सुनील कुमार (संपादक दैनिक छत्तीसगढ़)
जैसे-जैसे चुनाव का दिन करीब आ रहा है, हिन्दुस्तान की हवा में नारे बड़ी तेजी से शक्ल बदल रहे हैं। पिछले कुछ महीनों से चले आ रहा चौकीदार चोर है का नारा अब एकाएक एक जवाबी नारे में तब्दील हो गया है कि मैं भी चौकीदार। इसके अलावा सर्जिकल स्ट्राईक, अंतरिक्ष हमले की क्षमता, पाकिस्तान का खतरा जैसे नारे एकाएक पिछले दो-तीन महीनों में हवा में उछाले गए, और ठंड की हवा में ठहर जाने वाले प्रदूषण की तरह ठहर गए। अब जैसे-जैसे हर दिन चुनावी सभाओं की गिनती बढ़ रही है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके साथी लगातार एक ऐसी चुनावी मिसाइल पर सवार होते जा रहे हैं जो कभी पाकिस्तान में घुसकर आतंकी कैम्पों को खत्म करने का दावा करती है, तो कभी अंतरिक्ष में जाकर अपने खुद के उपग्रह को बर्बाद करने की मिसाल पेश करती है। लेकिन यह पूरा सिलसिला पिछले कुछ महीनों का है, और इन नए नारों तक चुनाव अभियान को सीमित रखते हुए मोदी और उनके साथी यह नहीं बता रहे हैं कि अनायास देश की गरीब जनता पर नोटबंदी का जो सर्जिकल स्ट्राईक किया गया था, उसके फायदे कहां गए? देश की संसद में आधी रात मुल्क की आजादी के जलसे के टक्कर का जलसा जीएसटी लागू करने का किया गया था, लेकिन उस जीएसटी से देश के कितने लोग आबाद हुए, और कितने लोग बर्बाद हुए, इसकी चर्चा भी आज हवा में नहीं है। काला धन लाकर देश के हर नागरिक के खाते में 15 लाख डालने का जो वायदा किया गया था, वह रकम कहां गई, इसकी भी कोई बात नहीं हो रही है। अच्छे दिनों की बात तो खैर कब की खारिज कर दी गई है कि वह उछाला गया एक जुमला थी, कोई गंभीर बात नहीं थी, इसलिए जनता अब अच्छे दिनों से परे कुछ अच्छा ढूंढने की कोशिश कर रही है तो उसे गिरता हुआ रूपया और उठता हुआ पेट्रोलियम-दाम दिखता है, ये ही दोनों चीजें हैं जिन्हें लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार मनमोहन सरकार पर हमले करते थे। फिर एक और मुद्दा हवा में कहीं नहीं दिख रहा कि दो करोड़ रोजगार या नौकरियां मोदी सरकार देगी। हालत यह है कि नौकरियां घट गई हैं, रोजगार खत्म हो गए हैं, और खुद मोदी सरकार के सर्वे के आंकड़ों को बस्ता बांधकर सर्जिकल स्ट्राईक में भेज दिया गया है ताकि देश की जनता उसे देख न सके। इन पांच बरसों में मोदी सरकार ने नोटबंदी के बाद बैंकों में लौटे नोटों के आंकड़े जारी नहीं किए, बेरोजगारी के आंकड़े जारी नहीं किए, देशके बाहर से कालाधन लाने, और जनता के खातों में डालने के आंकड़े भी कहीं नहीं दिखे, और भी न जाने कौन-कौन से आंकड़े जारी नहीं किए गए।
अब जब भाजपा का प्रचार का हमला इतना तेज हो गया है, और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक बड़ा हिस्सा आमसभा के लाउडस्पीकर की तरह का हो गया है, तो फिर कांग्रेस के लोगों को, गैरभाजपाई पार्टियों को, और देश के लोकतंत्र के लिए फिक्र रखने वाले लोगों को यह याद रखना होगा कि पांच बरस के मुद्दे न सिर्फ रफाल हैं, न सिर्फ चौकीदार हैं। इन पांच बरस के हिन्दुस्तानी जिंदगी के असल मुद्दों को अगर उनके अनुपात में नहीं उठाया गया, तो फिर यह आने वाला चुनाव देश की रक्षा और राष्ट्रवाद, पड़ोस के दुश्मन देश और देश के गद्दार जैसे नारों के सैलाब में बहकर किसी एक खास किनारे लगा दिया जाएगा। जनता के बीच के लोगों को भी चाहिए कि पूरे पांच बरस के मुद्दों को एक नजर में दिखाने लायक बातें उठाई जाएं। चुनाव के आखिरी हफ्तों में इसके पहले के ढाई सौ हफ्तों की बातें दब या कुचल नहीं जानी चाहिए। आज का चुनावी हल्ला मतदाताओं को प्रभावित करने वाले सीमित और भावनात्मक मुद्दों तक अगर सीमित रह गया, तो फिर देश की पांच बरस की सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होने को मजबूर नहीं की जा सकेगी। इसलिए देश के लोकतांत्रिक तबकों को आखिरी दौड़ के इस अंधड़ की धूल को जनता की आंखों में भरने नहीं देना चाहिए, और पूरे पांच बरसों पर एक ऐसी संतुलित बहस करनी चाहिए जो कि जनता को प्रभावित करने वाली बातों को तर्कसंगत तरीके से उठाए। यह जिम्मेदारी विपक्ष की भी है, और उन तमाम लोगों की भी है जो लोकतंत्र पर भरोसा रखते हैं।