मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में तीसरे मोर्चे ने ठोकी ताल

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बीजेपी-कांग्रेस से 47 सीटों पर सीधा भिड़ेगा आदिवासी युवा संगठन जयस

इंदौर, मध्यप्रदेश के आदिवासी इलाकों में जय आदिवासी युवा शक्ति यानी जयस के नाम पर एक नई ताकत उभर रही है। आने वाले विधानसभा चुनावों में ‘जयस’ दोनों पार्टियों के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है। आदिवासी अधिकारों के लिए यह संगठन तेज तर्रार, पढे-लिखे युवाओं ने तैयार किया है।  आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों पर अपने उम्मीद्वार खडे करने से दोनों ही पार्टियों का वोट शेयर घटेगा। संगठन आदिवासियों के प्रभाव वाली कुल 77 सीटों पर चुनाव आजमाएगा। भले ही संगठन चुनाव कुछ सीटों पर ही सफल हो लेकिन इनकी गतिविधियों से दोनों ही पार्टियों की सांसे फूली हुई है। संगठन आदिवासियों की अपनी जायज मांग को लेकर संगठन 1 अप्रैल से संसद का अनिश्चितकालीन घेराव करने जा रहा है।

जय आदिवासी युवा संगठन के राष्ट्रीय संरक्षक हीरालाल अलावा ने पॉलिटिक्सवाला से बात करते हुए बताया कि आजादी के 70 साल के बाद भी आदिवासी इलाकों में भयंकर भूखमरी, कुपोषण, पलायन, बिजली, बेराजगारी, सडकें और बदतर स्वास्थ्य सेवाओं जैसे गंभीर हालात बने हुए हैं। अलावा का कहना है कि आज देश में आदिवासी अपने संवैधानिक अधिकारों से आजादी के 70 साल बाद भी पूरी तरह वंचित हैं। आदिवासी इलाकों धार, झाबुआ, अलीराजपुर, बडवानी, खरगोन, खंडवा जैसे आदिवासी बाहुल्य इलाकों में गांव का आम आदिवासी आज भी लंगोटी पहनकर हाशिये पर खडा है। देश के संविधान में आदिवासियों के विकास, सुरक्षा और संरक्षण के लिए 5 वीं और 6 टी अनुसूची के रुप में प्रावधान बनाए गए हैं लेकिन इन इलाकों में रहने वाले आदिवासियों के लिए आज तक इन्हें लागू नहीं किया गया। आदिवासियों से जबरन जमीनें छीन कर विस्थापित किया जा रहा है। उनकी भाषा, संस्कृति, रीतीरिवाजों और परंपराओं को खत्म करने का षडयंत्र किया जा रहा है।

 5 वीं अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों को स्वशासन प्रदान करने के लिए संसद में कानून भी बनाया गया लेकिन इतने सालों के बाद आज तक उसे पूर्ण रुप से लागू नहीं किया गया। इन्ही सब मुद्दों को लेकर देश की जनता और संसद का ध्यान आकर्षित करने के लिए जयस 1 अप्रैल से अनिश्चितकालीन संसद का घेराव करेगा।

अलावा ने यह भी बताया कि आने वाले मध्यप्रदेश के चुनावों में सभी आरक्षित 47 सीटों के अलावा आदिवासी प्रभाव वाली 30 सीटों सहित 77 सीटों पर जयस अपने उम्मीद्वारों को चुनाव लडवाएगा। फिलहाल इन 47 आरक्षित सीटों में से 32 सीटों पर बीजेपी और 15 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। इसके अलावा प्रदेश में 30 सीटें ऐसी हैं जो आदिवासियों के लिए आरक्षित तो नहीं है लेकिन उन पर आदिवासियों का वोट निर्णायक होता है। इन सीटों पर भी जयस उलटफेर कर सकता है। मध्यप्रदेश में लोकसभा की 29 में से 6 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है। फिलहाल इनमें से 5 सीटों पर बीजेपी और 1 सीट पर कांग्रेस काबिज है। 6 के अलाव 4 अन्य सीटों पर आदिवासी वोट प्रतिशत फेरबदल करने में सक्षम है। आदिवासी पढे-लिखे युवा विधानसभा और संसद में जाकर आदिवासियों के अधिकारों की लडाई लडेगें। अलावा ने बताया कि यदि कोई पार्टी उन्हे समर्थन देगी तो उसका स्वागत है लेकिन वो अपना समर्थन किसी को नहीं देगें। अलावा का कहना है कि भोले-भाले अदिवासियों को लूटने वाले नेताओं को जड़ समेत उखाड़ने के लिए समाज के पढे-लिखे आदिवासी युवाओं को विधानसभा और लोकसभा में जाना आज के समय की मांग है।

जयस के नेताओं का कहना है कि आदिवासियों का पारंपरिक नेतृत्व करने वाले नेताओं में परिवारवाद इस तरह हावी है कि वे समाज के पढे-लिखे तबके के युवाओं को आगे आने का मौका ही नहीं देते हैं। अब जयस के जरिए नीतियां बनाने वाले संस्थानों जैसे विधानसभा और लोकसभा में पंहुचकर आदिवासियों के अधिकारों की बात उठाएगें।

जयस के लिए ही काम करने वाले उनके साथी अरविंद ने बताया कि अभी तक आदिवासियों का शोषण ही होता आया है अब हम सब मिलकर कानून के दायरें में रह कर अपने अधिकारों की लडाई लडेगें। जाहीर है कि जयस के इस ऐलान के बाद दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों की सांसे फूली हुई है। हाल ही में महाविद्यालयों में हुए छात्र संघ चुनावों में जयस ने एक तरफा जीत हांसिल की थी। कांग्रेस जहां आदिवासियों को अपना पारंपरिक वोट बैंक मानती है तो वहीं बीते कुछ सालों से बीजेपी ने भी आरएसएस और उसके अनुसांगिक वन कल्याण परिषद और हिंदु जागरण मंच जैसे संगठनों के जरिए आदिवासियों तक गहरी पैठ बना ली है। आदिवासियों के कई इलाकों में बीजेपी ने भी पिछले चुनाव तक अच्छी पैठ बना ली थी लेकिन जयस जैसे संगठनों ने दोनों ही पार्टियों की नींद उडा कर रखी है। खासकर शिवराज सरकार के लिए यह संगठन खतरे की बडी घंटी माना जा रहा है। इसी महीने मनावर में जयस की रैली में हजारों आदिवासियों की मौजूदगी ने संगठन का दबदबा और भी बढा दिया है।

कौन है डॉ हीरालाल अलावा

हीरालाल अलावा पेशे से डॉक्टर हैं। रीवा से एमबीबीएस और ग्वालियर से एमडी करने वाले हीरालाल अलावा दिल्ली के सबसे बडे सरकारी अस्पताल एम्स में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर पदस्थ थे। साल 2012 में जब पढाई करने के बाद 31 वर्षीय डॉ हीरालाल अपने इलाके में लौटे तो उन्हें यहां कुपोषण, भूखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, पलायन और शोषण दिखाई दिया। अलावा आदिवासियों की समस्याओं को सामने लाना चाहते थे। मन में जज्बा था लेकिन इसकी शुरुआत कैसे की जाए यह सवाल इस नौजवान के मन में आया। उन्होनें फेसबुक को हथियार बनाया। फेसबुक पर आदिवासियों को जोडना शुरु किया। देखते ही देखते डेढ हजार से ज्यादा आदिवासी उनसे जुड गए और अच्छी खासी प्रतिक्रियाएं मिलने लगी। धीरे-धीरे कई लोग जुडने लगे। ”एक दूसरे से जुडऩे पर पता चला कि फेसबुक पर आदिवासी युवाओं और उनके समूहों की संख्या 10,000 से भी ज्यादा है.” साल 2013 में मध्यप्रदेश के बडवानी जिले में पहली फेसबुक आदिवासी पंचायत बुलाई गई जिसमें करीब ढाई सौ लोग शामिल हुए। इस पंचायत के बाद से ही अलावा लगातार आदिवासियों के उत्थान के लिए कमर कस कर जुट गए हैं। अलावा ने जय आदिवासी युवा संगठन तैयार किया है। जिसे‘जयस’ के नाम से जाना जाता है। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ, उडीसा और झारखंड जैसे आदिवासी बाहुल्य राज्यों में अलावा की अब गहरी पैठ बन चुकी है। हाल के दिनों में मनावर में सीमेंट फैक्ट्री के खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया था। इसमें एक बुलावे पर हजारों आदिवासी यहां पहुंच गए थे। इससे पहले इसी साल हुए छात्र संघ के चुनावों में भी आदिवासी बाहुल्य इलाके में जयस ने अपना परचम लहराया। अब विधानसभा और लोकसभा चुनावों में आदिवासी सीटों पर जीत हांसिल कर आदिवासियों के प्रतिनिधित्व की तैयारियां व्यापक तौर पर की जा रही है। 5 वीं और 6 टी अनुसूची को पूरी तरह लागू करने की मांग को लेकर ‘जयस’ 1 अप्रैल से दिल्ली कूच कर संसद के अनिश्चितकालीन घेराव की तैयारी कर रहा है। अलावा के साथ कई क्रांतिकारी आदिवासी युवाओं की लंबी फौज है।

 

 

 

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