मोदी है तो मुमकिन है -नेहरू से बात नहीं बनी तो राजीव गांधी की शहादत को बेइज्जत कर दिया !

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-सुनील कुमार (डेली छत्तीसगढ़ के संपादक )

इस बार का हिन्दुस्तानी आम चुनाव अभियान शायद आजाद भारत का सबसे ही गंदा चुनाव है जिसमें लोगों ने घटिया बयान देने का रिकॉर्ड कायम करने का बीड़ा उठाया हुआ दिखता है। देश में यह पहला मौका है जब सरहद पर लगातार मार खाने वाले हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान पर की गई एक सर्जिकल स्ट्राईक को देश का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया है, और उनके एक भूतपूर्व फौजी मंत्री ने पूरी की पूरी भारतीय सेना को भाजपा और मोदी के खिलाफ खड़े बताया है। चुनाव आयोग एक कठपुतली की तरह फौज के चुनावी-इस्तेमाल को देख रहा है, और इस गंदगी पर क्लीनचिट जारी करने के लिए रात-रात जागकर ओवरटाईम भी कर रहा है। जो लोग पाकिस्तान को एक दुश्मन मुल्क मानकर तबाह करने के लिए हवा में बांहें फडफ़ड़ाते हैं, उनकी बांहों के बीच के सिर को यह याद रहना चाहिए कि 1971 के युद्ध में पाकिस्तान से दो-दो मोर्चों पर एक साथ जंग करके, पाकिस्तान के दो टुकड़े करके, बांग्लादेश बनाकर भी इंदिरा गांधी ने उसे चुनावी मुद्दा नहीं बनाया था। और आज जब पाकिस्तान पर हुई एक सर्जिकल स्ट्राईक को अनोखी, अभूतपूर्व, ऐतिहासिक, अकेली, और तबाही लाने वाली बताकर उसका चुनावी फतवा जारी किया जा रहा है, तो उसके साथ-साथ इस सर्जिकल स्ट्राईक से हुई तबाही के दावे पर सवाल पूछने वालों को गद्दार भी करार दिया जा रहा है।
लेकिन मानो यह सब काफी नहीं था, इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कल यूपी की एक आमसभा में राजीव गांधी का नाम लिए बिना कहा- आपके पिताजी को आपके राजदरबारियों ने गाजे-बाजे के साथ मिस्टर क्लीन बना दिया था, लेकिन देखते ही देखते भ्रष्टाचारी नंबर वन के रूप में उनका जीवनकाल समाप्त हो गया।
यह बयान हिन्दुस्तानी प्रधानमंत्री ने एक भूतपूर्व प्रधानमंत्री पर उस हालत में लगाया है जब जाहिर तौर पर, और मोदी की याददाश्त के दायरे में भी, राजीव गांधी की हत्या श्रीलंका के लिट्टे-आतंकियों ने बम विस्फोट से की थी, और वे कुछ बरसों के भीतर अपनी मां के बाद देश के ऐसे दूसरे प्रधानमंत्री हो गए थे जिन्होंने अपने सरकारी फैसलों की वजह से आतंकियों के हाथ शहादत पाई थी। इस मुल्क में एक शहीद प्रधानमंत्री को भ्रष्टाचारी नंबर वन की तरह मरने वाला कहकर मोदी ने सार्वजनिक जीवन में बयान का जो स्तर बनाया है, वह शायद ही कोई दूसरा प्रधानमंत्री भारत के बाकी भविष्य में छू सके। चुनाव की गंदगी में लोगों के हाथ और मुंह, कपड़े और कमल, सब पर कीचड़ उछला है, लेकिन यह बात भूलना नहीं चाहिए कि लोग आमतौर पर अपनी ही कुर्सी पर पहले बैठे हुए लोगों के नाम कोई गंदी बात कहने से परहेज करते हैं, और यह लोकतंत्र का ही नहीं, इंसानियत का भी एक छोटा सा, और बहुत आम तकाजा है। लेकिन इस चुनाव में नेहरू को कोसना अब बेअसर होने के बाद अब राजीव को कोसा गया, और उनकी शहादत के पल को एक भ्रष्टाचारी का अंत बताया गया। भाषण और बयान का यह स्तर अकल्पनीय है, और इसके बारे में कहने के लिए शब्द काफी नहीं हो सकते, और हिन्दुस्तानी लोकतंत्र को इस सदमे से उबरने में खासा वक्त लगेगा, और इतिहास इसे एक सबसे बुरी बात की तरह अच्छी तरह दर्ज कर ही चुका है। जहां तक इतिहास के तथ्यों की बात है, राजीव गांधी को जिस बोफोर्स-आरोप को लेकर नरेन्द्र मोदी यह बात बोल रहे थे, उस बोफोर्स की जांच और सुनवाई में दस से अधिक बरस तक राजीव-विरोधी सरकारें रहीं, लेकिन किसी जांच, किसी अदालती सुनवाई में राजीव गांधी पर कोई आंच नहीं आई है, और ऐसे में देश के लिए शहीद होने वाले एक प्रधानमंत्री को लेकर ऐसी गंदी बात कहकर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय आम चुनावों को एक बहुत ही घटिया मौका साबित किया है। उनके पास राहुल गांधी के लगाए हुए आरोपों के जवाब में सोनिया और राहुल के खिलाफ, मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ, प्रदेशों की कांग्रेस सरकारों के खिलाफ बहुत से मुद्दे थे, लेकिन उन्होंने एक नाजायज मुद्दे को अमानवीय तरीके से उठाकर एक निहायत बेइंसाफी पेश की है, और इसने भारत के संसदीय लोकतंत्र की इज्जत घटा दी है। देश के लिए मोर्चों पर शहीद होने वाले लोगों की शहादत को गिना-गिनाकर जिस तरह नरेन्द्र मोदी गली-गली में वोट मांग रहे हैं, उसे देखते हुए देश के लिए शहादत देने वाले प्रधानमंत्री के बारे में इतनी ओछी बात कहना शहादत पर अपनी पूरी सोच को उजागर करना है। राजीव गांधी के वक्त और राजीव गांधी के बाद भाजपा के इतिहास के सबसे सम्माननीय नेता अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री भी रहे, और लगातार संसद में भी रहे। लेकिन उन्होंने कभी भी राजीव की स्मृति का कोई अपमान नहीं किया, और एक सम्मानजनक श्रद्धांजलि ही दी। आज अचानक चुनावी चटखारे लेते हुए मोदी ने जिस जुबान में राजीव गांधी की शहादत की बेइज्जती की है, वह इस देश में न सिर्फ प्रधानमंत्री के ओहदे के लिए, उस ओहदे की तरफ से अभूतपूर्व है, बल्कि शर्मनाक भी है। जिन लोगों के मन में इतिहास को लेकर जरा भी सम्मान है उन्हें 4 फरवरी 2004 की यह खबर देखनी चाहिए जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को 64 करोड़ रूपए के बोफोर्स भ्रष्टाचार में क्लीनचिट दी थी। और इसके बाद मोदी सरकार के मातहत सीबीआई ने 13 साल देरी से एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को खुलवाने की कोशिश की, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने ही खारिज कर दिया। यह अपील खुद मोदी सरकार आने के बरसों बाद दाखिल की गई थी। आज जब मोदी का बयान टीवी पर लगातार गूंज रहा है, तब हिन्दुस्तान में शायद वे अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने राजीव गांधी की शहादत को एक भ्रष्टाचारी का अंत करार दिया है।

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