टेबलटॉप रनवे पर पायलट !

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राजस्थान के सत्ता संग्राम में सचिन पायलट ने जिस रफ़्तार से उड़ान भरी थी, उससे दुगुनी तेज़ी से उनका विमान क्रैश हो गया कारण लम्बे सफर के चलते समर्थकों से मिला ईंधन ख़तम होने लगा और पायलट ने घुटने टेक दिए

 

अनुराग हर्ष (राजस्थान की राजनीति के जानकार )

jमुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट के बीच आपसी विवाद का निपटारा होता नजर आ रहा है। सोमवार को सचिन पायलट ने राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाकात की। तीनों नेताओं के बीच हुई बातचीत ने स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस सरकार पर अब खतरा नहीं है। सूत्रों की मानें तो सचिन पायलट जिन शर्तों को लेकर राहुल गांधी के पास गए थे, उन्हें फिलहाल नहीं माना गया।

कांग्रेस ने पायलट को सरकार के पक्ष में खड़े होने के निर्देश दिए हैं। जिसे सचिन ने स्वीकार कर लिया है। सचिन के घुटने टेकने के पीछे सबसे बड़ा कारण उनके साथ खड़े विधायकों का डगमगाना रहा। पायलट के समर्थन में खड़े विधायक भंवरलाल शर्मा सबसे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिलने जयपुर पहुंच गए। कुछ अन्य विधायक भी पायलट कैंप में असहज महसूस करने लगे थे। करीब एक महीने तक सचिन पायलट के साथ रहने के बाद भी ‘कुछ नहीं होने’ से बागी विधायकों में बगावत फूट पड़ी।

उड़ान तेज़ थी, पर सफर लम्बा होने से समर्थक बेचैन हुए

सचिन पायलट ने अपना विमान तो काफी तेजी से उड़ाया था लेकिन सफर ज्यादा लंबा होने के कारण ‘सवारियों’ ने असंतुलन पैदा कर दिया। ऐसे में पायलट को अपना विमान कांग्रेस के ‘टेबल टॉप’ हवाई अड्डे पर उतारना पड़ा। यहां से सचिन अपने विमान को ‘बाएं-दाएं’ ले जाते हैं तो उनके राजनीतिक भविष्य को खतरा हो सकता है।

अगर वो पार्टी के खिलाफ जाते हैं तो उनके लिए आगे सारे विकल्प खत्म हो जाएंगे। अगर पार्टी में अब रहते हैं तो पहले जैसा मान-सम्मान मिलना मुश्किल है। सचिन को समझौता इसलिए करना पड़ा क्योंकि उन्हें आभास हो गया कि कांग्रेस में रहने अथवा नहीं रहने से सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

अशोक गहलोत एक सौ से अधिक विधायक अपने साथ लेकर पिछले बीस दिन से घूम रहे हैं। ऐसे में सचिन के लिए दो विकल्प थे। पहला यह कि वो पार्टी छोड दें। अगर वो पार्टी स्वयं छोड़ते तो विधायक पद से जाते। उनके साथ शेष विधायक भी अपनी विधायकी खो देते। जिसके लिए कोई तैयार नहीं था। यह निर्णय स्वयं की राजनीतिक आत्महत्या जैसा होता। दूसरा विकल्प यह था कि वो पार्टी में बने रहें और अपनी बात मनवाने का प्रयास करें। उन्होंने दूसरा विकल्प ही चुन लिया है।

सिंधिया जैसा कमाल नहीं कर पाए

जिस तरह मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी से अलग होकर कमलनाथ को अपदस्थ कर दिया था, वैसा उनके मित्र सचिन नहीं कर पाए। पार्टी में वापस लौटकर वो प्रदेशाध्यक्ष भी बने रहेंगे या नहीं? इस पर स्थिति स्पष्ट नहीं है। उप मुख्यमंत्री पद भी शायद अब ना मिले।

दरअसल, पिछले बीस दिन में अशोक गहलोत ने अपनी टीम को इतना मजबूत कर लिया कि अब उन्हें सचिन व उनके विधायकों की जरूरत नहीं है। गहलोत की जिम्मेदारी हो गई है कि वो उन विधायकों को भविष्य में तवज्जो दें, जिन्होंने विपरीत समय में पार्टी के साथ खड़े रहकर अपनी जिम्मेदारी निभाई। सचिन पायलट को फिलहाल ‘वेट एंड वॉच’ की स्थिति में रहना होगा। हालांकि उन्हें केंद्रीय नेतृत्व में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी सकती है। अशोक गहलोत को हटाने की उनकी मांग को सिरे से खारिज कर दिया गया है।

प्रदेशाध्यक्ष हटेंगे या रहेंगे?
सवाल यह उठ रहा है कि सचिन को फिर से प्रदेशाध्यक्ष बनाया जाएगा या नहीं? अगर बनाया जाता है कि जाट वोट बैंक पर बुरा असर पड़ सकता है। जिन्हें कुछ ही दिन में वापस हटाना जाट समाज को नीचा दिखाने जैसा होगा। ऐसे में पार्टी खतरा मोल नहीं लेगी। अगर सचिन को वापस प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनाया जाता है तो भी गुर्जर समाज को नाराज करने का खतरा होगा। कुल मिलाकर पार्टी को दोनों स्थिति में नुकसान होना तय है।

कमलनाथ-दिग्विजय फ्री हैंड के बाद भी नाकाम रहे
गेहलोत मोदी-शाह से निपटने वाले नेता बनकर उभरे

इस पूरे घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत देशभर में मजबूत होकर उभर गए हैं। दरअसल, इस पूरे घटनाक्रम के पीछे भाजपा, नरेंद्र मोदी व अमित शाह की मुख्य भूमिका बताई गई। इसके बाद भी सरकार बचा ले जाना अशोक गहलोत की बड़ी जीत है। इस पूरे मामले में गांधी परिवार ने कोई ‘पंचायती’ नहीं की । वो अशोक गहलोत के साथ ही खड़े रहे।

जैसा अशोक गहलोत ने चाहा, ठीक वैसा ही हुआ। न सिर्फ पार्टी में बल्कि आम जनता के बीच भी यह संदेश गया है कि कांग्रेस में अब अशोक गहलोत ही मोदी और उनकी टीम से लडऩे में सक्षम है। आने वाले दिनों में सचिन पायलट को गहलोत खेमा ही वापस नहीं आने देंगे।

राजस्थान भाजपा के मंसूबे तोड़े

यह विवाद तो कांग्रेस का था लेकिन हार भाजपा की हुई। भाजपा ने पूरी कोशिश की थी कि सचिन को अपने खेमे में डालकर सरकार गिरा दें लेकिन उनकी चली नहीं। सचिन के पास इतनी संख्या नहीं थी कि सरकार गिर जाए। ऐसे में भाजपा खेल नहीं पाई। वैसे भी वसुंधरा राजे खेमे ने भी पार्टी के प्रयासों को ज्यादा हवा नहीं दी। दो दिन पहले भाजपा ने अपने विधायकों की बाड़ेबंदी तो की लेकिन पंद्रह बीस विधायक ही पहुंचे। ऐसे में भाजपा की रार भी इस लड़ाई में सामने आ गई।

क्या रहा गणित
सचिन पायलट के पास १९ विधायक थे, जबकि अशोक गहलोत नियमित रूप से सौ से अधिक विधायकों के साथ रहे। शुरू से ही कांग्रेस के पास १२५ के आसपास विधायक रहे, जो अभी तक बने हुए हैं।

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