दिग्विजयसिंह फिर से मुख्यमंत्री बनने की तैयारी में हैं !
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दिग्विजयसिंह फिर से मुख्यमंत्री बनने की तैयारी में हैं !

दिग्विजय को गुस्सा क्यों आता है ? उनके हर कदम के पीछे है एक लक्ष्य

इंदौर। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अकारण कोई काम नहीं करते। वे पहला कदम तभी उठाते हैं, जब आगे के एक हजार कदम तय कर चुके हों। यानी मंज़िल उनके सामने स्पष्ट रहती है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ हैं, पर दिखाई दे रहे हैं-दिग्विजय सिंह। शैक्षणिक संस्थाओं से लेकर सचिवालय तक हर तरफ एक ही नाम-दिग्विजय, दिग्विजय और दिग्विजय। इस राजा को करीब से जानने वालों का कहना है कि वे नाम के अनुरूप एक यात्रा पर निकल चुके हैं। अब वे मध्यप्रदेश की सत्ता पर विजय हासिल करके ही मानेंगे। 1993 में भी अर्जुन सिंह ,मोतीलाल वोरा ,माधवराव सिंधिया, श्यामाचरण, विद्याचरण शुक्ल,जैसे घाघ नेताओं को किनारे कर दिग्विजय ने सत्ता हासिल की थी। इस सरकार में तो कोई ऐसा नेता ही नहीं जो इस विजय यज्ञ के घोड़े की लगाम खींच सके।

ये केवल कल्पना नहीं है। जिस तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया मंत्रिमंडल में किनारे किये गए, कमलनाथ समर्थकों को भी संतोष करना पड़ा। दिग्विजय खेमे का पलड़ा भारी रहा। अभी मंत्रियों के विधानसभा और बाहर जो जवाब हैं उनको लेकर मामला गर्म है। मंदसौर गोलीकांड को लेकर गृह मंत्री बाला बच्चन ने जो बयान सदन में दिया उस पर जो गुस्सा दिग्विजय ने दिखाया है। वो भी उनकी सभी मंत्रियों के बीच अपनी ताकत दिखाने से ज्यादा कुछ नहीं। वे जानते हैं, एक दो मंत्रियों को फटकार के बाद सारे मंत्री उनकी तरफ आएंगे। इस फटकार के जरिये वे ये साबित करने में काफी हद तक सफल रहे कि सत्ता वे ही चला रहे हैं। उनकी जो सुनेगा वही टिकेगा। इस कदम से उन्होंने अलग-अलग खेमे से बने मंत्रियों पर भी मनोवैज्ञानिक फतह हासिल कर ली। बाला बच्चन ने मंदसौर गोली कांड में और सुखदेव पांसे ने सिंहस्थ में हुए घोटाले में पूर्व की शिवराज सरकार को क्लीन चिट दी है। इसमें इन मंत्रियों का दोष नहीं। दोनों मंत्रियों ने सदन में इस मामले की रिपोर्ट पढ़ी। ये रिपोर्ट जैसी थी, वैसी पढ़ना मंत्रियों की वैधानिक जिम्मेदारी है। सदन के बाहर वे कुछ भी बोलने को स्वतंत्र हैं, पर सदन में व वही पढ़ेंगे जो रिपोर्ट में है। ये रिपोर्ट शिवराज सरकार के समय बनी समिति ने बनाई है। दिग्विजय ये अच्छे से जानते, समझते हैं कि ये रिपोर्ट पढ़ने के अलावा मंत्रियों के सामने कोई रास्ता नहीं है। वे खुद विधायिका के जानकार है। फिर इतना गुस्सा, फटकार क्यों? जाहिर है सिर्फ और सिर्फ खुद को बड़ा साबित करना।इसी तरह उमंग सिंघार को लेकर भी उनका जो रवैया रहा। वो एक तरफा रहा। उनको सुनना भी पड़ा-जयवर्धन को भी समझायें। बंद लिफाफे में उन्होंने उमंग को कुछ भेजा है, वो क्या है ये भी कुछ दिनों में सामने आएगा। पर बाला बच्चन, उमंग सिंघार सिर्फ एक दिखावा है, निशाना कहीं और ही है। जिस ढंग से दिग्विजय आगे बढ़ रहे हैं। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि इस पूर्व राजा के मन से फिर से सत्ता हासिल करने की तमन्ना है। भले ही वो सीधे न हो तो कोई दूसरे तरीके से। लोग कहने भी लगे हैं, केंद्र की मनमोहन सरकार में जैसे सोनिया गांधी सुपर पीएम रही, उसी तरह कमलनाथ सरकार में दिग्विजय सिंह सुपर सीएम हैं। बहुत संभव है, लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश को एक नया मुख्यमंत्री मिले। खालिस कांग्रेसी तरीके का।

बहुत जल्द आप इसके आगे की कहानी विस्तार से पढ़ेंगे-दिग्विजय कैसे पहुंचेगें विधानसभा और वैधानिक तरीके से मंत्रियों को संभालेंगे।

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