‘राजीव गांधी के ‘राम’ और कांग्रेस
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‘राजीव गांधी के ‘राम’ और कांग्रेस

अपूर्व भारद्वाज

भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन है करोड़ो हिंदूओं के आस्था के स्त्रोत प्रभु श्री राम के मंदिर का भूमि पूजन होने जा रहा है। वो सपना भी पूरा होने जा रहा है जो राजीव गाँधी ने 1985 में देखा था। राजीव सदा मानते थे कि राम केवल हिंदुओं के प्रेरणास्रोत नही है बल्कि वो पूरे भारत के मर्यादा पुरुषोत्तम है। राजीव प्रभु राम को सामजिक समरसता और साम्प्रदायिक सदभाव की मिसाल मानते थे।

पंडित जवाहर लाल नेहरु और इंदिरा गांधी के बाद राजीव गाँधी परिवार और कांग्रेस के एकमात्र हिन्दू नेता थे, जिनके मन में ख्वाहिश थी कि अयोध्या में राम का मंदिर बनें। कांग्रेस में विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिक रामायण के प्रसारण की अनुमति दी थी। अयोध्या में राम मंदिर के ताले उन्होंने खुलवाए और हिन्दू समाज को पूजा अर्चना की अनुमति दी।

राजीव गांधी ही नहीं पूर्व पीएम नरसिंह्मा राव भी राम मंदिर बनाना चाहते थे। इसके लिए इन्होंने प्रयास भी किया। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी हमेशा कहते थे कि उन्होंने राजीव से बड़ा कोई हिन्दू नही देखा है।

जब शाहबानो का केस आया तो राजीव ने कह दिया कि धर्म और रीति रिवाज सबका निजी मामला है तीन तलाक का मामला मुस्लिम समुदाय को ही सुलझाना चाहिए। इसका निर्णय हिंदू समाज नही करेगा इसलिए मंदिर के ताले खुलवाने को इससे जोड़कर देखने वाले राजीव को नहीं पहचान नही पाए।

आज राजीव के समकालीन कमलनाथ जैसे नेता अगर खुलकर मंदिर निर्माण का समर्थन कर रहे है तो इसका कारण राजीव की राम भक्ति ही है। नर्मदा यात्रा जैसी कठिन यात्रा नग्न पांव से करने वाले दिग्विजयसिंह अगर इस बात का समर्थन कर रहे है वो इस बात का घोतक है कि कांग्रेस राजीव की नीतियों पर लौट रही है,क्योंकि राजीव हमेशा मानते थे की करुणासागर राम के सच्चे भक्त कभी कट्टरता और हिंसा का समर्थन नही कर सकते है।

अपने ही पैदा किए मंडल आरक्षण के मुद्दे से बचने और अपने स्वर्ण वोटो के बटने के डर से चतुर आडवाणी ने राम मदिर के मुद्दे को हथिया लिया था। इसमें उनका साथ दोनो पक्षों के कट्टरपंथी ताकतों ने दिया था वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर संघ बड़ी भूल कर चुका था इसलिए वो 1991 के चुनावों में मंदिर के मुद्दे को ही चुनाव लड़ने के मूड में था ,लेकिन राजीव इस मुद्दे का तोड़ जानते थे

राजीव ने 1991 के चुनावों के प्रचार में जयललिता जैसे घोर मंदिर समर्थकों के साथ चुनाव लड़ रहे थे पूरे चुनावों में उन्होंने एक स्टेटमेंट नही दिया जिससे हिंदुओ की आस्थाओं को चोट पहुँचे।

राजीव की इस नीति से काऊ बेल्ट में यूपी को छोड़कर देश कहीं भी बीजेपी मोमेंटम गेन नही कर पा रही थी 20 मई को पहले चरण का चुनाव हो चुका था औऱ 21 मई को राजीव की हत्या हो गई उसके बाद हुए चुनाव में मध्यप्रदेश, तमिलनाडु,कर्नाटक और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने स्वीप मार दिया और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।

राजीव चुनावी भाषणों में वे अक्सर देश में रामराज्य लाने का वादा करते हुए शुरुआत करते थे। इतना ही नहीं, राजीव गांधी के काम भी भगवान राम और जन्मभूमि के प्रति उनका प्रेम दिखाते हैं अपनी आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब राजीव गांधी ने अयोध्या में ही राम जन्मभूमि मंदिर बनेगा नवंबर 1989 में उन्होंने विश्व हिंदू परिषद को राम मंदिर के शिलान्यास की अनुमति दी।

आज प्रियंका गाँधी ने ने राम मंदिर का समर्थन करके यह बता दिया है कि अगर आज उनके पिता राजीव गाँधी जीवित होते तो सबसे ज्यादा खुश होते.. राजीव कहते थे राम सबके है और राम सबके मन में है राम देश के जीवन मे हैं।

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