क्या जुल्फिकार अली भुट्टो ने सुलगाई उत्तर पूर्व में आग…?

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जुल्फिकार अली भुट्टों ने अपनी किताब मिथ ऑफ इंडिपेंडेंस में लिखा है कि, भारत के साथ हमारा विवाद कश्मीर समस्या पर ही नहीं,असम में मुस्लिम बाहुल्य जिले भी है,जिन्हें विभाजन के समय पाकिस्तान को दिया जाना चाहिए था, वही असम में  बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण भी विवाद बढ़ रहे है।

डॉ.ब्रह्मदीप अलूने

असम मिजोरम सीमा विवाद के बाद एक बार फिर उत्तर पूर्व चर्चा में है। दरअसल  भारत के विभिन्न क्षेत्रों की अपेक्षा उत्तर पूर्व विकास को लेकर बहुत पिछड़ा हुआ है। लेकिन यहां की मूल समस्या आदिवासी बनाम घुसपैठ कर भारत में बसे बंगलादेशी मुस्लिमों की हो गई है।

जुल्फिकार अली भुट्टों ने अपनी किताब मिथ ऑफ इंडिपेंडेंस में लिखा है कि, भारत के साथ हमारा विवाद कश्मीर समस्या पर ही नहीं,असम में मुस्लिम बाहुल्य जिले भी है,जिन्हें विभाजन के समय पाकिस्तान को दिया जाना चाहिए था,लेकिन उन जिलों को भारत में शामिल करके गलती की गई है।

बाद में पाकिस्तान के जनरल जिया-उल-हक ने भारत में अशांति फैलाने के लिए जिस ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत की थी,उसमें उत्तर पूर्व के मुस्लिम बाहुल्य इलाके शामिल थे।

लेफ्टिनेंट जनरल एस.के.सिन्हा ने जब राष्ट्रपति को पत्र लिखा भारतीय थल सेना के डिप्टी चीफ़ ऑफ स्टॉफ रहे लेफ्टिनेंट जनरल एस.के.सिन्हा जम्मू कश्मीर और असम के राज्यपाल भी रहे है।

1997 में असम के राज्यपाल रहते उन्होंने एक रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौपी थी,जिसमे लिखा था बंगलादेश से लगातार कई दशकों से हो रहे भारी संख्या में अवैध प्रवास से देश का जनसंख्या स्वरूप ही बदलता जा रहा है। इसने दो तरफा खतरे को जन्म दिया है।

एक तो इससे असम के लोगों की अपनी पहचान खतरे में पड़ गई है,दूसरी इससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी खतरा मंडराने लगा है। समय समय पर गठित होने वाली केंद्र और राज्य सरकारों में से किसी ने भी इस चुनौती को गम्भीरता से नहीं लिया।सिन्हा की चिंता में असम के सरहदी इलाकों में अचानक बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या थी। घुसपैठ की समस्या आज़ादी के साथ ही शुरू हुई

पूर्वी पाकिस्तान से असम में घुसपैठ का सिलसिला 1947 से लगातार चल रहा है।1971 में पाकिस्तान सेना के बंगालियों पर अत्याचार से यह समस्या और ज्यादा गहरा गई। इस समय देश से कही ज्यादा असम के एक परिवार में औसतन 5.5 सदस्य है।

जिसके कारण राज्य की बेरोजगारी दर बढ़कर 61 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यहीं नहीं जनसंख्या घनत्व 340 से बढ़कर वर्तमान में 400 तक पहुंच गया है। 2001 से 2011 के बीच असम के बरपेटा,बोंगईगांव, नगाँव,ग्वाल पाड़ा,कछार,धेमाजी,मोरीगांव,करीमगंज,हेला कांडी जैसे सीमावर्ती जिलों में अधिकांश इलाकों में मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत 25 से 30 प्रतिशत तक बढ़ गया है।

मुस्लिम जनसंख्या में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी का प्रमुख कारण बांग्लादेशी घुसपैठियों का स्थानीय जनता में शामिल होना है। राज्य के 11 जिले आबादी के इन बदलावों से बेहाल हो गए है।

रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया ने असम के मूल निवासियों को लेकर अपनी सूची जारी की है जिसमे असम के सभी 3.29 करोड़ आवेदनकर्ताओं के भाग्य का फ़ैसला हुआ है। पूर्वोत्तर राज्य असम की कुल आबादी 3.29 करोड़ है जिसमें से एनआरसी में कुल 2.89 करोड़ लोगों को ही शामिल किया गया है। यानी 40 लाख लोगों को फिलहाल भारत का नागरिक नहीं माना गया है।

असम के लोग किससे नाराज है
देश के उत्तर पूर्व में बसे बड़े राज्य असम में रहने वाले भारतीय नागरिक अपने भौतिक संसाधनों पर बांग्लादेशियों के कब्जे और रोजगार की खत्म होती अवस्थाओं से बेहद नाराज है। यह नाराजगी धीरे धीरे अलगाव और पृथकतावाद तक पहुंच गई है।

असम में घुसपैठ के कारण आदिवासियों के सामने सांस्कृतिक,आर्थिक और जातीय पहचान का संकट उत्पन्न हो गया और इसी कारण वहां अलगाववादी संगठन उल्फा अस्तित्व में आया जो बाद में सियासी दल असम गण परिषद के रूप में सत्ता तक भी पहुंच बनाने में कामयाब रहा।

बंगलादेशी मजदूरों से बढ़ा संकट

बंगलादेशी भारत के पहचान पत्र बनाकर सस्ते दरों पर काम करने के लिए आसानी से उपलब्ध हो जाते है। इससे पूर्वोत्तर के लोगों के सामने रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है और वे भारत के बड़े शहरों की और रुख करने को मजबूर हो रहे है। पूर्वोत्तर के मूल लोगों की आर्थिक स्थिति के बिगड़ने और सांस्कृतिक बिखराव से वह पूरा इलाका भारत से कट रहा है,यहीं नहीं इसका फायदा उठाकर अलगाववादी ताकतों ने अपना प्रभाव जमा लिया है।

आईएसआई की बांग्लादेश के आतंकी संगठन हूजी से सांठगांठ 4096 किलोमीटर लंबी भारत बंगलादेश सीमा भौगोलिक और सांस्कृतिक जटिलताओं के कारण भारत के लिए सबसे बड़ा सुरक्षा संकट रही है। इसका फायदा पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी आईएसआई खूब उठाती है और कई इलाकोंमें भारत के विरुद्ध विद्रोही संगठनों को आश्रय और प्रशिक्षित करके भारत पर हमले करने के लिए प्रेरित करती है।

उनका ध्यान खासतौर पर ऐसे समूहों के लिए होता है जो भारत के सीमा प्रान्तों में विभाजन करना चाहते है। पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई ने बांग्लादेश के आतंकी संगठन हूजी से मिलकर असम,मिजोरम,मेघालय और मणिपुर को इस्लामिक कट्टरतावाद से जोड़ने में काफी सफलता हासिल कर ली है।

भारत की सबसे लंबी सीमा रेखा बंगलादेश के साथ लगती है और इसका फायदा उठाकर पूर्वोत्तर के रास्ते भारत को आतंकवाद आयातीत किया जा रहा है।इसमें घुसपैठ,तस्करी,मदरसों का जाल और नकली मुद्रा का अवैध कारोबार शामिल है।

रोहिंग्या घुसपैठ का मार्ग बंगाल की खाड़ी से जुड़े म्यांमार और भारत के मध्य लगभग 1600 किमी की लम्बी सीमा आपस में मिलती है।उत्तर पूर्वी राज्यों में अरुणाचल,नागालैंड ,मणिपुर,और मिजोरम की सीमाएं म्यांमार से मिलती है। अभी भी म्यांमार में 2.5 मिलियन भारतीय मूल के लोग निवास करते है तथा नागा जनजातियों के लोग सीमाओं के दोनों ओर स्थित है।

इनमें नागा और कुकी जनजातियों की बड़ी आबादी है,जिनके बीच सांस्कृतिक एवम् साझे सामाजिक सम्बन्ध है ।जनजातियों के आपसी संबंधों केकारण दोनों देशों के बीच 16 किमी के क्षेत्र में मुक्त आवागमन का प्रावधान है। यह  सीमा रोहिंग्या घुसपैठ के लिए मुफीद मानी जाती है।

बोडोलैंड की मांग
राष्ट्रीय जांच एजेंसी की सूची में शामिल आतंकी संगठनों में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड समेत पूर्वोत्तर के अन्य संगठन शामिल है जो बोडोलैंड की मांग को लेकर हिंसक आंदोलन छेड़े हुए है इनमें यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम या उल्फा भी शामिल है।

बोडोलैंड की मांग उभरने का प्रमुख कारण असम के आदिवासी क्षेत्रों में अन्य इलाकों से आकर बसने वाले और घुसपैठ को माना जाता है। इस घुसपैठ से वहां रहने वाले आदिवासियों के सामने सांस्कृतिक,आर्थिक और जातीय पहचान का संकट उत्पन्न हो गया और इसी कारण वहां 80 के दशक में अलगाववादी संगठन उल्फा अस्तित्व में आया।

उसने अपनी पहचान बनाये रखने के लिए पृथक बोडोलैंड की मांग रखी। राजेश पायलट ने बोड़ो आंदोलन की दिशा बदली नरसिम्हा राव सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे राजेश पायलट के एक बयान ने बोडो आंदोलन की दिशा ही बदल दी।

पायलट ने कहा था की बोडो लैंड एक असम्भव सपना है क्योकि बोडो लोग अपनी ही भूमि पर अल्पसंख्यक है। अब बोडो ने मूल निवासी बनाम प्रवासी को अपना मुख्य एजेंडा बना लिया,उन्होंने प्रवासी मुसलमानों और अन्य आदिवासी समूहों को निशाना बनाना शुरू किया जो बाद में जातीय और साम्प्रदायिक उन्माद का कारण बन गया।

उल्फा के समान ही असम मेंसक्रिय नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड भी भारत से आज़ाद होकर एक अलग होमलैंड की मांग कर रहा है। यह मूलतः बोडो आदिवासी समुदाय का संगठन है

जो असम को अपनी जमीन मानते है और यहां पर बसने वाले अन्य जातीय समूहों को संदेह की दृष्टि से देखते है।बोडो जिन्हें अपना प्रतिद्वंद्वी समझते है उनमें असम में रहने वाले हिंदी भाषी,अन्य आदिवासी समुदाय और मुसलमान शामिल है।मुसलमानों में अधिकांश बंगाली मुसलमान है,जिसका फायदा बांग्लादेश से आयेघुसपैठियों ने भी उठाया है और इससे इस इलाके में हिंसा में बढ़ोतरी हो रही है।

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