सुनील कुमार (संपादक, डेली छत्तीसगढ़ )
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अधिक सुर्खियां पाने वाला, सोशल मीडिया पर कवरेज पाना वाला कोई दूसरा नेता आज दुनिया में नहीं है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कुछ लोगों को खबरों में अधिक दिख सकते हैं, लेकिन वे भी मोदी के सामने फीके हैं। लेकिन इसके पीछे की बड़ी ठोस वजहों को देखने-समझने की जरूरत है क्योंकि लोकतंत्र में जनधारणा-निर्माण और भ्रम की बड़ी गुंजाइश रहती है, आंखों से जो दिखता है, वह हकीकत से थोड़ा सा परे भी हो सकता है, या हो सकता है कि वह हकीकत से एकदम ही परे हो। जो भी हो, मोदी के दिलचस्प तौर-तरीकों पर हम पहले भी कई बार लिख चुके हैं कि वे लोकतंत्र में मान्य तरीके हैं, और उन पर शोध करने की जरूरत है।
अब जैसे तमिलनाडु में नरेन्द्र मोदी चीनी राष्ट्रपति के साथ एक बड़ी महत्वपूर्ण बैठक में दो-तीन दिन लगातार खबरों में रहे, और एक सुबह तो जब चीनी राष्ट्रपति कमरे में ही रहे होंगे, मोदी घूमने की पोशाक में समंदर की रेत पर नंगे पैर निकल पड़े, और समुद्रतट पर से कचरा बीनने लगे। उनके इस सफाई-कार्यक्रम की बड़ी हाईक्वालिटी की तस्वीरें सामने आईं, और वीडियो भी सामने आए जो कि उन्होंने खुद भी सोशल मीडिया पर डाले। कुछ दूसरे लोगों ने ऐसी तस्वीरें भी पोस्ट की हैं कि फोटोग्राफरों और वीडियोग्राफरों की इतनी बड़ी टीमें समंदर की रेत पर मोदी की फोटोग्राफी करने के लिए मौजूद थीं, और अगर वे तस्वीरें सही हैं, तो उनमें विदेशी लोग भी कैमरों के पीछे दिख रहे हैं।
लेकिन मुद्दा देशी-विदेशी फोटोग्राफरों का नहीं है, मुद्दा है मोदी के पसंदीदा सफाई कार्यक्रम का। प्रधानमंत्री के चीनी राष्ट्रपति संग वहां पहुंचने पर जाहिर है कि काफी सफाई पहले ही हो चुकी होगी। इसके बाद भी अगर प्रधानमंत्री को गंदगी दिख रही है, या वे कूड़ा उठाते हुए दिख रहे हैं, तो इससे उनकी सफाई पसंदगी एक बार फिर प्रचार पा रही है। लेकिन ऐसे मौके पर थोड़ी सी हैरानी यह भी होती है कि क्या जमीन पर गंदगी ही इस देश में आज ऐसी गंदगी है जिसे साफ करना इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री की प्राथमिकता होनी चाहिए? आज जब देश भर में लोगों की सोच में हिंसा और नफरत की गंदगी भर गई है, जब राज्य सरकारों में भ्रष्टाचार की गंदगी बढ़ गई है, और अधिकतर राज्यों में प्रधानमंत्री की पार्टी या उनके गठबंधन की ही सरकारें हैं, जब लोगों के बयानों में हिंसा और नफरत की गंदगी भर गई है, तब भी अगर इस देश का प्रधानमंत्री केवल सड़क और समुद्रतट की गंदगी उठाने में लगा है, तो बात कुछ खटकती है, कुछ अटपटी लगती है।
यह कुछ उसी तरह का है कि कोई बीमार-मरणासन्न, या बुरी तरह से जख्मी अस्पताल के बिस्तर पर हो, और कोई उसके बढ़े हुए नाखूनों को काटने लगे, बालों को कतरने लगे। हर वक्त की एक प्राथमिकता होती है, और होनी चाहिए। जब मन, वचन और कर्म की गंदगी चारों तरफ हो, उसकी वजह से अगर हिंसक भीड़ धर्म और जाति के आधार पर छांट-छांटकर हत्या कर रही हो, तो भी क्या उस वक्त महज सड़क की गंदगी को साफ करना काफी हो सकता है? क्या वह प्राथमिकता हो सकती है, या होनी चाहिए? बहुत से काम तब खटकने लगते हैं जब वे दूसरे अधिक जरूरी कामों को अनदेखा करके किए जाते हैं। जब किसी इमारत में आग लगी हुई हो, तो उसी वक्त उसकी दीवारों पर लिखे गए भद्दे नारों को मिटाना कोई प्राथमिकता नहीं हो सकती, फिर चाहे वह बाकी के आम समय पर करने लायक एक जरूरी काम जरूर हो। आज हिन्दुस्तान में जितने किस्म की दिक्कतें दिख रही हैं, बाजार और कारोबार का यह मानना है कि बहुत बुरी तरह की मंदी छाई हुई है, सरकारी निगरानी में चलने वाले बैंक उसके बड़े पदाधिकारियों की धोखाधड़ी और जालसाजी से दीवालिया हो रहे हैं, और अभी वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के एक दौरे में उनके सामने एक ऐसा मरीज नकाब पहने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता रहा जिसकी जमा रकम ऐसे ही एक डूबे हुए बैंक में फंसी है, और जिसके पास किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद अब दवाईयों के लिए भी पैसे नहीं बचे हैं। इस तरह की दिक्कतें देश भर में लोगों को आ रही हैं, खुद वित्तमंत्री ने जीएसटी से लोगों को होने वाली दिक्कतों को माना है। जब देश ऐसी भयानक दिक्कतों को झेल रहा है, तो प्रधानमंत्री पहले सरकार के काम की गड़बडिय़ों की सफाई में जुटें तो वह बेहतर होगा। सफाई का महत्व गांधी से लेकर आज तक बहुत से लोगों ने सामने रखा है, और मोदी अपनी लोकप्रियता के चलते अपने इस अभियान को काफी मशहूर कर भी चुके हैं, लेकिन अब वक्त है कि प्रधानमंत्री कैमरों से परे बंद कमरों में उन फैसलों पर मेहनत करें जिससे भूख और बेरोजगारी की गंदगी दूर हो, जिससे कारोबार से मंदी की गंदगी दूर हो। गंदगी हर वक्त महज सड़क पर ही नहीं रहती है, वह आज सड़क से परे फैसलों में मंदी की गंदगी है जिससे पहले निपटना चाहिए।
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