सुनील कुमार
दुनिया के अलग-अलग देश, अलग-अलग दर्जे के लॉकडाउन झेल रहे हैं, कहीं-अधिक, कहीं कम। हिंदुस्तान भी जबरदस्त लॉकडाउन देख रहा है। बच्चों ने इतने लम्बे वक्त तक माँ-बाप को सर पर सवार देखा नहीं होगा, माँ-बाप बच्चों को इतने वक्त, ऐसी नौबत में पहली बार ही देख रहे होंगे। छोटे या बड़े, किसी भी आकार के परिवार ने पहली बार सबको इतना झेला होगा। लोग खुलकर इस बारे में अधिक बोलेंगे नहीं, कि लॉकडाउन के बीच जान बचाने कहाँ जाएंगे। लेकिन हकीकत यह है कि अब इंसान बहुत अधिक समय तक सिर्फ परिवार के लोगों के साथ उस तरह रहने के आदी नहीं रह गए हैं, जिस तरह गुफा में रहने वाले इंसान रहा करते थे। और उस वक्त के इंसान को तो गुफा के भीतर न वाई-फाई हासिल था, न गुफाबैठे वे सोशल मीडिया के दोस्तों से जुड़े रहते थे।
अब तो इंसान को घरवालों के बीच रहते हुए भी बाहर की दुनिया में जीने का एक बड़ा मौका हासिल है, लेकिन इस दसियों हजार बरस में इंसान ने धीरे-धीरे अपना मिजाज बदल लिया है। अब घर बैठे लोग बाहर निकलने के लिए बेचैन हैं। सबको यह समझ आ गया है कि छुट्टी नाम की अच्छी चीज भी बहुत अधिक मिलने पर जी उसी तरह अघा जाता है जिस तरह रईस बारात में बाराती को जबरदस्ती खानी पड़ रही दसवीं रसमलाई भारी पड़ती है।
अब लोगों को काम करने की जरूरत भी समझ आ रही होगी, बाहर निकलने की भी, और लोगों से सशरीर मिलने की भी। कोरोना ने जिंदगी में अहमियत रखने वाली बहुत सी चीजों की समझ विकसित कर दी है। लोगों की पहचान करा दी है, और हम पहले भी लिखते आए थे कि बुरा वक्त अच्छे-अच्छे लोगों की पहचान करा देता है। वह हो भी रहा है, लेकिन इससे भी अधिक अभी होगा। आने वाले महीनों में लोग ऐसा बोलते मिलेंगे कि फलां को पहचानने में बड़ी देर हो गई। वक्त बहुत खराब आने वाला है, और घर के भीतर, घर के बाहर रिश्ते, बहुत खराब भी होने जा रहे हैं।
लेकिन ये तमाम बातें तो उन लोगों के बारे में हैं, जो लोग घरों में बैठे हैं, जिनके अधिक संबंध हैं, अधिक दोस्त हैं। हिंदुस्तान जैसे देश में दसियों करोड़ लोग ऐसे हैं जहां लोग घरों से बाहर हैं, या मजदूरी के लिए फिर जिन्हें बाहर निकलना होगा। जिनके अधिक रिश्ते भी नहीं होंगे।
जिन्होंने आज बेरोजगारी, फटेहाली देखी होगी, भुखमरी के कगार पर पहुँच गए होंगे। ऐसे परिवारों में बुजुर्गों ने ऐसे बुरे वक्त अपने बच्चों का एक नया बर्ताव देखा होगा, छोटे बच्चों ने अपने माँ-बाप को सैकड़ों मील पैदल चलते देखा होगा, जिंदगी की एक अलग दर्जे की लड़ाई लड़ते देखा होगा। उनके मन में अपने माँ-बाप की ऐसी योद्धा सरीखी तस्वीर बनने का और तो कोई मौका आना नहीं था। इसलिए यह नई पीढ़ी जिंदगी की लड़ाई की एक नई समझ भी लेकर बड़ी होगी, अपने जुझारू माँ-बाप से यह पीढ़ी बहुत कुछ सीखकर भी बड़ी होगी।
दुनिया में आज इस बात को कहने वाले लोग कम नहीं हैं कि कोरोना के बाद दुनिया अलग ही हो जाएगी। कुछ लोगों ने बिफोर क्राइस्ट और आफ्टर क्राइस्ट की तरह बिफोर कोरोना और ऑफ्टर कोरोना के लिए बीसी और एसी भी लिखना शुरू भी कर दिया है। समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक, एंथ्रोपोलॉजिस्ट और अर्थशास्त्रियों के पास कोरोनोत्तर दुनिया के बारे में लिखने को और भी बहुत कुछ होगा। फिलहाल सौ बरस पहले की महामारी के बाद की इस महामारी के बाद के लिए अपने-आपको तैयार करते चलिए।
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