ट्रम्प है तो मुमकिन है ..दुनिया के तमाम देशों में ऐसे तानाशाह शासन कर रहे हैं, जो अपने आगे जनता को कुछ समझते ही नहीं

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इतने बरसों के बयान पढ़ें, तो वे अहंकार में डूबे हुए लगते हैं जो कि पागलपन की हद तक आत्मकेन्द्रित है (आप अपनी समझ के हिसाब से यहां ट्रम्प की जगह कोई और नाम लिखकर भी देख सकते हैं, निराश नहीं होंगे )

पंकज मुकाती (राजनीतिक विश्लेषक )

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपने आवास पहुँच गए हैं। कोरोना पॉजिटिव होने के बाद वे चार दिनों से अस्पताल में थे। उनके स्टाफ के करीब 15 लोग भी संक्रमित हैं। पर ट्रम्प हैं कि अपनी आदत से बाज़ नहीं आते। व्हाइट हाउस आते ही ट्रम्प ने मास्क उतार फेंका और बोले-डरने की कोई जरुरत नहीं।

डॉक्टर्स का कहना है कि खतरा अभी टला नहीं। ट्रम्प को अपनी सेहत का ध्यान रखना चाहिए और मास्क भी नहीं हटाना चाहिए। विशेषज्ञ डॉक्टरों ने तो इसे राष्ट्रपति का पागलपन भी कहा। दुनिया के कुछ देशों के प्रमुख सारे कायदों से खुद को ऊपर मानते हैं। हिंदुस्तान भी इससे अलग नहीं है।

ऐसे राष्ट्र प्रमुखों का मानना रहता है कि हम हैं तो मुमकिन है। वे बाकायदा इस बात की मुहीम भी चलाते हैं। हिंदुस्तान में भी ये नारा खूब गूंजा है – मोदी है तो मुमकिन है। पर आज देश की गिरती अर्थव्यवस्था, कोरोना के दौर के गलतियां और नोटबंदी सबने मिलकर इसके मायने बदल दिए। अब भी आप कह सकते हैं-ये हैं इसलिए देश में ये सब मुमकिन है।

डोनाल्ड ट्रम्प जैसे लोग सोशल मीडिया से जनता को खूब भ्रमित करते हैं। ट्रम्प तो फिर भी घूमते रहते हैं। हिंदुस्तान के प्रमुख तो बंद कमरे मैं बैठकर ही जनता के बीच ये फ़ैलाने में सफल रहे कि -वे 56 इंची छाती के साथ मजबूत है, उनका कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। अरे, जनता तो सड़क पर है उसको ऐसे भ्र्म में मत डालिये।

पर ट्रम्प इतने चालाक नहीं। वे बिना मास्क घुमते भी हैं। सोशल मीडिया पर अपनी कमजोर सोच को रखने से भी नहीं चूकते। ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया था, जिसमें लिखा कि कोरोना वायरस फ्लू जैसा ही है। इस पर ट्विटर और फेसबुक ने एक्शन लेते हुए इसे गलत जानकारियों वाली पोस्ट में डाल दिया है।फेसबुक ने इसे हटा दिया है लेकिन इससे पहले इस पोस्ट को 26,000 से ज्यादा बार शेयर किया जा चुका है। इसी तरह ट्विटर ने भी एक पोस्ट पर वॉर्निंग लेबल लगा दिया। आखिर ये राष्ट्र प्रमुख ऐसी हरकतें करते क्यों हैं?

ट्रम्प भी चुनाव को देखते हुए कोरोना के बावजूद मैदान में आ गए। आखिर चुनाव का मामला ही ऐसा ही। इसके लिए आदमी कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है। डोनल्ड ट्रंप ने इससे पहले सोमवार सुबह भी एक अनोखा काम किया। वे अस्पताल से एक कार में निकले, और बाहर खड़े अपने समर्थकों की भीड़ की तरफ हाथ हिलाया। वापिस अस्पताल चले गए। हाथ हिलाने की इस हरकत में वैसे तो एक मिनट लगा।

विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि ऐसा करते हुए ट्रंप ने अपने सुरक्षा कर्मियों, और कार के ड्राइवर सबकी जिंदगी संक्रमण के खतरे में डाल दी। लोगों को याद होगा कि ट्रंप के करीबी दायरे में अभी कई लोग कोरोना पॉजिटिव निकले हैं, और उनकी भतीजी ने अभी यह कहा है कि अमरीका कोरोना के मोर्चे पर इस बुरे हाल में इसलिए है कि उसके चाचा बीमारी को माफ न करने लायक कमजोरी मानते हैं।

ट्रंप की यह हरकत लोगों को चाहे कितनी गैरजरूरी लग रही हो, यह उनकी एक चुनावी जरूरत हो सकती है क्योंकि अमरीका चुनाव प्रचार से गुजर रहा है, और ट्रम्प उम्मीदवार हैं। दूसरी बात यह भी कि चुनाव के महीनों में अमरीका में रोज होने वाले सर्वे में ट्रंप अपने विरोधी डेमोक्रेट उम्मीदवार से खासे पिछड़ते भी दिख रहे हैं। ट्रंप के इतने बरसों के बयान पढ़ें, तो वे अहंकार में डूबे हुए लगते हैं जो कि पागलपन की हद तक आत्मकेन्द्रित है (आप अपनी समझ के हिसाब से यहां ट्रम्प की जगह कोई और नाम लिखकर भी देख सकते हैं, निराश नहीं होंगे )

अमेरिकी राष्ट्रपति 15 अक्टूबर होने वाली डिबेट में भी शामिल होंगे। इस डिबेट में उनके सामने भाग लेने वाले बिडेन क्या करेंगे ? ट्रम्प एक निहायत असामान्य दिमागी हालत के इंसान दिखते हैं, लेकिन अमरीका ने उनके ऐसे ही दिखते हुए उन्हें पहली बार राष्ट्रपति चुना था, और आज ऐसी कोई वजह नहीं दिखती कि उनकी कम से कम ऐसी किसी बात की वजह से अमरीकी वोटर उन्हें खारिज करें।

आज वे अपने आपको बीमारी के शिकंजे से बाहर दिखाने के लिए, अपने प्रशंसकों और भक्तों को खुश करने के लिए, उनका आत्मविश्वास बनाए रखने के लिए ही बिना मास्क के घूम रहे हैं। अमरीकी राष्ट्रपति तो अपनी अहमियत की वजह से इस बात को लेकर खबरों में अधिक आ गए हैं, वरना हम हिन्दुस्तान को देखें जहां महामारी का कानून बहुत कड़ी सजा का इंतजाम लिए बैठा है, यहां भी नेता बेख़ौफ़ रैली और भोज कर रहे हैं।

आज दुनिया के जिन देशों में शासन-प्रमुख तानाशाही मिजाज के हैं, जहां वे अकेले फैसले लेते हैं, वहां पर कोरोना का नुकसान सबसे अधिक हुआ है। जहां मुखिया ने विशेषज्ञों की बात नहीं सुनी, जानकारों की चेतावनी नहीं सुनी, लोगों की सलाह नहीं सुनी, वहां पर नुकसान सबसे अधिक हुआ है। ऐसे आधा दर्जन देशों में अमरीका का नाम भी गिना जाता है, और हिन्दुस्तान का भी।

यह बात जाहिर है कि किसी भी जगह के डॉक्टर अस्पताल में भर्ती मरीज को इस तरह का कार का फेरा लगाने की छूट तो दे नहीं सकते, और यह बात राष्ट्रपति की मनमानी के सिवाय और कुछ नहीं हो सकती। लेकिन अपने समर्थकों के बीच हाथ हिलाते हुए तस्वीरें खिंचवाने, और उसे फैलाकर चुनावी या राजनीतिक फायदा पाने के मिजाज से संक्रामक रोग का खतरा कितना बढ़ रहा हैं। आसपास के लोग कितने खतरे में पड़ रहे हैं, इसे लेकर अमरीकी मीडिया कुछ मिनटों के भीतर ही ट्रंप के पीछे लग गया है। सबसे ऊंचे ओहदे पर बैठे इंसान की लापरवाही की मिसाल नीचे चारों तरफ लोगों को लापरवाह करेगी, यह तय है। और यह बात महज अमरीका पर लागू नहीं होती, दुनिया के तमाम देश, और उनके प्रदेशों पर भी बराबरी से लागू होती है।

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