चीन का शुक्राणु तक कोरोना के दावे को छोड़ भी दें, तो आने वाले एक साल तक दुनिया बहुत विषम हालात में होगी, आर्थिक सामजिक और बीमारियों का खतरा है, ऐसे में बच्चे पर पड़ने वाले खतरे पर भी सोचें
सुनील कुमार (संपादक,डेली छत्तीसगढ़ )
हमने कई दिन पहले इसी जगह बहुत गंभीरता से यह बात लिखी थी कि लोगों को इस बरस बच्चे पैदा करने के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए। इसकी कोई वैज्ञानिक वजह हमारे पास नहीं थी, हमने सिर्फ कोरोना के मेडिकल खतरे को देखते हुए, और आने वाले वक्त देश और दुनिया की आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह सलाह यहां भी लिखी थी, और कुछ अधिक तल्ख शब्दों में सोशल मीडिया पर भी। अब इसका एक वैज्ञानिक आधार भी सामने आया है।
जिस चीन से कोरोना शुरू हुआ है, उसी चीन ने वहां के पुरूष मरीजों के शुक्राणु की जांच करके यह पाया है कि उसमें भी कोरोना पहुंच रहा है। अब कितने नमूनों में से कितनों तक पहुंच रहा है हम इस पर जाना नहीं चाहते क्योंकि आंकड़े लोगों को झूठा दिलासा भी दिला देते हैं। लेकिन यह बात समझने की है कि जिस शुक्राणु से अगली पीढ़ी का जन्म शुरू होता है, उस शुक्राणु में अगर कोरोना वायरस पहुंच रहा है, तो यह एक वैज्ञानिक खतरे की बात भी है।
आज इस मुद्दे पर चर्चा की जरूरत इसलिए भी है कि डब्ल्यूएचओ, विश्व स्वास्थ्य संगठन, समेत कई संगठनों का यह अंदाज है कि लॉकडाऊन के समय घरों में लंबे समय तक कैद जोड़ों के बच्चे इसी बरस में एक सैलाब की तरह आने वाले हैं। रोजगार जाने वाले हैं, जिंदगी जीने के साधन जाने वाले हैं, और बच्चे आने वाले हैं! फिर ये बच्चे एक ऐसी दुनिया में आएंगे जिसका इलाज का पूरा ढांचा कोरोना केन्द्रित हो चुका रहेगा, मतलब यह कि बाकी तमाम किस्म की बीमारियों के इलाज और चिकित्सा की जरूरत उपेक्षित रहेगी।
लोगों के पास खाने को नहीं होगा, नौकरी और रोजगार नहीं रहेगा, लेकिन उनके हाथों में नए जन्मे बच्चे रहेंगे। अब यह पूरा सिलसिला इतना खतरनाक है कि यह सिलसिला भारी गैरजिम्मेदारी का भी रहेगा। अगर जिम्मेदारी के साथ एक नए बच्चे को बड़ा किया जाता है, तो उसका खर्च किसी भी मायने में एक बड़े से कम नहीं होता है। ऐसे में पहले से अधिक आबादी वाले हिन्दुस्तान जैसे गरीब देश में और बच्चे बढ़ाना एक भयानक खतरे की बात होगी, दुनिया के दूसरे देशों में भी।
अगली पीढ़ी को दुनिया में लाना एक बड़ी तैयारी से गंभीर योजना के साथ किया हुआ काम रहना चाहिए। आने वाला वक्त बच्चों की बढ़ी हुई जरूरतों और बढ़ी हुई उम्मीदों का भी रहेगा। ऐसे में न तो दुनिया के अस्पताल बच्चों के सैलाब के लिए तैयार रहेंगे, और न ही अधिकतर परिवारों की आर्थिक स्थिति इस लायक रहेगी। हिन्दुस्तान जैसे देश में तो करोड़ों लोग आज जिस बेदखली के शिकार हुए हैं, उससे वे अगले सालभर के भीतर उबरकर पता नहीं किस शहर में रहेंगे, किस गांव में रहेंगे, या किस हाल में रहेंगे।
ऐसे में अगर मजदूर काम पर लौटते हैं, तो दूसरे शहरों में जहां आज उन्हें सिर छुपाने की जगह नहीं मिली, दो वक्त का खाना नहीं मिला, वहां पर उनके नए बच्चे के जन्म की सुविधा मिल जाएगी, उसे पोषण आहार और इलाज मिल जाएगा, यह सपना फिजूल का है। लोगों को महज बच्चों की चाह, या सेक्स के चलते अनचाहे बच्चों से इस दौर में बचना चाहिए।
कोरोना के पूरे खतरे तो अभी तक सामने भी नहीं आए हैं, आने वाले महीनों में हो सकता है कि कोरोना के बाद के कई और खतरे चिकित्सा विज्ञान स्थापित करे, और वे अगर सबसे गरीब आबादी के कम संख्या के लोगों को प्रभावित करने वाले होंगे तो उसके लिए टीका या दवाईयां भी विकसित करने का काम इस रफ्तार से नहीं होगा जिस रफ्तार से आज कोरोना के लिए टीका तलाशा जा रहा है।
इसलिए इस धरती को भी थोड़ी सी राहत देनी चाहिए, बढ़ती हुई आबादी से, उस आबादी की बढ़ती हुई खपत से, और धरती की तबाही से। हम यह बात भारत जैसे गरीब देशों के संदर्भ में नहीं लिख रहे क्योंकि हिन्दुस्तानी आबादी अधिक होने के बावजूद प्रति व्यक्ति खपत की बात करें तो हिन्दुस्तानी लोग बहुत पीछे हैं, उनकी जरूरतें बहुत सीमित है।
दुनिया के विकसित देशों के मुकाबले हिन्दुस्तान के औसत बच्चे दस फीसदी भी खपत नहीं करते, पांच फीसदी भी खपत नहीं करते। लेकिन कम खपत के बावजूद हिन्दुस्तानी बच्चों के साथ एक दिक्कत यह है कि यह देश दुनिया में सबसे कम स्वास्थ्य सुविधाओं वाला देश है, अपने से बहुत से गरीब देशों के मुकाबले भी हिन्दुस्तान में स्वास्थ्य सुविधाएं कम हैं, और जो हैं उनमें भी अमीर और गरीब आबादी के बीच इनका बंटवारा बहुत अधिक अनुपातहीन है।
ऐसे में कोरोना के तुरंत बाद पैदा होने वाली पीढ़ी अगर कोई गंभीर तकलीफ लेकर आएगी तो उसका क्या होगा? दुनिया में जगह-जगह ऐसा हुआ है कि किसी दवा के साईड इफेक्ट से, या किसी वायरस की वजह से बच्चे बहुत ही गंभीर शारीरिक दिक्कतों को लेकर पैदा हुए। लोगों को याद होगा कि अभी कुछ बरस पहले ही जीका वायरस के चलते हुए ब्राजील जैसे कई देशों में जो बच्चे पैदा हुए वे बहुत भयानक तकलीफों को झेल रहे थे। उन तस्वीरों को देखना भी डरावना हो सकता है लेकिन फिर भी हम खतरे से लोगों को आगाह करना चाहते हैं।
यह पूरा सिलसिला मां-बाप के लिए अपने पर काबू करने का है, परिवार के बुजुर्गों को भी अपनी उन हसरतों पर काबू पाना चाहिए कि वे जाने के पहले अगली पीढ़ी का चेहरा देख लें। ऐसे तमाम लोग यह सोचें कि अगली पीढ़ी का चेहरा अगर इस किस्म का होगा, जैसा कि जीका वायरस की वजह से हुआ है, तो क्या वैसा चेहरा भी उन्हें खुश करेगा?
आज का वक्त बहुत खराब होने के बावजूद दवा दुकानों के खुले रहने का है। अगले एक बरस के लिए लोगों को अपने मनपसंद गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करके अगले बच्चों से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसे खतरे और इतनी अनिश्चितता के बीच बच्चों के बारे में सोचना सिवाय आपराधिक गैरजिम्मेदारी के और कुछ नहीं होगा।
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