इंदौर। पश्चिम बंगाल देश की मोदी विरोधी गठबंधन का बड़ा केंद्र बन गया है। ममता ने सीबीआई के खिलाफ अपने तेवरों से साफ़ कर दिया कि वे मोदी के खिलाफ किसी भी स्तर पर जा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तत्काल बाद ममता ने अपने तेवर बीजेपी के तरफ मोड़ दिए। बोलीं-गौरक्षकों और बंदूकों के दम पर देश नहीं चल सकता। वे ये बताने, समझाने में कामयाब होती दिख रही हैं कि मोदी के खिलाफ सबसे मजबूत नेता वहीं हैं। भाजपा नेताओं को हेलीकाप्टर उतारने, सभा करने की अनुमति न देकर उन्होंने मामले को पूरी तरह राजनीति से रंग दिया। भाजपा आलोचकों को अभी ये एक जीत की तरह लग सकता है। पर पारे जैसी स्थिर चित्त वाली ममता भाजपा के गठबंधन में भी रह चुकी है, ये नहीं भूलना चाहिए। कब उनके तेवर भाजपा के बजाय दूसरी पार्टियों की ओर घूम जायें इसका भरोसा नहीं। लोकतंत्र में जिस बर्दाश्त की जरूरत होनी चाहिए, वह ममता में बिल्कुल नहीं है। वे केन्द्र सररकार के टकराव में हैं, प्रदेश के भीतर वाममोर्चे के खिलाफ हैं, भाजपा के खिलाफ तो हैं ही। कांग्रेस के साथ अगर कोई सीधा टकराव आज ममता का नहीं दिख रहा है, तो वह सामने खड़े लोकसभा चुनाव में गठबंधन के लिए उपयोग की नीयत से ज्यादा कुछ नहीं। कांग्रेस के साथ समविचारक होने जैसा कोई कारण नहीं है।
दरअसल भारत अब गठबंधन सरकारें ही देखने जा रहा है। पहले एनडीए की सरकार रही, उसके बाद दो सरकारें यूपीए की रहीं, और अभी एनडीए की सरकार कार्यकाल पूरा करने जा रही है। ऐसे में जाहिर है कि क्षेत्रीय पार्टियों का वजन गठबंधन में खासा रहेगा, जो कि आज भी है। लेकिन यह याद रखने की जरूरत है कि एनडीए-यूपीए के तीन कार्यकाल के बाद देश की जनता ने बीजेपी को इतने वोट दिए थे कि मौजूदा एनडीए सरकार किसी भी और पार्टी के बिना अकेले भाजपा की भी बन सकती थी। मोदी की कमियां अपनी जगह है, लेकिन जब ममता या मायावती की बात आती है, तो लोगों के बीच यह सुगबुगाहट भी होती है कि क्या ऐसे हमलावर तेवरों और अस्थिर चित्त वाले नेताओं को देश का प्रधानमंत्री बनाना ठीक होगा? ऐसे में मोदी को बिना मेहनत घर बैठे ही स्थिरता की एक साख मिल जाती है, और वह विपक्षी गठबंधन की संभावना को कम भी करती है।
लोकतंत्र में किसी नेता या पार्टी का पूरा मिजाज ही लोकतांत्रिक होना जरूरी है, वरना उनकी संभावनाएं सीमित रहती हैं। विपक्ष के गठबंधन की साख भी उसके अलग-अलग नेताओं के मिजाज और उनके कामकाज के हिसाब से ही बनेगी, इसलिए ऐसे तमाम गठबंधनों को अपने भागीदारों के भ्रष्टाचार, उनकी सनक, उनकी नफरत, इन सब पर काबू पाना चाहिए। और यह बात महज विपक्षी गठबंधन पर लागू नहीं होती है, आज देश में सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन में शिवसेना एक ऐसी पार्टी है जो पिछले बरसों में लगातार केन्द्र सरकार, एनडीए, मोदी, और भाजपा के फैसलों को लेकर सार्वजनिक रूप से हमले करते आई है। गठबंधन के धर्म में महज सीटों का बंटवारा काफी नहीं है। भाजपा का जो लोग विरोध करना चाहते हैं, उनको भी यह बात समझना चाहिए कि ममता जैसे तेवरों का बंगाल के बाहर अधिक सम्मान भी नहीं होता क्योंकि लोग देश को चलाने वाले नेताओं के मिजाज में एक स्थायित्व भी देखना चाहते हैं। ममता विरोधियों को रोककर उन्हें बड़े मौके भी दे रही है। आने वाले चुनावों में ममता और उनके साथियों को इसका दाम भी चुकाना पड़ सकता है।