इंदौर विधायक और महापौर प्रत्याशी रहे संजय शुक्ला का मोदी प्रेम सार्वजनिक रूप से सामने है। सवाल यही है कि क्या कांग्रेस के इस जमीनी नेता ने अब भाजपा का भगवा ओढ़ने का इरादा कर लिया है।
पंकज मुकाती (संपादक, पॉलिटिक्सवाला )
इंदौर। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने खुलेआम अपने नेताओं को कहा है कि -जिसे भी भाजपा में जाना है, मेरी कार से छोड़कर आऊंगा। लगता है इंदौर के कांग्रेस विधायक संजय शुक्ला ने अपने अध्यक्ष की बात का पालन करने का मन बना लिया है।
संजय शुक्ला कांग्रेस के अनुशासित, आज्ञाकारी सिपाही हैं। पर अचानक वे बदले हुए दिखे। 17 सितम्बर को संजय शुक्ला अपनी विधानसभा के लोगों को लेकर अयोध्या रवाना हुई। इस धर्म यात्रा को शुक्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समर्पित कर दिया। शुक्ला ने इसे मोदी के जन्मदिन की भेंट बताया।
पहली नजर में ये एक सामान्य सम्मान दिखता है। देश के प्रधानमंत्री को अयोध्या यात्रा उनके जन्मदिन पर समर्पित करना। पर आजकल की राजनीति में बिना कारण कोई सम्मान भी नहीं दिखता। संजय शुक्ला भी इसे सामान्य शिष्टाचार कहेंगे, लेकिन भाजपा-कांग्रेस के बीच क्या कोई ‘शिष्ट’ रिश्ता रह गया है।
दूसरी बात संजय शुक्ला एक घुटे हुए और राजनीतिक गुणा भाग की समझ वाले नेता हैं। वे हर वक्त खिलखिलाते जरूर रहते हैं, पर अंदर से एक बेहदगंभीर और सधे हुए राजनेता हैं। वे ये यात्रा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को भी समर्पित कर सकते थे, पर शुक्ला ने ऐसा नहीं किया।
अब आते कुछ ऐसे मुद्दों पर जिनके चलते शुक्ला पाला बदल सकते हैं। महापौर चुनाव में शुक्ला हारे हैं। इस हार को वो पचा लेते पर कांग्रेस के शहर संगठनऔर बड़े नेताओं के सहयोग न मिलने को वे पचा नहीं पा रहे हैं। जिन बड़े नेताओं ने उनके सामर्थ्य को निचोड़कर टिकट दिया वे भी चुनाव में कोई मदद करने सामने नहीं आये। निश्चित ही इससे वे खफा रहे होंगे।
एक बड़ी चिंता ये भी है कि शुक्ला अपनी खुद की विधायकी वाली विधानसभा में भी बीस हजार से अधिक मतों से महापौर चुनाव में पिछड़े हैं। इस इलाके मेंनिश्चित ही शुक्ला ने बहुत काम किये, फिर भी उन्हें वोट नहीं मिले। ऐसे में वो सोच सकते हैं कि भाजपा में जाने से उनकी विधायकी को नुकसान नहीं होगा।फिलहाल वे इसे भी नापतौल रहे होंगे।
तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात है -शुक्ला खानदान की विरासत। संजय शुक्ला के पिता विष्णु प्रसाद शुक्ला ‘बड़े भैया’ के निधन के बाद ब्राह्मण समाज ने समाज के उत्तराधिकारी के तौर पर संजय को चुना। चूंकि बड़े भैया खांटी जनसंघी रहे हैं, इसका लाभ भी संजय को मिलता रहा है।
संजय को पिता की साख, जनसंघ से रिश्ते और कांग्रेस के प्रतिबद्ध वोटर्स का साथ मिलाकर विजय की त्रिवेणी मिली है। यदि शुक्ला कांग्रेस में बने रहते हैं, तो पिता की साख और ब्राह्मण समाज के वोट उनके ही खानदान के दूसरे भाजपा नेताओं के पाले में जाने का भी खतरा है।
उनके पिता के निधन के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित भाजपा के सभी बड़े नेता शुक्ला के निवास पर पहुंचे। पर कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ खुद करीब एक महीने बाद इंदौर के अपने रूटीन दौरे के वक्त ही पहुंचे। दिग्विजय सिंह तो अभी तक नहीं आये। निश्चित ही कांग्रेस के इस सिपाही के दिमाग में ये बातें भी होगी।
सबसे बड़ी और मौका लपकने वाली बात ये है कि भाजपा को भी एक नंबर विधानसभा में एक मजबूत प्रत्याशी की जरुरत है। शुक्ला को टिकट का वादा भाजपा कर सकती है।
अगले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उज्जैन आ ही रहे हैं। देखते हैं शिवभक्त, ब्राह्मण पुत्र शुक्ला क्या फैसला लेते हैं।
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