आपदा में अवसर …. सत्ता तानाशाह हुई, कारोबारी अरबपति और जनता को मिली भुखमरी

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देश के दो सबसे बड़े उद्योगपतियों की दौलत एक-दूसरे से मुकाबला करते हुए, जंगली हिरण की तरह छलांग लगाते हुए आगे बढ़ रही है, दूसरी बात यह भी रही कि दुनिया के जिस देश में मुसीबत जितनी बड़ी रही, वहां पर लोकतंत्र के भीतर भी राजा और प्रजा कहे जाने वाले दो तबकों के बीच फासला उतना ही बढ़ गया।

सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )

एक तरफ दुनिया आर्थिक संकट, मंदी, बेरोजगारी, महंगाई, और भुखमरी से गुजर रही है, दूसरी तरफ ऑक्सफेम नाम की संस्था की नई रिपोर्ट बतलाती है कि कोरोना और लॉकडाउन के इस दौर में दुनिया में हर तीस घंटे में एक अरबपति बना है, और दस लाख लोग गरीब हो गए हैं।

दुनिया के कामकाज पर खतरा टलने का नाम नहीं ले रहा है, कोरोना ने लोगों का काम छीना, परिवार पर आर्थिक बोझ डाला, और देश-प्रदेश की सरकारों की कमर टूट गई। इलाज और टीकाकरण पर अंधाधुंध खर्च हुआ, और टैक्स की कमाई मारी गई।

इससे दुनिया उबर नहीं पाई थी कि रूस यूक्रेन पर टूट पड़ा, और दुनिया की आर्थिक बदहाली की आग में मानो रूसी पेट्रोल पड़ गया। इसी के समानांतर चीन में कोरोना-लॉकडाउन इतना भयानक रहा कि करोड़ों की आबादी वाला शंघाई शहर पूरा का पूरा महीनों से सील किया हुआ है, और इस शहर में दुनिया का सबसे बड़ा बंदरगाह है, और जहाज लंगर डाले खड़े हैं।

चीन से पुर्जे और कच्चा माल न निकल पाने की वजह से दुनिया भर में सामान बनना धीमा हो गया है, और यह नौबत कब सुधरेगी इसका कोई ठिकाना नहीं है।

ऐसे में स्विटजरलैंड में अभी वल्र्ड इकॉनामिक फोरम की बैठक के दौरान बाहर ऑक्सफेम की रिपोर्ट पेश हुई जिसने बताया कि पिछले दो सालों में दुनिया में 573 नए अरबपति बने हैं। मतलब यह कि महामारी हो, या भुखमरी, कुछ लोगों की कमर टूटती है, और कुछ लोगों का बाहुबल बढ़ता है।

हर मुसीबत दुनिया के कुछ लोगों के लिए मौका लेकर आती है, और उनको भारी मुनाफा देकर जाती है। हिन्दुस्तान में इन बरसों में करोड़ों लोगों का रोजगार गया, लेकिन सरकार के पसंदीदा समझे जाने वाले देश के दो सबसे बड़े उद्योगपतियों की दौलत एक-दूसरे से मुकाबला करते हुए, जंगली हिरण की तरह छलांग लगाते हुए आगे बढ़ रही है, और वह फीसदी में नहीं, गुना में बढ़ रही है।

किसी भी तरह की मुसीबत दुनिया में गैरबराबरी को बढ़ाने का काम करती है। गरीबी और अमीरी के बीच का फासला बढऩा एक बात रही, दूसरी बात यह भी रही कि दुनिया के जिस देश में मुसीबत जितनी बड़ी रही, वहां पर लोकतंत्र के भीतर भी राजा और प्रजा कहे जाने वाले दो तबकों के बीच फासला उतना ही बढ़ गया।

दुनिया के कई देशों में महामारी और लॉकडाउन के इस दौर को देखने पर पता चलता है कि वहां के शासकों के मिजाज और कामकाज में तानाशाही बढ़ गई, और लोगों के बुनियादी अधिकार घट गए। जब महामारी जैसी मुसीबत रहती है, तो फिर लोग अपने से परे किसी और के किसी हक की परवाह भी नहीं करते, फिर चाहे वह बुनियादी लोकतांत्रिक हक हों, या कि समाज के व्यापक मानवाधिकार हों।

लोगों को, लोकतांत्रिक देशों के बहुसंख्यक लोगों को मुसीबत के वक्त देश में ऐसे शासक पसंद आते हैं जो कि कड़़े फैसले बिना किसी दुविधा के ले लेते हैं, फिर चाहे वे फैसले गलत, बुरे, और नुकसानदेह ही क्यों न हों। जब देश मुसीबत से गुजरते रहता है, तो लोग मुसीबत अपने दरवाजे तक पहुंचने से रोकने के लिए शासक को और अधिक ताकत देकर उस पर जिम्मा डाल देना चाहते हैं।
इसलिए दुनिया के कई देशों में पिछले दो बरसों में शासक अधिक तानाशाह हुए हैं। इस तरह देखें तो परेशानी और मुसीबत के इस दौर में एक तरफ गरीबी और अमीरी का फासला बढ़ा है, दूसरी तरफ लोकतांत्रिक देशों के शासन में तानाशाह तौर-तरीके भी बढ़े हैं।

लोगों को याद होगा कि कारोबार को लेकर हमेशा से एक बात चलन में रही है कि पैसा पैसे को खींचता है। जब किसी नए कारोबार, या मुसीबत से पैदा हुए नए कारोबार की गुंजाइश निकलती है, तो रातोंरात पूंजीनिवेश करने की गुंजाइश रखने वाले कारोबारी को ही शुरूआती फायदा मिलता है।

मुकाबले में दूसरे कारोबारी जब तक पूंजी का इंतजाम करते हैं, तब तक धनसंपन्न कारोबारी उस संभावना पर एकाधिकार सा जमा चुके रहते हैं। यह भी एक बड़ी वजह है कि पिछले दो सालों में 573 नए अरबपति पैदा हुए हैं।
ये वे लोग रहे होंगे जो पहले से कारोबार में थे, और जिनके पास रातोंरात अपने कारोबार को बढ़ाने की ताकत रही होगी, और वे दो बरस के इस दौर में करोड़पति से अरबपति हो गए।

लेकिन पूंजी की इस अंतरिक्ष यात्रा के बीच यह एक विसंगति दुनिया के सामने है कि आज बहुत से देशों में लोगों के पास खाने को नहीं रह गया है, और अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी संस्थाओं के पास उन्हें देने के लिए अनाज नहीं रह गया है। आज दुनिया के कुछ देशों में अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अपनी मदद को हर किसी को बांटने के बजाय सीमित आबादी को जिंदा रखने के लिए पर्याप्त अनाज दे रही हैं, ताकि तमाम लोगों के मरने के बजाय कम से कम कुछ लोग तो बच जाएं, और बाकी लोगों के बारे में उन्होंने मान लिया है कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ देने के अलावा और कोई चारा नहीं है।

लोगों को याद होगा कि पुलित्जर पुरस्कार प्राप्त एक अमरीकी फोटोग्राफर ने एक अफ्रीकी बच्चे की फोटो ली थी, जो जमीन पर से कुछ उठाकर खाते हुए जिंदगी के आखिरी दिन या घंटे गुजार रहा था, और उसके ठीक पीछे एक गिद्ध आकर इंतजार करते बैठ गया था।

बाद में इस तस्वीर को लेकर बड़ा बवाल हुआ था, और फोटोग्राफर की किसी और वजह से की गई आत्महत्या इसी तस्वीर से उपजे मानसिक अवसाद से जोड़ी गई थी।

आज भी दुनिया में लोगों के बीच अनाज बांटते हुए काम करते अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लोगों के बीच ऐसी ही दिमागी हालत पैदा होते जा रही है क्योंकि उन्हें आबादी के एक हिस्से को अनाज देना बंद कर देना पड़ रहा है, ताकि जिंदा रहने की थोड़ी संभावना वाले दूसरे हिस्से को जिंदा रखा जा सके।

आज जब दुनिया को यह भी समझ नहीं आ रहा है कि उसका सबसे बुरा वक्त अभी आ चुका है, या अगले कई महीनों तक इससे बुरा वक्त आते रहेगा, तब अगर दुनिया की कुछ कंपनियों के शेयरों के दाम लगातार बढ़ते चल रहे हैं, कुछ कारोबारी अरबपति हो रहे हैं, कुछ अरबपति से खरबपति हो रहे हैं, तो इसका श्रेय दुनिया पर आई हुई मुसीबत को जाता है जो कि ऐसी अभूतपूर्व और विकराल संभावनाएं खड़ी कर रही हैं।

जलती लाशों के बदन पर रोटी सेंकने के इस कारोबार में बहुत नया कुछ भी नहीं है, सिवाय इस बार के उसके बढ़ते विकराल आकार के…

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