आज खिलाडिय़ों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष, भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज अपराधों की एक लंबी फेहरिस्त भी दिल्ली में सामने रखी है, लेकिन कई बार का सांसद रहा हुआ यह आदमी भाजपा को किसी जवाब-तलब के लायक भी नहीं लग रहा है
सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )
भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष भाजपा के एक बाहुबली सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ भारतीय पहलवानों द्वारा महीनों से लगातार केन्द्र सरकार से, सार्वजनिक रूप से की जा रही यौन शोषण की शिकायतों पर सरकार ने अब तक किया तो कुछ नहीं, अब जब इंसाफ की मांग करते हुए महिला खिलाड़ी सुप्रीम कोर्ट पहुंची हैं, तो भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पी.टी.ऊषा ने इन पहलवानों की ही आलोचना कर डाली, और कहा कि वे सडक़ों पर जाकर देश का नाम बदनाम कर रही हैं।
उनके पास बृजभूषण सिंह के बारे में कहने को कुछ नहीं था, यह भी नहीं था कि महीनों से इतनी लड़कियों की शिकायत पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई, और यौन शोषण की जांच के बजाय उन्हें यह आंदोलन देश की बदनामी लग रहा है।
एक ओलंपिक महिला खिलाड़ी रहते हुए पी.टी.ऊषा का आज दूसरी खिलाडिय़ों के लिए इस तरह का बयान बहुत से लोगों को हक्का-बक्का कर सकता है, लेकिन हमें इससे कोई सदमा नहीं पहुंचता। जो लोग किसी भी किस्म की सत्ता या ताकत की जगह पर पहुंच जाते हैं, वे अपने जेंडर से ऊपर उठ जाते हैं, वे अपनी जाति या धर्म से भी ऊपर उठ जाते हैं।
उनके सामने सिर्फ ताकत, पैसा, महत्व और मुनाफा, यही बातें रह जाती हैं। यह बात महिलाओं के साथ बदसलूकी करने वाली महिला विधायकों या मंत्रियों को देखकर भी समझी जा सकती है, महिला अधिकारियों को देखकर भी समझी जा सकती है। महिलाओं को पीटने, और मां-बहन की गाली देने में महिला पुलिस अधिकारी भी पीछे नहीं रहती हैं।
इसलिए कुल मिलाकर मामला ताकत का है, और ताकत लोगों को उनके जेंडर से ऊपर उठा देता है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर से लेकर इंदिरा गांधी तक के बारे में कहा जाता था कि अपने मंत्रिमंडल में वे अकेली मर्द रहती थीं।
कल से सोशल मीडिया पी.टी. ऊषा के खिलाफ उबला पड़ा है, और अगर उनका छोटा सा एक वीडियो देखा जाए जिसमें वे महिला पहलवानों को देश की बदनामी करने वाली बतला रही हैं, तो मन खट्टा हो जाता है, देश के लिए मैडल जीतकर आने वाली पी.टी. ऊषा के लिए मन में सम्मान पूरी तरह खत्म हो जाता है। उन्हें न सिर्फ खिलाडिय़ों की कोई परवाह नहीं है, बल्कि यौन शोषण की शिकार लड़कियों के लिए भी उनके मन में कोई हमदर्दी नहीं है।
तृणमूल कांग्रेस की एक मुखर सांसद महुआ मोइत्रा ने पी.टी. ऊषा के बयान पर कहा है कि अगर इससे देश की बदनामी हो रही है तो सत्तारूढ़ भाजपा सांसद के यौन शोषण की हरकतों से, और उसके खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा मामला दर्ज न करने से क्या गुलाब की खुशबू आ रही है? बहुत से राजनीतिक दलों ने भी पी.टी. ऊषा को धिक्कारा है। पी.टी. ऊषा का यह कहना है कि पहलवानों को शिकायत लेकर उनके पास आना था।
वे शायद यह भूल रही हैं कि पिछले कई महीनों से यह सिलसिला चल रहा है, यौन शोषण की शिकार महिला पहलवान और उनके साथी केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से भी मिले, खेल संघों में भी गए, और उन्हें जुबानी मरहम से अधिक कुछ नहीं मिला।
पी.टी. ऊषा भी इस ताकतवर कुर्सी पर बैठने के बाद से ऐसे मामलों को देखने की सीधी-सीधी जिम्मेदार हैं, लेकिन वे बैठकर इंतजार कर रही हैं कि कोई आकर उनसे शिकायत करे, तब वे उस पर गौर करें, यह नजरिया भी धिक्कार के लायक है।
आज खिलाडिय़ों ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष, भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज अपराधों की एक लंबी फेहरिस्त भी दिल्ली में सामने रखी है, लेकिन कई बार का सांसद रहा हुआ यह आदमी भाजपा को किसी जवाब-तलब के लायक भी नहीं लग रहा है। यह रवैया एक राजनीतिक दल के रूप में भाजपा के लिए शर्मनाक है, पी.टी.ऊषा के लिए शर्मनाक है, और महिलाओं के हक की वकालत करने वाले नेताओं के लिए भी शर्मनाक है।
पहलवानों का यह आंदोलन दिल्ली के करीब के, लगे हुए हरियाणा से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि अधिकतर महिला पहलवान वहीं की हैं। अब धीरे-धीरे करके दूसरे राजनीतिक दलों के लोग भी इससे जुड़ रहे हैं, और पुरूष पहलवान तो पहले दिन से ही महिला पहलवानों के साथ हैं।
मामला सुप्रीम कोर्ट में भी आज सुनवाई के लिए लगा है, और ऐसा लगता है कि दिल्ली पुलिस जिस तरह से भाजपा सांसद के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने से कतरा रही है, उसे अदालत की फटकार भी लगेगी। लेकिन महज फटकार से क्या होता है, अगर पुलिस इस सांसद को बचाने पर ही आमादा होगी तो चाहे कितने ही सुबूत हों, पुलिस बार-बार अदालती दखल बिना दो कदम भी आगे नहीं बढ़ेगी। भारत में सत्ता और पैसों की ताकत का यही हाल है। हर पार्टी अपने-अपने पसंदीदा मुजरिमों को बचाने में लगी रहती है।
फिलहाल आज का दिन पी.टी. ऊषा को धिक्कारने का दिन है जिसके मन में न दूसरी महिलाओं के लिए कोई सम्मान रह गया है, न दूसरी खिलाडिय़ों के लिए। सरकारी सहूलियतें और ओहदे की ताकत लोगों से इंसानियत छीन लेती हैं।
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