युवा पीढ़ी का परंपरा और आस्था को अपनाना गर्व का विषय-महाकुम्भ की सफलता पर संसद में बोले पीएम

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-पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे संस्कारों के आगे बढ़ने का क्रम जारी है

-महाकुम्भ की सफलता देश की सांस्कृतिक विरासत और सामर्थ्य को दर्शाता है

-एक देश के रूप में हम बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने का भरोसा बढ़ा।

-“नदी उत्सव” का होगा विस्तार

PM Modi in Parliament: दिल्ली। संसद के बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में महाकुंभ के आयोजन को लेकर सभी का धन्यवाद् किया। उन्होंने कहा ‘मैं देश के करोड़ों लोगों को नमन करता हूं जिन्होंने प्रयागराज में महाकुंभ की सफलता में योगदान दिया। उन्होंने महाकुम्भ को भारत की आध्यात्मिक और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बताया। महाकुम्भ का भव्य आयोजन और उसका सफलतापूर्वक सम्पन्न होना देश की सांस्कृतिक विरासत और सामर्थ्य को दर्शाता है। उन्होंने कहा- महाकुंभ की सफलता में अनेक लोगों का योगदान है। मैं सरकार, समाज के सभी कर्मयोगियों का अभिनंदन करता हूं। मैं देश भर के श्रद्धालुओं, उत्तर प्रदेश व विशेष रूप से प्रयागराज की जनता का धन्यवाद करता हूं।

पीएम ने कहा, “मानव जीवन के इतिहास में ऐसे कई मोड़ आते हैं, जो पीढ़ियों को दिशा देते हैं।” महाकुंभ के दौरान लोग सुविधा-असुविधा की चिंता छोड़कर इसमें शामिल हुए। पीढ़ी दर पीढ़ी हमारे संस्कारों के आगे बढ़ने का क्रम जारी है। एक देश के रूप में हम बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने का भरोसा बढ़ा। अपने विरासत से जुड़ने की परंपरा आज के भारत की सबसे बड़ी पूंजी है। महाकुंभ पर सवाल उठाने वालों को जवाब मिला है। देश के कोने-कोने में आध्यात्मिक चेतना उभरी है।

प्रधानमंत्री ने भारत की नई पीढ़ी की प्रशंसा करते हुए कहा कि देश की युवा पीढ़ी महाकुंभ से जुड़ रही है। वह परंपराओं और आस्था को गर्व के साथ अपना रही है’। “हम सभी ने महाकुंभ के आयोजन के लिए किए गए भव्य प्रयास को देखा है। मैंने लाल किले की प्राचीर से ‘सबका प्रयास’ के महत्व पर जोर दिया था। पीएम ने कहा कि पिछले वर्ष अयोध्या के राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह ने हम सभी को यह अहसास कराया कि देश अगले 1000 वर्षों के लिए कैसे तैयार हो रहा है। इस वर्ष महाकुंभ ने हमारी सोच को और मजबूत किया है, तथा देश की सामूहिक चेतना हमें देश के सामर्थ्य के बारे में बताती है।
उन्होंने कहा कि महाकुंभ ने बहुत प्रेरणा दी है। हमारे पास कई बड़ी-बड़ी नदियां हैं, जिनमें से कुछ खतरे में हैं। कुंभ से प्रेरित होकर हमें ‘नदी उत्सव’ का विस्तार करना चाहिए। इससे नई पीढ़ी को जल संरक्षण का महत्व पता चलेगा।

 

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