इंदौर महापौर- भाजपा में बड़े चेहरों की लड़ाई, जिसे भी टिकट मिलेगा उसको बाकी दावेदारों से भितरघात का खतरा

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भाजपा में टिकट वितरण को लेकर एकअनार सौ बीमार का मामला, जबकि इंदौर कांग्रेस में
सब कुछ तय सा दिख रहा है, ऐसा पहली बार है कि भाजपा पिछड़ती दिख रही है

दर्शक
इंदौर … महापौर का पद अनारक्षित घोषित होने के बाद भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में दावेदारों की लाइन लगी हुई है। चुनावी तैयारियों की बात अलग रखें तो फिर भी महापौर प्रत्याशी चयन के मामले में कांग्रेस की स्थिति भारतीय जनता पार्टी से बेहतर दिखाई देती है। क्योंकि कांग्रेस के पास भले ही दर्जनभर दावेदार दिखाई दे रहे हो लेकिन पार्टी और कार्यकर्ताओं को पता है कि प्रत्याशी कौन हो सकता है।

इसके उलट भारतीय जनता पार्टी में स्थितियां उलझन भरी है क्योंकि 35 साल से लेकर 75 साल तक की उम्र के नेता महापौर के पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं। हर किसी का अपना दावा है और अपना गणित।

जब महापौर का पद अनारक्षित घोषित हुआ था उस समय कहा जा रहा था कि क्षेत्र क्रमांक 2 के विधायक रमेश मेंदोला इसके लिए पार्टी की स्वाभाविक पसंद होंगे। लेकिन जैसे जैसे समय बीत रहा है मेंदोला खेमे में चुप्पी छाई हुई है तो वहीं पहली बार के पार्षद दीपक जैन टीनू से लेकर पूर्व महापौर कृष्ण मुरारी मोघे तक के नाम चर्चाओं में चल रहे हैं।

मेंदोला खेमे की चुप्पी शायद टिकट तक ही है। उसके बाद ये खेमा जब चुप्पी तोड़ेगा तो उसकी गूंज पूरे शहर में सुनाई देगी ये तय है।

अभी भाजपा में दावेदारों की सूची है वो देखिये

रमेश मेंदोला… जीतना नहीं टिकट लाना बड़ी चुनौती

सभी यह मानते हैं कि मेंदोला के महापौर प्रत्याशी घोषित होते से ही चुनाव एकतरफा हो जाएगा लेकिन कोई भी दावे के साथ यह कहने को तैयार नहीं है कि मेंदोला टिकट लाने में सफल रहेंगे। उनके लिए टिकट लाना ही चुनौतीपूर्ण काम है इस मामले में उनकी ताकत ही उनकी समस्या बनी हुई है। हर किसी को लगता है कि मेंदोला के महापौर बनते से ही दो नंबरी खेमा पूरे शहर पर छा जाएगा और इसके साथ ही मेंदोला का कद भी राष्ट्रीय स्तर का हो जाएगा। इसके साथ ही परेशानी का कारण यह भी है कि प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा कह चुके हैं कि विधायकों को महापौर के चुनाव में टिकट नहीं दिया जाएगा।

सुदर्शन गुप्ता.. दो नंबर का विरोध टिकट दिलाएगा पर जीत ….

विधानसभा चुनाव हारने के बाद सुदर्शन गुप्ता अपने राजनीतिक पुनर्वास के लिए बहुत चिंतित हैं। उन्हें लगता है कि अगले विधानसभा चुनाव में टिकट लाना उनके लिए उतना आसान नहीं होगा इसलिए वे गंभीरता से महापौर पद के लिए जुगाड़ बैठा रहे हैं। उनका टिकट का रास्ता दो नंबर के विरोध और नरेंद्र सिंह तोमर के आशीर्वाद से ही तय हो सकता है। लेकिन वे जीत के लिए पूरी तरह से पार्टी पर निर्भर करेंगे क्योंकि विधानसभा एक के बाहर उनके पास अपने कोई कार्यकर्ता नहीं है और रमेश मेंदोला भी मन से उनका साथ नहीं देंगे

मधु वर्मा.. छवि अच्छी पर उम्र आएगी आड़े …

पूर्व आईडीए अध्यक्ष मधु वर्मा विधानसभा चुनाव हारे हैं लेकिन शिवराज सिंह चौहान के साथ अपनी अच्छी ट्यूनिंग के चलते टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। उनके पास अपनी दावेदारी पुख्ता करने के लिए आईडिया अध्यक्ष के रूप में किए गए काम है लेकिन उनके साथ भी समस्या यही है कि वह पूरे शहर के नेता नहीं है। दूसरी समस्या उनका पिछड़ा वर्ग का होना भी है। इतना ही नहीं राऊ विधानसभा में भी उनकी स्थिति निर्विवाद नेता की नहीं है इसके चलते उनकी निर्भरता भी पार्टी संगठन पर ही रहेगी। उनके लिए बस यही राहत की बात यह हो सकती है कि दो नंबरी खेमा उनका उस तरह से विरोध नहीं करेगा जिस तरह की सुदर्शन गुप्ता का कर सकता है। इसके अलावा मधु वर्मा की उम्र भी आड़े आएगी।

उमेश शर्मा.. कैलाश विजयवर्गीय रख सकते हैं हाथ

आखरी समय पर नगर अध्यक्ष की कुर्सी चूकने वाले उमेश शर्मा पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता है और उसी चैनल से महापौर के टिकट के लिए कोशिश कर रहे हैं जिस चैनल से वह नगर अध्यक्ष की कुर्सी पाना चाह रहे थे। उनका किसी भी विधानसभा में व्यक्तिगत नेटवर्क नहीं है, इसके साथ ही उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह समय के साथ अपनी निष्ठा में बदलते रहे हैं।

ऐसे में यह कहना बहुत मुश्किल है कि कौन उनका साथ देगा और कौन उनका विरोध करेगा। एक बार पार्षद का चुनाव हार चुके हैं यह बात भी उनके खिलाफ जा सकती है। हालांकि वे क्षेत्र क्रमांक तीन के विधायक आकाश विजयवर्गीय के ख़ास बने हुए हैं, ऐसे में कैलाश विजयवर्गीय उमेश शर्मा के नाम को आगे बढाकर कई तीर मार सकते हैं।

कृष्ण मुरारी मोघे.. उम्र और पिछले चुनाव की हार रोकेगी

कृष्ण मुरारी मौके 2010 से 15 तक शहर के महापौर रह चुके हैं। उस समय उन्हें पार्टी ने पर्यवेक्षक नियुक्त किया था लेकिन अंत में वही प्रत्याशी बन गए थे। पुराने नेता होने के चलते कोई खुलकर विरोध तो नहीं करता है लेकिन फिर भी वे 2010 में बड़ी मुश्किल से 3000 वोटों से चुनाव जीत सके थे। उनके लिए टिकट लाना उतना कठिन नहीं है लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में चुनाव लड़ना बहुत मुश्किल है। 73 साल की उम्र भी उनके खिलाफ जा सकती है। हालांकि कहा जा रहा है कि महापौर पद पर दावेदारी करके वे निगम आयोग में नियुक्ति का रास्ता खोलना चाहते हैं या फिर राज्यसभा के लिए अपनी दावेदारी मजबूत करना चाहते हैं।

जीतू जिराती.. विजयवर्गीय के करीबी होने का फायदा भी नुकसान भी

राउ के पूर्व विधायक जीतू जिराती भी महापौर पद के लिए इच्छुक बताए जाते हैं। घोषित रूप से वे कैलाश विजयवर्गीय और रमेश मेंदोला के कैंप के हैं। उन्हें विधायक का टिकट भी विजयवर्गीय के आशीर्वाद से ही मिला था। कुल मिलाकर उनकी उम्मीद है इस बात पर टिकी हुई है कि मेंदोला या हरिनारायण यादव के नाम पर सहमति नहीं बनी तो विजयवर्गीय उनका नाम चला सकते हैं। हर मामले में मेंदोला और विजयवर्गीय पर ही निर्भर है। उनका विरोध भी इसी आधार पर होगा। उनकी छवि भले विजयवर्गीय खेमे की है, पर दो नंबर के नेता अब उन पर इतना भरोसा नहीं करते।

गोपी नेमा.. भाजपा नेताओं से ही संबंध अच्छे नहीं
गोपीकृष्ण नेमा दो बार क्षेत्र क्रमांक 3 से विधायक रह चुके है। साथ ही निवर्तमान नगर अध्यक्ष भी हैं। भारतीय जनता पार्टी सामान्य रूप से अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा करने वाले नेता को आइडिया या निगम और आयोग में समायोजित करती आई है। इसी आधार पर पर महापौर का टिकट मांग रहे हैं। लेकिन नगर अध्यक्ष पद के बाद भी विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 3 के बाहर उनका कोई नेटवर्क नहीं है। इतना ही नहीं शहर के अन्य नेताओं के साथ भी उनके व्यक्तिगत संबंध बहुत अच्छे नहीं है।

टीनू जैन.. बहुत घमासान मचा तो मिल सकता है टिकट

दीपक जैन टीनू जिन्हें टीनू जैन के नाम से जाना जाता है। वर्तमान में नगर निगम के पार्षद है। गौरव रणदिवे के नगर अध्यक्ष बन जाने के बाद वह भी इस पद के लिए किसी युवा को मौका दिए जाने की संभावना के चलते अपना नाम चला रहे हैं। भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में वह मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे विनय सहस्रबुद्धे की उंगली पकड़कर राजनीति करते आए हैं।

अब विनय सहस्त्रबुद्धे मध्य प्रदेश के प्रभारी नहीं है लेकिन जैन की उम्मीदें उन्हीं पर टिकी हुई हैं। हालांकि यह माना जा रहा है कि स्थानीय स्तर पर लड़े जाने वाले इस चुनाव में पार्टी वरिष्ठ ओं को दरकिनार कर किसी युवा को मौका शायद ही दे। फिर भी यदि उन्हें मौका मिलता है तो उनके लिए विभिन्न गुटों के साथ समायोजन बैठाना बहुत कठिन होगा।

यह भी हैं कतार में
इन नामों के अलावा कुछ और नाम भी चर्चाओं में है जिसमें हरिनारायण यादव से लेकर गौरव रणदिवे तक के नाम हैं। हरिनारायण यादव के नाम का भी विरोध उसी आधार पर होगा जिस आधार पर जीतू जिराती और रमेश मेंदोला के नाम का विरोध किया जाएगा, तो वहीं गौरव रणदिवे नगर अध्यक्ष बना दिए गए हैं इसके चलते उनके नाम पर बहुत आपत्तियां होगी। इनके अलावा मुकेश सिंह राजावत, गोलू शुक्ला, अजय सिंह नरूका, कैलाश शर्मा जैसे नाम भी कतार में है।

 

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