वायरल सच …नालायक…नमक हराम…गद्दार।

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शिवराज +सिंधिया यानी बंटाढार

मध्यप्रदेश में भाजपा अब तक की सबसे बड़ी हार की आशंका में है। 2018 के चुनावों से ज्यादा नाराजगी जनता में इस वक्त दिख रही है। शिवराज की सत्ता से नाराज लोग अब सिंधिया को उनके साथ देखकर और नाराज हो गए, खुद भाजपा में ये चर्चा है कि हार का चेहरा बनते जा रहे सिंधिया भाजपा के लिए बंटाढार साबित होंगे 

दर्शक
मध्यप्रदेश की राजनीति इस समय तीन ही शब्दों पर सिमट गई है। नालायक…नमकहराम…गद्दार। जनता की जुबान पर भी ये शब्द चढ़ गए हैं। प्रदेश में पिछले 20 साल में ये पहला मौका है जब भाजपा को ऐसे तीखे शब्द सुनने पढ़ रहे हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा चुनाव जरूर हारी, पर जनता ने कभी खुलकर ऐसे नारे भाजपा के खिलाफ नहीं लगाए।

27 सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं। भाजपा प्रदेश की सत्ता में आने के बाद अब तक की सबसे बड़ी हार की आशंका देख रही है। हमेशा आक्रामक रहकर कांग्रेस को घेरने वाली भाजपा इस बार चूक गई है। गद्दार, नमक हराम, नालायक के जवाब उसे नहीं सूझ रहे। दरअसल, कांग्रेस के विधायक तोड़कर भाजपा  में शामिल करना भाजपा को भारी पड़ रहा है।

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आखिर गद्दार वाले नारे का भाजपा जवाब दे भी तो क्या ? आखिर उसके साथ गद्दार हैं भी। नमक हराम वाला एक पोस्टर इस वक्त बड़ा वायरल है। पर उसका भी जवाब भाजपा के पास नहीं है। क्योंकि सिंधिया और करीबियों के बारे में जनता की राय भी कुछ ऐसी ही है। मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग ये मानता है कि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते, मंत्री बने और फिर सरकार गिराने वालों ने कांग्रेस से ज्यादा जनता के वोट से गद्दारी की है, नमक हरामी की है।

सर्वे में भी 20 से ज्यादा सीटों पर कांग्रेस आगे

दोनों दल भले ही सभी सीटें जीतने का दावा कर रहे हों, पर तमाम सर्वे में भी भाजपा 27 में से बीस सीटों पर हार की तरफ बताई जा रही है। खुद भाजपा के तमाम अंदरूनी सर्वे और रिपोर्ट में यही परिणाम आ रहे हैं। गोविन्द सिंह राजपूत के सामने पारुल साहू के आने के बाद मजबूत मानी जा रही सीटों पर भी भाजपा को धक्का लग रहा है। ग्वालियर चम्बल में 16 में से 12 सीटो पर अभी  कांग्रेस मजबूत दिख रही है।

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शिवराज से जो नाराजी थी उसे सिंधिया के साथ
ने कई गुना बढ़ा दिया, दोनों चेहरे से जनता खफा

प्रदेश की जनता खासकर ग्वालियर चम्बल इलाके में शिवराज सिंह की सत्ता के खिलाफ ही लोगों ने 2018 में वोट दिए थे। सिंधिया के चेहरे पर नहीं। यही कारण है कि सिंधिया खुद चार महीने बाद लोकसभा चुनाव हार गए। शिवराज से नाराज जनता ने जब उन्हें फिर सत्ता में देखा तो नाराजगी कई गुना और बढ़ गई। अब सिंधिया के साथ आने से विनाश काले विपरीत बुद्धि वाला मामला बन गया है।

 

 

 

 

 

 

 

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