कांग्रेसी गमछा ओढ़कर वापसी की कोशिश में सिंधिया ?

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शनिवार को ग्वालियर में भाजपा के सदस्यता अभियान में ज्योतिरादित्य सिंधिया का कांग्रेसी गमछे में दिखना चर्चा में रहा, लोगों का कहना है कि भाजपा के कट्टर विरोधियों को भी सिंधिया इसके जरिये इस गफलत में रखना चाहते थे कि भाजपा के भगवा रंग में मैं भी पूरा नहीं डूबा

कुमार दिग्विजय

कभी बादशाह बनकर सत्ता के सरताज कहलाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया बहुरंगे कमल की संयोग और प्रयोग की राजनीति में ऐसे उलझ गए है कि उनकीअपनी पहचान का संकट गहरा गया है।

दरअसल ग्वालियर में ज्योतिरादित्य सिंधिया,कथित भाजपाई पहचान से अलग गले में तिरंगे वाला पारंपरिक कांग्रेस कागमछा डाले कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को विश्वास मे लेने का खेल खेल रहे थे उस समय कथित कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की फौज के गद्दार के नारों से पूरा ग्वालियर गूंज रहा था।

भाजपाई दिग्गजों के सामने उनके अपने घर में उनकी इस प्रकार भद्द पिटेगी इसकी सिंधिया ने शायद ही कभी कल्पना कि होगी। लेकिन इतना तो तय है कि ज्योतिरादित्य को यह एहसास तो ही ही गया होगा की कांग्रेस से अलग होकर और सरकार को गिराकर उन्होने जो दांव खेला था,उसकी आंच में उनकी व्यक्तिगत छवि को गहरा नुकसान हुआ है और इसके कारण वह कलंक भयंकर रूप में सामने आ गया है जिसका सामना करने से सिंधिया घराने की रूह काँप जाती है।

राजनीति के भी अजब गजब खेल है। ग्वालियर के धुरंधर नेता और भाजपा के दिग्गज नेता जयभानसिंह पवैया ने सिंधिया परिवार के विरोध को सदैव मुखर किया औरउन्हे गद्दार कहने से कभी भी परहेज नहीं किया।

इस समय ग्वालियर मे सिंधिया का जो मुखर विरोध देखा गया है उसमे ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि वह सिर्फ कांग्रेस का विरोध ही था,उसमें ग्वालियर कि जनता भी बड़ी संख्या में शामिल थी और हम सब जानते है कि जनता का कोई एक दल नहीं होता।

यहां यह भी प्रतीत होता है कि खुद ज्योतिरादित्य सिंधिया असमंजस में थे और ऐसा भी लगता है कि उन्होने भाजपाई गमछा न डालकर कांग्रेस जैसा गमछा पहनकर डेमेज कंट्रोल करने कि कोशिश की क्योंकि उन्हें विरोध का आभास हो गया था। बहरहाल महाराज की आबरू को सड़कों पर आज जिस प्रकार जमीदोंज किया गया,वैसा किसी भी सरकार में ग्वालियर में कभी भी देखा नहीं गया।

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अब ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने कई चुनौतियाँ है, पहले तो उन्हें भाजपा के प्रदेश और देश के नेतृत्व के सामने अपनी उपयोगिता को बरकरार रखना है,दूसरा उन्हें स्थानीय खाँटी भाजपाइयों का विश्वास जीतना है जो मुश्किल नजर आता है और अंत में उन्हें गद्दार होने का कलंक मिटाना है।

यह सब वह तभी कर पाएंगे जब कांग्रेस को वे जवाब देने की स्थिति में होंगे,लेकिन कांग्रेस के आक्रामक तेवर और उन्हें मिलता हुआ जनता का सहयोग ज्योतिरादित्य सिंधिया को आशंकित कर रहा होगा की आने वाले समय में वे शतरंज की बिसात पर बादशाह कि पारंपरिक स्थिति से गिरकर कहीं गुलाम की स्थिति में न पहुँच जाएँ।

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