि अमेरिका हमारी जेनेरिक दवाई खाकर पैसा बचा रहा है। अगले पांच सालों में, भारतीय कंपनियों की जेनेरिक दवाओं से अमेरिका को अतिरिक्त 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत होने की उम्मीद है।
भारत अगर अमेरिकी दवा कंपनियों से टैरिफ हटाता है तो उसे करीब 50 मिलियन डॉलर का नुकसान होगा और यह सहनीय है। लेकिन अगर ट्रंप दूसरे दौर में फार्मा पर भी 26 प्रतिशत का टैरिफ थोपते हैं, तो भारत की दवा कंपनियों को जबर्दस्त झटका लगेगा। इससे कम कीमत पर अमेरिका में दवाइयां बेच रही भारतीय दवा कंपनियां नुकसान में चली जाएंगी। उन्हें टैरिफ की वजह से अपनी दवा की कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी और इससे अमेरिकी हेल्थकेयर सिस्टम पर बड़ी चोट लगेगी।
ये है ट्रम्प का प्लान
ट्रंप ने कहा, “फार्मा पर टैरिफ इसलिए लगाना होगा क्योंकि हम अपनी खुद की फार्मा दवाएं नहीं बनाते हैं। वे दूसरे देश में बनाई जाती हैं। अमेरिका में एक ही पैकेट की कीमत 10 अमेरिकी डॉलर या उससे अधिक है। हम फार्मा पर टैरिफ इस तरह से लगाने जा रहे हैं कि कंपनियां बहुत जल्द हमारे पास आएंगी। हमारे पास लाभ यह है कि हम बहुत बड़े बाजार हैं। बहुत जल्द, फार्मा पर एक बड़े टैरिफ की घोषणा करेंगे, और जब ये कंपनियां यह सुनेंगी, तो वे चीन और अन्य देशों को छोड़ देंगी क्योंकि उनके अधिकांश उत्पाद यहां बेचे जाते हैं। और, वे यहां अपने प्लांट खोलेंगी।
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