गोडसे और गांधी..कमलनाथ को नॉननिगोशिएबल (कोई समझौता नहीं ) के मायने समझने चाहिए

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जिस कांग्रेस को गांधी ने खड़ा किया, और अपने लहू से सींचा, उसके हत्यारों को, उन हत्यारों के उपासकों को  इस पार्टी ने गांधी की तस्वीर के नीचे बैठने की जगह दी जा रही है….????

सुनील कुमार (संपादक डेली, छत्तीसगढ़ )

जिन लोगों की हिन्दुस्तानी राजनीति में अधिक दिलचस्पी है, और जो लोग कांग्रेस की हलचल को रोजाना देखते हैं, वे भी मध्यप्रदेश में इस बात पर हक्का-बक्का हैं कि ग्वालियर में गोडसे का मंदिर बनाने और पूजा करने को लेकर मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ ने हिन्दू महासभा के जिस नेता, बाबूलाल चौरसिया पर एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया था, उसे पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए अब कमलनाथ ने कांग्रेस में शामिल कर लिया है।

गोडसे के भक्त और गांधी को गालियां देने वाले ऐसे लोगों को कांग्रेस में लाकर आज कमलनाथ को क्या हासिल होने जा रहा है? अपनी बनी हुई सरकार को जो बचा न सके, वे आज विपक्ष में रहते हुए एक गैरविधायक गोडसे प्रेमी का कांग्रेस प्रवेश करवा रहे हैं! शायद अभी मध्यप्रदेश में होने जा रहे निगम चुनाव में कमलनाथ को गांधी के हत्यारों के उपासक से फायदे की उम्मीद दिख रही है!

दूसरी और बहुत सी पार्टियों की तरह कांग्रेस का भी पर्याप्त नैतिक पतन हो चुका है, और यह पार्टी राजनीतिक अनैतिकता में भाजपा से कुछ ही कदम पीछे है। कमलनाथ के इस फैसले पर मध्यप्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरूण यादव ने सार्वजनिक रूप से नाराजगी जाहिर की है।

इस कांग्रेस प्रवेश पर अरूण यादव ने सोशल मीडिया पर ही महात्मा गांधी से माफी मांगी, और अपने इस संदेश को राहुल और प्रियंका गांधी को टैग किया। उन्होंने अगले ट्वीट में यह भी लिखा- महात्मा गांधी और उनकी विचारधारा के हत्यारे के खिलाफ मैं खामोश नहीं बैठ सकता।

यादव ने प्रेस को जारी बयान में उन्होंने कहा- देश के सारे बड़े नेता कहते हैं कि देश का पहला आतंकवादी नाथूराम गोडसे था। आज गोडसे की पूजा करने वाले के कांग्रेस प्रवेश पर वो सब नेता खामोश क्यों हैं? उन्होंने अपनी पार्टी से पूछा कि क्या प्रज्ञा ठाकुर को भी कांग्रेस स्वीकार कर लेगी?

कांग्रेस को बाहर से देखने वाले गैर राजनीतिक विश्लेषक इन सवालों को उठाते उसके पहले पार्टी के ही पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने सार्वजनिक रूप से पूरी पार्टी के सामने इन मुद्दों को उठाया है, और अब कांग्रेस के सामने यह अग्निपरीक्षा की घड़ी है कि अपने एक क्षेत्रीय नेता, कमलनाथ के खिलाफ वह कुछ कर पाती है या नहीं?

अभी कांग्रेस के 23 बड़े नेताओं की बागी चिट्ठी से ही कांग्रेस नहीं उबर पाई है, और वैसे में इस गिनती को 24 करने का खतरा क्या कांग्रेस पार्टी उठा पाएगी? हैरानी की बात तो यह है कि अहमद पटेल और मोतीलाल वोरा के गुजरने के बाद दिल्ली में पार्टी संगठन को चलाने के लिए जिन लोगों के नाम लिए जाते हैं, उनमें कमलनाथ का भी नाम चर्चा में आता है कि देश के कारोबारियों से उनके गहरे ताल्लुकात हैं, और वे विपक्ष में बनी हुई पार्टी के लिए मददगार हो सकते हैं।

अब ऐसा लगता है कि कमलनाथ की कारोबार की समझ तो अधिक है, लेकिन कांग्रेस के नैतिक मूल्यों, उसके इतिहास, और देश की आजादी के बाद के उसके इतिहास की समझ भी उन्हें कम है, और परवाह भी कम है। गोडसे के उपासक कांग्रेस के लिए धरती पर आखिरी इंसान होने चाहिए जिन्हें पार्टी दाखिला दे।

नैतिकता की धेले भर की परवाह करने वाले लोग यह मानेंगे कि किसी दिन संसद में अगर एक वोट से भी कांग्रेस की सरकार बनते-बनते रह जा रही हो, तब भी उसके लिए गोडसे की उपासक प्रज्ञा ठाकुर को कांग्रेस में नहीं लाना चाहिए। अंग्रेजी का एक शब्द है, नॉननिगोशिएबल, यानी जिस मुद्दे पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

जिस कांग्रेस को गांधी ने खड़ा किया, और अपने लहू से सींचा, उसके हत्यारों को, उन हत्यारों के उपासकों को अगर इस पार्टी ने गांधी की तस्वीर के नीचे बैठने की जगह दी जा रही है, तो इस पार्टी की नैतिकता पूरी तरह दीवालिया हो गई है।

हैरानी इस बात की है कि संघ परिवार और गोडसे पर सबसे अधिक हमला करने वाले मध्यप्रदेश के ही कांग्रेस के एक सबसे बड़े नेता, और कमलनाथ-सरकार बनवाने वाले सांसद दिग्विजय सिंह अब तक इस पर चुप हैं। दिग्विजय सिंह अपने पर सबसे ओछे और सबसे घटिया हमले झेलते हुए भी कभी गोडसे और संघ परिवार पर हमले में पीछे नहीं रहे।

बल्कि लोगों का यह मानना है कि उन्होंने जरूरत से अधिक दूरी तक जाकर संघ परिवार पर हमले किए हैं जो कि एक चूक रही है, और कांग्रेस को इससे हिन्दू वोटरों के एक तबके में नुकसान भी हुआ है। हम मध्यप्रदेश कांग्रेस के इस ताजा कलंक के बीच में उन बातों पर जगह खर्च करना नहीं चाहते, लेकिन इतना तो तय है कि कमलनाथ के इस फैसले पर आज मध्यप्रदेश और कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए जो लोग चुप रहेंगे, वे गोडसे से परहेज न करने के गुनहगार दर्ज होंगे।

कांग्रेस पार्टी, और वैसे तो भाजपा भी, हर कुछ दिनों में आत्मघाती बयान या हरकत के बिना रह नहीं पातीं। एक तरफ बैठा-ठाले राहुल गांधी उत्तर भारत और दक्षिण भारत की राजनीति में फर्क गिनाते हुए उत्तर भारत में कांग्रेस के प्रति हिकारत का खतरा खड़ा करते हैं, तो मानो उसी दिन राहुल और कांग्रेस को टक्कर देने के लिए अहमदाबाद के स्टेडियम का नाम सरदार पटेल की जगह नरेन्द्र मोदी पर रखा जाता है।

स्टेडियम-विवाद के अगले ही दिन कांग्रेस ने अपने आपको बैठे-ठाले गोडसे के मुद्दे पर उलझा लिया है। यह पूरी तरह कांग्रेस का घरेलू मामला है, उसकी घरेलू गंदगी है, और यह गंदगी का इतना बड़ा ढेर है कि पार्टी की कोई सफाई इसे ढांक नहीं सकती।

 

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