पीटीआई को सरकारी धमकी
Top Banner विशेष

पीटीआई को सरकारी धमकी

 

हिंदुस्तान में इंदिरा गांधी के घोषित आपातकाल के बाद आज के दौर में मीडिया पर कैसा अघोषित आपातकाल लगा है बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार, लेखक डॉ. वेदप्रताप वैदिक

प्रेस ट्रस्ट आफ इंडिया (पीटीआई) देश की सबसे पुरानी और सबसे प्रामाणिक समाचार समिति है। मैं दस वर्ष तक इसकी हिंदी शाखा ‘पीटीआई—भाषा’ का संस्थापक संपादक रहा हूं। उस दौरान चार प्रधानमंत्री रहे लेकिन किसी नेता या अफसर की इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह फोन करके हमें किसी खबर को जबर्दस्ती देने के लिए या रोकने के लिए आदेश या निर्देश दे लेकिन अब तो प्रसार भारती ने लिखकर पीटीआई को धमकाया है कि उसे सरकार जो 9.15 करोड़ रु. की वार्षिक फीस देती है, उसे वह बंद कर सकती है।

 

यह राशि पीटीआई को विभिन्न सरकारी संस्थान जैसे आकाशवाणी, दूरदर्शन, विभिन्न मंत्रालय, हमारे दूतावास आदि, जो उसकी समाचार-सेवाएं लेते हैं, वे देते हैं। यह धमकी वैसी ही है, जैसी कि आपात्काल के दौरान इंदिरा सरकार ने हिंदी की समाचार समितियों- ‘हिंदुस्थान समाचार’ और ‘समाचार भारती’ को दी थी। मैंने ‘हिंदुस्थान समाचार’ के निदेशक के रुप में इस धमकी को रद्द कर दिया था। मैं अकेला पड़ गया।

मेरे अलावा सबने घुटने टेक दिए और इन दोनों एजेंसियों को उस समय पीटीआई में मिला दिया गया। क्या पीटीआई को दी गई यह धमकी कुछ वैसी ही नहीं है ? मैं पीटीआई के पत्रकारों से कहूंगा कि वे डरें नहीं। डटे रहें। 1986 में बोफोर्स कांड पर जब जिनीवा से चित्रा सुब्रह्मण्यम ने घोटाले की खबर भेजी तो ‘भाषा’ ने उसे सबसे पहले जारी कर दिया। प्रधानमंत्री राजीव गांधी और उनके अफसरों की हिम्मत नहीं हुई कि वे मुझे फोन करके उसे रुकवा दें। अब पीटीआई ने क्या गलती की है ?

सरकारी चिट्ठी में उस पर आरोप लगाया गया है कि उसने नई दिल्ली स्थित चीनी राजदूत सुन वीदोंग और पेइचिंग स्थित भारतीय राजदूत विक्रम मिसरी से जो भेंट-वार्ताएं प्रसारित की हैं, वे राष्ट्रविरोधी हैं और वे चीनी रवैए का प्रचार करती हैं। उनसे हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य का खंडन होता है।

हमारे राजदूत ने कह दिया कि चीन गलवान घाटी में हमारी जमीन खाली करे जबकि मोदी ने कहा था कि चीन हमारी जमीन पर घुसा ही नहीं है। इसी तरह चीनी राजदूत ने भारत को चीनी-जमीन पर से अपना कब्जा हटाने की बात कही है। यही बात चीनी विदेश मंत्री ने हमारे विदेश मंत्री से कही थी। मेरी समझ में नहीं आता कि इसमें पत्रकारिता की दृष्टि से राष्ट्रविरोधी काम क्या हुआ है ?

यह पत्रकारिता का कमाल है कि वह दुश्मन से भी उसके दिल की बात उगलवा लेती है। जो काम नेता और राजदूत के भी बस का नहीं होता, उसे पत्रकार पलक झपकते ही कर डालते हैं। उन पर राष्ट्रविरोधी होने की तोहमत लगाकर प्रसार भारती अपनी प्रतिष्ठा को ही ठेस लगा रही है। मैं समझता हूं कि सरकार को चाहिए कि प्रसार भारती के मुखिया अफसर को वह फटकार लगाए और उसे खेद प्रकट करने के लिए कहे।

Leave feedback about this

  • Quality
  • Price
  • Service

PROS

+
Add Field

CONS

+
Add Field
Choose Image
Choose Video

X